जहाँ के सैनिक समरभूमि में ….
श्री पीरू सिंह शेखावत को 20 मई 1936 को झेलम में 1 पंजाब रेजिमेंट की 10वीं बटालियन में नामांकित किया गया था। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद 1 मई 1937 को श्री सिंह को उसी रेजिमेंट की 5वीं बटालियन में तैनात किया गया।
स्कूली शिक्षा से पहले से ही शत्रुता होने के बावजूद श्री सिंह ने शिक्षा को गंभीरता से लिया और सेना में शिक्षा प्रमाण पत्र को प्राप्त किया। कुछ अन्य परीक्षाओं को उत्तीर्ण करने के बाद 7 अगस्त 1940 को उन्हें लांस नायक के पद पर पदोन्नत किया गया था। 1 पंजाब की 5वीं बटालियन के साथ अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने उत्तर-पश्चिम फ्रंटियर पर कार्रवाई की।
टीथवाल बेस की फतेह:
1948 की लडाई मेँ सबसे कठिन माने जाने वाले टीथवाल बेस को फतेह करने का आदेश राजपूताना राइफल्स को मिला और हवलदार मेजर पीरु सिंह एक कंपनी के साथ आगे बढे।
एक पाक बंकर को तबाह करने मे राजपूताना राइफल्स के 50 जवान शहीद हो गए ओर लगभग पूरी कंपनी खत्म हो चुकी थी।
इसके बाद भी पीरु सिंह वापस नहीं मुडे ओर तीन ग्रेनेड झेलते हुए खून से लतफत दूसरे बंकर की ओर बढे और अपनी वंदूक के चाकू से 6 पाकिस्तानी सैनिकोँ को मौत के घाट उतार दिया और उसको फतह किया।
कहते हे कि ग्रेनेड लगने लेने के बाद पीरु सिंह का पूरा शरीर खून से लतफत होकर लाल हो गया था ओर बंकर मेँ घुसते ही पाकिस्तानी सैनिक उन्हे कोई शैतान समझ कर डर गए।
“राजा रामचंद्र की जय” हुंकार से डर गए थे पाकिस्तानी:
राजा रामचंद्र की जयकार के साथ आगे बढ़ते हुए हवलदार मेजर पीरु सिंह के ऊपर उस समय मानो रण चंडी सवार थी ।
तीसरे बंकर की ओर बढते दुश्मन ने उनके शरीर मेँ कई गोलियाँ मारी पर वो आगे बढते ही रहे तभी तीसरे बंकर में घुसकर रायफल के चाकू से मारा और विस्फोट कर दिया और इस तरह टीठवाल पर तिरंगा लहराया ।
18 जुलाई 1948, कश्मीर मेँ ग्रेनेड विस्फोट के पहले वाकी-टाकी पर पीरू सिंह की अंतिम आवाज थी “राजा रामचंद्र की जय”।
भारत सरकार ने इस भूतपूर्व शौर्य और पराक्रम के लिए हवलदार मेजर पीरु सिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किया और यह राजपूताना राइफल्स को मिलने वाला पहला परमवीर चक्र था ।
भावना अश्रु के साथ #हुंकार