तन्हाई और अकेलेपन पर शायरों के चुनिंदा अशआर….
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा
अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है
कोई आ जाए तो वक़्त गुज़र जाता है
तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी से
लेकिन वो किसी वक़्त अकेला नहीं होता
किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती
है यही एक ख़राबी मिरी तन्हाई की
अकेलापन शायरी
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है
अकेले-पन का ‘अज़्मी’ हो भी तो एहसास कैसे हो
तसलसुल से हमारी शाम-ए-तन्हाई सफ़र में है
अपने होने का कुछ एहसास न होने से हुआ
ख़ुद से मिलना मिरा इक शख़्स के खोने से हुआ
भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आया
घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला
ये इंतिज़ार नहीं शम्अ है रिफ़ाक़त की
इस इंतिज़ार से तन्हाई ख़ूब-सूरत है
दर्द ए तन्हाई शायरी
सहरा में आ निकले तो मालूम हुआ
तन्हाई को वुसअत कम पड़ जाती है
तन्हाइयों को सौंप के तारीकियों का ज़हर
रातों को भाग आए हम अपने मकान से
सिमटती फैलती तन्हाई सोते जागते दर्द
वो अपने और मिरे दरमियान छोड़ गया
अकेले तन्हा शायरी
मेरे मरने पर किसी को ज्यादा फर्क नहीं होगा,
बस तन्हाई रोएगी कि मेरा हमसफ़र चला गया
ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ
हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते
कोसते रहते हैं अपनी जिंदगी को उम्रभर
भीड़ में हंसते हैं मगर तन्हाई में रोया करते हैं
मुझे तन्हाई की आदत है मेरी बात छोड़ें
ये लीजे आप का घर आ गया है हात छोड़ें
तन्हाई शायरी 2 लाइन
More दर्द ए तन्हाई अकेलेपन की शायरी