ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जीवन:
आजमगढ़ उत्तरप्रदेश ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान एक देशभक्त मुसलमान के रूप में भारत की समावेशी धर्मनिरपेक्षता के सबसे बड़े प्रतीकों में एक हैं, जो 1947-48 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले भारतीय सेना के सर्वोच्च पद के अधिकारी थे।
ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जन्म 15 जुलाई, 1912 को आज़मगढ़ जनपद (अब मऊ) के बीबीपुर नामक गांव में हुआ था। आज़ादी के बाद आर्मी के अफ़सरों को यह चुनने की आज़ादी दी गई कि वे हिन्दुस्तान में रहें या पाकिस्तान चले जाएं, लेकिन ब्रिगेडियर उस्मान ने हिन्दुस्तान को चुना। ब्रिगेडियर उस्मान ने 1935 में भारतीय सेना की 10वी बलूच रेजिमेंट से अपने सैन्य करियर की शुरुआत की।
कई अन्य अधिकारियों के साथ भारत के विभाजन के समय उन्होंने भी पाकिस्तान सेना के जाने और उनके जनरल पद के लिए भी मना कर दिया और भारतीय सेना का हिस्सा बनकर भारत देश की सेवा को जारी रखा। जम्मू-कश्मीर में हमलावरों से लड़ते हुए उन्होंने जुलाई 1948 में अपने प्राण माँ भारती के चरणों में अर्पण कर दिया।
सैंडहर्स्ट से पास हुए:
ब्रिगेडियर उस्मान के पिता चाहते थे कि उनका बेटा सिविल सर्विस में जाए। लेकिन उन्होंने सेना को चुना। 1920 से भारतीयों को सेना में कमीशन अफसर के तौर पर नियुक्त किया जाने लगा। लेकिन उस वक्त मुकाबला बहुत कड़ा था।
उन्होंने सैंडहर्स्ट के लिए आवेदन किया और चुने गए। जुलाई 1932 में वह इंग्लैंड गए। वास्तव में सैंडहर्स्ट में भारतीयों के लिए यह अंतिम कोर्स था क्योंकि उसके बाद से भारतीय अधिकारियों को उसी साल देहरादून में खुली इंडियन मिलिट्री अकादमी में प्रशिक्षण दिया जाने लगा। दस अन्य भारतीयों के साथ ब्रिगेडियर उस्मान 1 फरवरी, 1934 को सैंडहर्स्ट से पास हुए।
नौशेरा और झांगर की लड़ाई:
1947-48 भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय में ब्रिगेडियर उस्मान को 50 पैरा ब्रिगेड के ब्रिगेड कमांडर के रूप में जम्मू-कश्मीर के मोर्चे पर तैनात किया गया था। नौशेरा और झांगर, जम्मू-कश्मीर में दो अत्यधिक रणनीतिक स्थान हैं जिसे पाकिस्तान ने अपने कब्जे में ले लिया था और 10000 सैनिकों की मोर्चाबंदी कर रखा था। इसे वापस लेने की जिम्मेदारी ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को दी गई।
उस्मान पर 50000 का इनाम:
बौखलाए पाकिस्तान को जब यह पता चली की उसके मेजर जनरल का पद ठुकराने वाले उस्मान को भारत ने नौशेरा की कमान सौंपी है तो उसने उस्मान का सर कलम करने पर 50000 का इनाम रखा।
उन्होंने अपने सैनिकों का नेतृत्व किया और जनवरी-फरवरी 1948 में नौशेरा और झांगर पर एक भयंकर हमले को विफ़ल किया।
नौशेरा के शेर:
इस युद्ध मोर्चे पर अदम्य साहस का परिचय देते हुए इस असंभव सी विजय के लिए देश और सेना में उन्हें “नौशेरा के शेर” के रूप में जाना जाता था। यदि ब्रिगेडियर उस्मान न होते तो आज नौशेरा और झांगर पाकिस्तान का हिस्सा होता।
पाकिस्तान के करीब 5000 कबायली घुसपैठियों ने एक मस्जिद में शरण ले रखी थी। हमारे सैनिक एक धार्मिक इमारत पर हमला करने से हिचकिचा रहे थे। जब यह बात उनको पता चली तो खुद वहां पहुंचे और हमला करने का आदेश दिया। उन्होंने कहा कि जब घुसपैठियों ने इस पर कब्जा कर लिया तो अब यह इमारत धार्मिक नहीं रह गई।
उस वर्ष की 3 जुलाई को पाकिस्तानी सेना और आदिवासी हमलावरों से लड़ते हुए ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान मात्र 35 साल की उम्र में शहीद हो गए। ब्रिगेडियर उस्मान को मरणोपरांत भारतीय सैन्य सम्मान “महावीर चक्र” से सम्मानित किया गया।
शहीद ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान
एक भारतीय पत्रकार, ख्वाजा अहमद अब्बास ने उनकी मृत्यु पर लिखा था,
“a precious life, of imagination and unswerving patriotism, has fallen a victim to Pakistani communal fanaticism. Brigadier Usman’s brave example will be an abiding source of inspiration for Free India”.
“कल्पना और अडिग देशभक्ति से भरा एक अनमोल जीवन, पाकिस्तानी सांप्रदायिक कट्टरता का शिकार हो गया। ब्रिगेडियर उस्मान के वीरता का उदाहरण आज़ाद भारत के लिए प्रेरणा का एक स्थायी स्रोत होगा”।
उनकी शहादत के बाद जब उनका शव सम्मान से दिल्ली लाया गया तो उन्हें जामिया मिलिया इस्लामिआ के प्रांगण में ससम्मान दफनाया गया और इसमें स्वयं नेहरू अपनी पूरी कैबिनेट के साथ मौजूद थे और आज भी जामिया में उनकी कब्र मौजूद है जो हमें देश के लिए सर्वस्व बलिदान की प्रेरणा देती है।
उसकी कब्र के पत्थर पर लिखा है;
“To every man upon this earth
Death comes soon or late.
And how can man die better
Than facing fearful odds,
For the ashes of his fathers,
And the temples of his Gods.”