तुलसीदास के प्रेरणादायक दोहे
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।
बहादुर व्यक्ति अपनी वीरता युद्ध के मैदान में शत्रु के सामने युद्ध लड़कर दिखाते हैं और कायर व्यक्ति लड़कर नहीं बल्कि अपनी बातों से ही वीरता दिखाते हैं।
तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक।
तुलसीदास जी कहते हैं कि किसी भी विपदा से यह 7 गुण आपको बचाएंगे- 1: विद्या 2: विनय, 3: विवेक, 4:साहस, 5: आपके भले कर्म, 6: सत्यनिष्ठा और 7: भगवान के प्रति आपका विश्वास।
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छोड़िये जब तक घट में प्राण।।
तुलसी दास जी कहते है कि धर्म दया भावना से उत्पन होता है और अभिमान जो की सिर्फ पाप को ही जन्म देता है। जब तक मनुष्य के शरीर में प्राण रहते है तब तक मनुष्य को दया भावना कभी नहीं छोड़नी चाहिए।
करम प्रधान विस्व करि राखा।
जो जस करई सो तस फलु चाखा।।
तुलसीदास जी कहते है कि इश्वर ने कर्म को ही महानता दी है। उनका कहना है कि जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल मिलता है।
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए।
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए।।
तुलसीदास जी कहते है कि हमें भगवान पर भरोसा करके बिना किसी डर और भय के जीना चाहिए। कुछ भी अनहोना नहीं होगा और जिसे होना होगा वो होकर ही रहेगा। इसलिए हमें बिना किसी चिंता के ख़ुशी से अपने जीवन को जीना चाहिए।
प्रेरक दोहे
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहूँ जौं चाहसि उजिआर।।
तुलसीदास जी कहते है कि हे मनुष्य यदि तुम अपने अन्दर और बाहर दोनों तरफ उजाला चाहते हो तो अपनी मुखरूपी द्वार की जीभरुपी देहलीज पर राम नाम रूपी मणिदीप को रखो।
काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान।।
तुलसीदास जी कहते है कि जब तक किसी भी व्यक्ति के मन कामवासना की भावना, लालच, गुस्सा और अहंकार (Ego) से भरा रहता है तब तक उस व्यक्ति और ज्ञानी में कोई अंतर नहीं होता दोनों ही एक समान ही होते है।
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और।
बसीकरण इक मन्त्र हैं परिहरू बचन कठोर।।
तुलसीदास जी कहते है कि मीठे वचन सही ओर सुख को उत्पन करते है ये सभी और सुख ही फैलाते है। तुलसीदास जी कहते है कि मीठे वचन किसी को अपने वस में करने के अच्छा मन्त्र है। इसलिए सभी लोगों को कठोर वचन को त्यागकर मीठे वचन अपनाने चाहिये।
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।
जिस समूह में शिरकत होने से वहां के लोग आपसे खुश नहीं होते और वहां लोगों की नजरों में आपके लिए प्रेम या स्नेह नहीं है, तो ऐसे स्थान या समूह में हमें कभी शिरकत नहीं करना चाहिए, भले ही वहां स्वर्ण बरस रहा हो।
सरनागत कहूं जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावंर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि।।
जो व्यक्ति अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते है वे क्षुद्र और पापमय (Sinful) होते है। इनको देखना भी सही नहीं होता है।
Tulsidas Famous Motivational Dohe
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।
नेक जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।।
तुलसीदास जी कहते है कि जो मेरा शरीर है पूरा चमड़े से बना हुआ है जो कि नश्वर (नष्ट होने वाला) है। फिर इस चमड़े से इतना मोह छोड़कर राम नाम में अपना ध्यान लगाते तो आज भवसागर से पार हो जाते।
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।
तुलसीदास जी कहते हैं कि मधुर वाणी सभी ओर सुख का वातावरण पैदा करती हैं। यह हर किसी को अपनी और सम्मोहित करने का यही एक कारगर मंत्र है इसलिए हमें कटु वाणी त्याग कर मधुरता से बातचीत करना चाहिए।
