भारत की भूगर्भिक चट्टानें और उनमें मिलने वाले खनिज:
प्रारंभिक अवस्था में धरती के निर्माण क्रम में चट्टानों का निर्माण हुआ। विभिन्न भौगोलिक और परिस्थितियों की भिन्नता के कारण उसमें बहुत अंतर भी है।
भारत के संदर्भ में हमें केवल 6 मुख्य चट्टानों के क्रम, System या सिरीज़ की जानकारी प्राप्त करनी होती है जो नवीनता के क्रम में निम्नलिखित है;
- आर्कियन सीरीज़ (Archaean System)
- धारवाड़ सीरीज़ (Dharwar System)
- कुडप्पा सीरीज़ (Cuddapah System)
- विंध्यन सीरीज़ (Vindhyan System)
- गोंडवाना सीरिज़ (Gondwana System)
- दक्कन ट्रैप (Deccan Trap)
इनमें दक्कन ट्रैप सबसे नवीन है।
आर्कियन क्रम की चट्टानें:
यह पृथ्वी के ठंढे होने के बाद संसार की सबसे पहले बनीं चट्टानें हैं।
यह वर्तमान से 400 करोड़ वर्ष पूर्व आरम्भ हुई और 250 करोड़ वर्ष पूर्व अंत हुई।
इसमें पृथ्वी की भूपर्पटी इतनी ठंडी हो चुकी थी कि उसपर महाद्वीप बनने आरम्भ हो गये और पृथ्वी पर जीवन भी आरम्भ हो गया।
यह चट्टानें अरावली में, दो तिहाई डेक्कन प्रायद्वीप में तथा कुछ नार्थ ईस्ट में पाया जाता है।
इसे पुराने चट्टान के नाम से भी जाना जाता है।
धारवाड़ क्रम की चट्टानें:
यह चट्टानें 250 करोड़ वर्ष पूर्व आरम्भ हुई और 180 करोड़ वर्ष पूर्व अंत हुई।
इसका नामकरण सबसे पहले पाए जाने वाले क्षेत्र धारवाड़ के नाम पर पड़ा लेकिन यह अरावली, छोटा नागपुर पठार, तमिलनाडु, दिल्ली में भी मिलता है।
इस क्रम की चट्टानें कर्नाटक के धरवाड़, बेल्लारी और शिमोगा में मिलती है। इसके अलावा यह अरावली क्षेत्र में मिलती हैं।
यह भारत की सभी चट्टानों में सबसे समृद्ध चट्टानें हैं।
लोहा, सोना, मैंगनीज, जस्ता, टंगस्टन और तांबा, क्रोमियम आदि प्रचुर मात्रा में मिलती हैं।
कर्नाटक में कोलार और हट्टी की खानें धरवाड़ चट्टानों में ही स्थित हैं।
बड़ौदा के निकल चांपानेर सीरीज़ हरे संगमरमर, कोलार की चैम्पियन सीरीज़ सोने की खान, मध्यप्रदेश में बालाघाट और छिंदवाड़ा की क्लोजपेट और चिल्पी सीरीज़ ताम्बे की खानों के लिए प्रसिद्द है।
केन्दुझर, मयूरभंज और सिंघभूम लौह अयस्क की ख़ान के लिए प्रसिद्द है।
कुडप्पा क्रम की चट्टानें:
इसका नाम आंध्र के कुडप्पा जिले के नाम पर हुआ है। यह चट्टान इसी जिले में सबसे पहले पाया गया था।
इसमें क्वार्ट्ज़, चूनापत्थर और शेल पाया जाता है।
इसका सबसे महत्वपूर्ण सीरीज़ पपग्नि सीरीज़ है आंध्र के एक नदी के नाम पर ही है।
इसके अलावा यह क्रम छत्तीसगढ़, राजस्थान और दिल्ली में भी पाया जाता है।
विंध्यन क्रम की चट्टानें:
यह उत्तर भारत के नए संरचना को दक्षिण के आदि कालीन भौगोलिक रचना की विभाजक चट्टानी रेखा के सामान है।
इसका विस्तार चित्तौड़गढ़ राजस्थान से सासाराम बिहार तक है। यह अरावली से ग्रेट बाउंड्री फॉल्ट से अलग होता है।
यह चट्टानें भवन निर्माण के सामग्रियों के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता हैं। लाल बलुआ पत्थर इसी चट्टानों से मिलता है।
इसमें चूना, क्ले, संगमरमर आदि मिलती हैं। आंध्र में भी बिन्ध्यन क्रम की चट्टानें मिलती हैं।
मध्य प्रदेश के पन्ना और आंध्र के गोलकुंडा में हीरा मिलता है। यह दोनों खानें भी बिन्ध्यन क्रम में ही मिलती हैं।
इसके महत्वपूर्ण सीरीज़ भांडर, बिजवार, कैमूर सीरीज़ हैं जो भवन निर्माण के श्रोतों से प्रचुर हैं।
गोंडवाना क्रम की चट्टानें:
भारत में गोंडवाना सीरीज़ मुख्य रूप से नदी घाटियों में पाई जाती है। सोन, दामोदर, महानदी एवं गोदावरी नदी की घाटियों में गोंडवाना क्रम मिलता है।
इसे द्रविड़ियन क्रम भी कहा जाता है।
भारत का 98% कोयला भारत के गोंडवाना क्रम में मिलता है एवं इन तीन नदी घाटियों में ही मिलता है।
झरिया कोयला क्षेत्र दामोदर नदी झारखण्ड, तालचर कोयला क्षेत्र महानदी ओडिशा एवं सिंगरेनी कोयला क्षेत्र गोदावरी नदी घाटी तेलंगाना (पूर्व में आंध्र प्रदेश) के क्षेत्रों में मिलता है।
दामुदा और पंचाट सीरीज़, राजमहल पहाड़ियां भी इसी गोंडवाना क्रम की चट्टानें हैं।
दक्कन ट्रैप:
जब भारत का दक्षिणी हिस्सा अफ्रीका महाद्वीप से टूटने के क्रम में था तो दरारों से जो लावा प्रवाह दरारी उद्भेदन या प्रवाह के रूप में बाहर निकल कर ही दक्कन के पठार का निर्माण हुआ।
गुजरात एवं महाराष्ट्र की सीमा पर कोरोमंडल एवं नर्मदा घाटी के क्षेत्र में यह लावा फैलने से ही भारतीय प्रायद्वीप में दक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ है।
दक्कन ट्रैप को लावा या बेसाल्ट चट्टान कहते हैं। 75% से 80% हिस्सा महाराष्ट्र, कुछ गुजरात एवं मध्यप्रदेश में है।
बाद में अपक्षय से यहां लावा या रेगुर मिट्टी का निर्माण हुआ जिसमें कपास बहुत अच्छा पैदा होने के कारण इसे कपासी मिट्टी भी कहते हैं।