विश्व के एकमात्र योद्धा जिनकी लड़ाई न राज्य के सीमा के लिए थी, न धन के लिए और न ही किसी अन्य लालसा के लिए था …
वो था मात्र धर्म रक्षा का संकल्प युद्ध …
महाभारत था धर्म युद्ध और अर्जुन से बड़ा धनुर्धारी न पैदा हुआ लेकिन पुत्र अभिमन्यु वध का समाचार मिलते ही दुःख और क्षोभ से गांडीव फ़िसल गया, पैर काँप गया ……
अर्जुन के गुरु द्रोण अपने पुत्र की मृत्यु के झूठे ख़बर मात्र से धनुष रख के रोने लगे और युद्ध बंद कर दिया ….
पुत्र से बिछड़ने मात्र के संताप से देवासुर संग्राम के विजेता चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ गिर पड़े और फिर न उठे …
ऐसे में इतिहास का सिंहावलोकन करने पर गुरु गोविंद सिंह ही मात्र एक ऐसे देवतुल्य महापुरुष हुए जिन्होंने पुत्रों को बलिदान होने के लिए अपने हाथ से सज़ा के भेजा ….
चमकौर का क़िला छोड़ते समय जब उनके अनुयायियों ने अपने पगड़ी खोलकर दोनो साहबजादों के बलिदानी शरीर को ढकना चाहा तो गुरु जी ने ये कह के मना कर दिया कि बाकी के बलिदानी भी उनके पुत्र ही हैं .. फिर इनके लिए व्यवस्था क्यों, बाक़ी के वंचित रहें क्यों ?
लड़ाई चलते रहने के समय, पुत्रों के बलिदानी होने के पहले या बाद … उफ़नाइ नदी पार करने के बाद उसी हाल में गुरु जी ने धर्म रक्षा के लिए बिना विचलित हुए ईश्वर का पूजन और शबद कीर्तन भी किया ….
चारों साहबजादों के बलिदान होने पर गुरु जी ही एक मात्र थे, जिनके न पैर कांपे, न धनुष फिसला, न तलवार की चमक कम हुई, जिन्होंने धर्म रक्षार्थ योद्धा लोगों की ओर देखकर कहा …
इन पुतरन के शीश पर वार दिए सुत चार ..
चार मुए तो क्या हुआ, जीवित कई हज़ार ..
गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे।
वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं;
भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन।
गुरू गोबिन्द सिंह ने सिखों की पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया।
गुरु गोविंद सिंह को ‘सरबंसदानी’ (सर्ववंशदानी) भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं।
ऐसे महानायक, महायोद्धा, धर्मरक्षक, महाज्ञानी ईश्वर तुल्य गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म दिवस है ……
किसी के भी जीवन में मनाने के लिए इससे बड़ा उपलक्ष और क्या हो सकता है ….
गुरुजी को शत शत प्रणाम ….
गुरु गोविंदजी के बारे में लाला दौलतराय, जो कि कट्टर आर्य समाजी थे, लिखते हैं, मुझे पूर्ण पुरुष के सभी गुण गुरु गोविंदसिंह में मिलते हैं।’ अतः लाला दौलतराय ने गुरु गोविंदसिंहजी के बारे में पूर्ण पुरुष नामक एक अच्छी पुस्तक लिखी है।
इसी प्रकार मुहम्मद अब्दुल लतीफ भी लिखता है कि जब मैं गुरु गोविंदसिंहजी के व्यक्तित्व के बारे में सोचता हूँ तो मुझे समझ में नहीं आता कि उनके किस पहलू का वर्णन करूँ। वे कभी मुझे महाधिराज नजर आते हैं, कभी महादानी, कभी फकीर नजर आते हैं, कभी वे गुरु नजर आते हैं।
Great Man Very Good Motivational Thoughts By Guru Gobind Singh Ji
Thanks For Sharing This Amazing Inspiring Story.