मुखिया मुखु सो चाहिये खान पान कहूँ एक।
पालड़ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक।।
तुलसीदास जी कहते है कि मुखिया को हमारे मुहं के समान होना चाहिए। जो खाता तो एक है पर पूरे शरीर का पालन पोषण (Upbringing) करता है।
सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि।
सो पछिताई अघाइ उर अवसि होई हित हानि।।
तुलसी दास जी कहते है कि गुरू और स्वामि की अपने हित में दी गई सीख को कभी नहीं अपने सर चढ़ाना चाहिए। वह हृदय में बहुत ही पछताता है। एक दिन उसके हित हानि जरूर होती है।
Famous Motivational Dohe
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए।
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए।
तुलसीदास कहते हैं, भगवान पर भरोसा करें और किसी भी भय के बिना शांति से सोइए। कुछ भी अनावश्यक नहीं होगा, और अगर कुछ अनिष्ट घटना ही है तो वो घटकर ही रहेगी इसलिए बेकार की चिंता और उलझन को छोड़कर मस्त रहना चाहिए।
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धर्म तन तीनि कर होई बेगिहीं नास।।
तुलसीदास जी कहते है कि यदि गुरू, वैद्य और मंत्री भय या लाभ की आशा से प्रिय बोलते है तो धर्म, शरीर और राज्य इन तीनों का विनाश शीघ्र ही तय है।
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास।।
तुलसीदास जी कहते है कि राम नाम कलपतरु और कल्यान का निवास हैं। जिसको स्मरण करने से भाँग सा तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया।
तुलसी देखि सुवेसु भूलहिं मूढ न चतुर नर।
सुंदर के किहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि।।
तुलसीदास जी कहते है कि सुंदर वेशभूषा देखकर कोई भी व्यक्ति चाहे मुर्ख हो या बुद्धिमान कोई भी धोखा खा जाता है। ठीक उसी प्रकार मोर दिखने में बहुत ही सुंदर होता है। लेकिन उसके भोजन को देखा जाए तो वह सिर्फ सांप और कीड़ो को ही खाता है।
10 Inspirational Dohas
तुलसी इस संसार में भांति भांति के लोग।
सबसे हस मिल बोलिए नदी नाव संजोग।।
तुलसीदास जी कहते है कि इस संसार में कई तरह के लोग है। इन सब लोगो से मिल जुल कर बोलना और रहना चाहिए। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक नौका नदी के साथ प्यार से एक किनारे से दुसरे किनारे पर पहुँच जाती है। इसी प्रकार मनुष्य भी अवश्य भवसागर से पार हो जायेगा।
तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान।
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण।।
तुलसी दास जी कहते है कि समय ही सबसे बड़ा बलवान है। समय ही होता है जो सबको बड़ा या छोटा बनाता है। जैसे एक बार महान धनुर्धर अर्जुन का समय ख़राब था तो वह भीलों के हमले से गोपियों की रक्षा नहीं कर पाए।
बिना तेज के परुष की अवशि अवज्ञा होय।
आगि बुझे ज्यों रख की आप छुवै सब कोय।।
तुलसीदास जी कहते है कि तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई महत्व नहीं दे।ते उसकी कोई बात नहीं मानते। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार राख की आग बुझ जाने पर हर कोई उसको छूता है।
आवत ही हरषे नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।
तुलसी दास जी कहते है कि जहाँ आपके जाने से लोगों में ख़ुशी नहीं होती और आपका स्नेह और प्यार नहीं होता। वहां आपको कभी नहीं जाना चाहिए चाहे वहां पर धन की बारिश ही क्यों नहीं हो रही हो।
आगें कह मृदु वचन बनाई, पाछे अनहित मन कुटिलाई।
जाकर चित अहिगत सम भाई, अस कुमित्र परिहरेहि भलाई।।
तुलसीदास जी कहते है कि ऐसे मित्र जो आपके सबने अच्छा बनकर रहते है और मन ही मन बुराई का भाव रखते है। जिसका मन सांप की चाल के समान टेढ़ा हो। ऐसे मित्र को आपको त्याग करने में ही भलाई है।