रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी संकट क्या है ? | What is Rohingya Issue in Hindi

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क्या है रोहिंग्या विवाद?| What is Rohingya Problem:

रोहिंग्या समुदाय 12वीं सदी के शुरुआती दशक में म्यांमार के रखाइन इलाके में आकर बस तो गया, लेकिन स्थानीय बौद्ध बहुसंख्यक समुदाय ने उन्हें आज तक नहीं अपनाया है. 2012 में रखाइन में कुछ सुरक्षाकर्मियों की हत्या के बाद रोहिंग्या और सुरक्षाकर्मियों के बीच व्यापक हिंसा भड़क गई. तब से म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा जारी है. रोहिंग्या और म्यांमार के सुरक्षा बल एक-दूसरे पर अत्याचार करने का आरोप लगा रहे हैं. ताजा मामला 25 अगस्त,2017 को हुआ, जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों ने पुलिस वालों पर हमला कर दिया. इस लड़ाई में कई पुलिस वाले घायल हुए, इस हिंसा से म्यांमार के हालात और भी खराब हो गए.

रोहिंग्या विवाद का इतिहास | History of Rohingya Conflicts:

बर्मा के बौद्ध राजा नारामीखला के नौकर थे रोहिंग्या:

रोहिंग्या मुसलमान इस्लाम को मानने वाले वो लोग हैं जो 1400 ई. के आस-पास बर्मा (आज के म्यांमार) के अराकान प्रांत में आकर बस गए थे। इनमें से बहुत से लोग 1430 में अराकान पर शासन करने वाले बौद्ध राजा नारामीखला (बर्मीज में मिन सा मुन) के राज दरबार में नौकर थे। इस राजा ने मुस्लिम सलाहकारों और दरबारियों को अपनी राजधानी में प्रश्रय दिया था।

रोहिंग्या समुदाय 15वीं सदी के शुरुआती दशक में म्यांमार के राखाइन में, जिसे अराकान के नाम से भी जाता है, रह रहे थे|

जब म्यांमार में ब्रिटिश शासन था तब बंगाल के चटगांव से तमाम मुसलमान वहां जाकर बस गए जिन्हें रोहिंग्या कहा गया| उस समय भी रोहिंग्या बिना रोक टोक बर्मा में बसते रहे|

वर्ष 1785 में बर्मा के बौद्ध लोगों ने देश के दक्षिणी हिस्से अराकान पर कब्जा कर लिया। तब उन्होंने रोहिंग्या मुस्लिमों को या तो इलाके से बाहर खदेड़ दिया या फिर उनकी हत्या कर दी। इस अवधि में अराकान के करीब 35 हजार लोग बंगाल भाग गए जो कि तब अंग्रेजों के अधिकार क्षेत्र में था।

वर्ष 1824 से लेकर 1826 तक चले एंग्लो-बर्मीज युद्ध के बाद 1826 में अराकान अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया।  और एक बार फिर यहाँ रोहिंग्याओं की स्थिति मजबूत हो गई |

तब अंग्रेजों ने बंगाल के स्थानीय बंगालियों को प्रोत्साहित किया कि वे अराकान ने जनसंख्या रहित क्षेत्र में जाकर बस जाएं। रोहिंग्या मूल के मुस्लिमों और बंगालियों को प्रोत्साहित किया गया कि वे अराकान (राखिन) में बसें।

ब्रिटिश भारत से बड़ी संख्या में इन प्रवासियों को लेकर स्थानीय बौद्ध राखिन लोगों में विद्वेष की भावना पनपी और तभी से जातीय तनाव पनपा जो कि अभी तक चल रहा है।

द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के विरुद्ध रोहिंग्या ने अंग्रेजों का साथ दिया:

दूसरे द्वितीव विश्व युद्ध के दौरान दक्षिण पूर्व एशिया में जापान के बढ़ते दबदबे से आतंकित अंग्रेजों ने अराकान छोड़ दिया और उनके हटते ही मुस्लिमों और बौद्ध लोगों में एक दूसरे का कत्ले आम करने की प्रतियोगिता शुरू हो गई।

इस दौर में बहुत से रोहिंग्या मुस्लिमों को उम्मीद थी कि वे ‍अंग्रेजों से सुरक्षा और संरक्षण पा सकते हैं। इस कारण से इन लोगों ने एलाइड ताकतों के लिए जापानी सैनिकों की जासूसी की।

जब जापानियों को यह बात पता लगी तो उन्होंने रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ यातनाएं देने, हत्याएं और बलात्कार करने का कार्यक्रम शुरू किया। इससे डर कर अराकान से लाखों रोहिंग्या मुस्लिम फिर एक बार बंगाल भाग गए |

बर्मा में शुरू से गद्दार रहे हैं रोहिंग्या:

द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्त‍ि और 1962 में जनरल नेविन के नेतृत्व में तख्तापलट की कार्रवाई के दौर में रोहिंग्या मुस्लिमों ने अराकान में एक अलग रोहिंग्या देश बनाने की मांग रखी|

लेकिन तत्कालीन बर्मी सेना के शासन ने यांगून (पूर्व का रंगून) पर कब्जा करते ही अलगाववादी और गैर राजनीतिक दोनों ही प्रकार के रोहिंग्या लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की।

बस इसी कारण बर्मा सैनिक शासन ने रोहिंग्या लोगों को नागरिकता देने से इनकार कर दिया और इन्हें बिना देश वाला (स्टेट लैस) बंगाली घोषित कर दिया।

नहीं मिली बर्मा की नागरिकता:

इसकी शुरुआत 1982 में हुई, जब म्यांमार सरकार ने राष्ट्रीयता कानून बनाया. इस कानून में रोहिंग्या मुसलमानों का नागरिक दर्जा खत्म कर दिया गया| जिसके बाद से ही म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने के लिए मजबूर करती आ रही है|

इस पूरे विवाद की जड़ करीब 100 साल पुरानी है, लेकिन 2012 में म्यांमार के राखिन राज्य में हुए सांप्रदायिक दंगो ने इसमें हवा देने का काम किया. रोहिंग्या मुसलमान और म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के बीच विवाद 1948 में म्यांमार के आजाद होने के बाद से ही चला आ रहा है.

म्यांमार में सैन्य शासन आने के बाद रोहिंग्या समुदाय के सामाजिक बहिष्कार को बाकायदा राजनीतिक फैसले का रूप दे दिया गया और उनसे नागरिकता छीन ली गई|

रोहिंग्या सुन्नी मुस्लिम हैं, जो बांग्लादेश के चटगांव में प्रचलित बांग्ला बोलते हैं|

1991 के म्यांमार सैन्य शासन के बाद:

1991-92 में दमन के दौर में करीब ढाई लाख रोहिंग्या बांग्लादेश भाग गए थे। मुस्लिम देशों और इसके पिछलग्गू सेकुलर जमात ने म्यांमार सेना के बारे में झूठ फैलाया की सेना ने इनको बंधुआ मजदूर बनाकर रखा, लोगों की हत्याएं भी की गईं, यातनाएं दी गईं और बड़ी संख्या में महिलाओं से बलात्कार किया गया |

म्यांमार में रोहिंग्या की आबादी 10 लाख के करीब है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक करीब इतनी ही संख्या में रोहिंग्या बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान सहित पूर्वी एशिया के कई देशों में शरण लिए हैं.

2012 में रखाइन में कुछ सुरक्षाकर्मियों की हत्या और बौद्ध लड़की के बलात्कार के बाद रोहिंग्या और बौद्धों के बीच व्यापक दंगे भड़क गए. तब से म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा जारी है.

दुनिया में सबसे प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदाय में से एक म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों को माना जाता है. इनकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह जिस भी देश में शरण ले रहे हैं, वहां उन्हें हमदर्दी की बजाय आंतरिक सुरक्षा के खतरे के तौर पर देखा जा रहा है.

बेहद गरीब, वंचित रोहिंग्या समुदाय पर आतंकवादियों से कनेक्शन का आरोप लगता रहा है. इसी वजह से अन्य देश भी इन्हें शरण देने को राजी नहीं.

भारत सरकार भी अपने यहां रह रहे करीब 40,000 रोहिंग्या मुसलमानों को आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा मानती है. ऐसा माना जाता है कि ये लोग भारत में समुद्र, बांग्लादेश और म्यायांर की सीमा से घुसपैठ कर भारत में घुसे थे.

रोहिंग्या का आतंकवाद से है साफ़ कनेक्शन:

अलकायदा ने हथियारों और “सैन्य समर्थन” के साथ म्यांमार में अपने साथी मुसलमानों का समर्थन करने के लिए दुनिया भर के मुसलमानों से अपील की है ।

आतंकवादी संगठन अलकायदा ने म्यांमार में हिंसा का शिकार हो रहे रोहिंग्या मुसलमानों की हथियारों से मदद करने की अपील की है । साथ ही म्यांमार को धमकी देते हुए कहा है कि म्यांमार को रोहिंग्या मुसलमानों के साथ की जा रही हिंसा के लिए सज़ा का सामना करना पड़ेगा ।

इसके अलावा, अलकायदा के मदद से ही रोहिंग्या लोग म्यांमार में बौद्धों पर अत्याचार कर रहे हैं |

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Shivesh Pratap

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