प्रेम पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit Shloks on Love with Hindi Meaning

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प्रेम पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

प्रेम को उसके वास्तविक रूप में अपने पारिवारिक संबंधों में देखना शुरू करें और सही अर्थों में परिभाषित करें। जब माँ अपने हिस्से की भी रोटी आपको यह कहकर दे दे की उसे भूख नही है, वह प्रेम है।

जब पिताजी अपने फ़टे जूते नही बदलते और आपके लिए महंगे ब्रांडेड जूते ला देते हैं, वह प्रेम है। जब बड़े भैय्या टूटा फोन चला रहे हों,लेकिन आपके कहने पर आपके लिए बढ़िया स्मार्ट फ़ोन खरीदते हैं, वह प्रेम है।

जब आपकी पत्नी का काम करने का मन न हो, फिर भी आपके लिए आपका मन पसंद खाना बनाती हैं, वह प्रेम है जब आपकी बहना को रक्षाबंधन पर आप उसका मन पसंद तोहफा ना दे पाए हों फिर भी आपको उतना ही प्यार करती है,वह प्रेम है।

आइये आनंद लेते हैं यहाँ दिए गए प्रेम पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित (Sanskrit Shloks on Love with Hindi Meaning);

 

गावश्चिद्घा समन्यवः सजात्येन मरुतः सबन्धवः ।
 रिहते ककुभो मिथः ॥

हे समानतेजस्वी अथवा समान क्रोधवाले दुष्टमारक शिष्टरक्षक सैनिकजनों ! आप देखें। आप लोगों की रक्षा के कारण समान जाति से समान बन्धुत्व को प्राप्त ये यशोगायिका प्रजाएँ अपने अपने स्थान में परस्पर प्रेम कर रहे हैं ॥ (ऋ 8-20-21)

अबन्धुर्बन्धुतामेति नैकट्याभ्यासयोगतः।
यात्यनभ्यासतो दूरात्स्नेहो बन्धुषु तानवम्॥

बार बार मिलने से अपरिचित भी मित्र बन जाते हैं। दूरी के कारण न मिल पाने से बन्धुओं में भी स्नेह कम हो जाता है।

बन्धनानि खलु सन्ति बहूनि प्रेमरज्जुकृतबनधनमन्यत्।
दारुभेद निपुणोऽपि षडङ्घ्रि निष्क्रियो भवति पङ्कजकोशे॥

बन्धन तो अनेकोँ हैँ पर प्रेम बन्धन जैसे नहीँ। (प्रेम बन्धन के कारण ही) काष्ठ मेँ छिद्र करने वाला भ्रमर कमलकोष मेँ निष्क्रिय हो जाता है।

यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्।
स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्त्वा वसेत्सुखम्॥

जिसे जिससे प्रेम होता है उसे उससे ही भय भी होता है। प्रीति/स्नेह सारे दुःखोँ का मूल है अतः स्नेह(प्रेम) बन्धन को तोड़ कर सुख से रहना चाहिये।

शिरसि विधृतोSपि नित्यं यत्नादपि सेवितो बहुस्नेहैः ।
तरुणीकच इव नीचः कौटिल्यं नैव विजहाति ॥

एक युवती यद्यपि नित्य अपने सिर के केशों को बडे यत्न और प्रेम पूर्वक तैल लगा कर संवारती है फिर भी उसके केश आपस में उलझना नहीं छोडते हैं ।

वैसे ही नीच व्यक्ति भी उनके साथ चाहे कितना ही प्रेमपूर्वक व्यवहार क्यों न किया जाये वे अपनी स्वभावगत कुटिलता को नहीं छोडते हैं ।

ऋणं याञ्च्या च वृद्धत्वं जारचोर दरिद्रता ।
रोगाश्च भुक्तशेषश्चाप्यष्ट कष्टाः प्रकीर्तिताः ॥

ऋणी होना, भिखारी होना, बुढापा, किसी विवाहिता स्त्री का प्रेमी (उपपति) होना, चोर होना, दरिद्र होना, रोगी होना तथा बचे खुचे उच्छिष्ट भोजन पर निर्भर रहना ये आठ परिस्थितियां अत्यन्त कष्टकर कही जाती हैं ।

आनृशंस्यं क्षमा सत्यं अहिंसा दम आर्जवः ।
प्रीतिः प्रसादो माधुर्यं मार्दवं च यमा दश ॥

निर्दयी न होना, क्षमा, सत्यवादिता,अहिंसा , दम (अपनी प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण), ईमानदारी. सबके प्रति प्रेम भाव, स्पष्ट और सरल विचार होना, मधुर व्यवहार और दयालुता, ये दश नियम और कर्तव्य शास्त्रों द्वारा नैतिक सदाचरण के लिये बताये गये हैं ।

 

Sanskrit Shloks on Love with Hindi Meaning

दर्शने स्पर्शणे वापि श्रवणे भाषणेऽपि वा।
यत्र द्रवत्यन्तरङ्गं स स्नेह इति कथ्यते॥

यदि किसी को देखने से, स्पर्श करने से या सुनने से या वार्ता करने से हृदय द्रवित हो तरङ्गमय हो जाये तो इसे स्नेह(प्रेम) कहते हैँ।

कृते प्रतिकृतं कुर्यात्ताडिते प्रतिताडितम्।
करणेन च तेनैव चुम्बिते प्रतिचुम्बितम्॥

हर कार्रवाही के लिए एक जवाबी कार्रवाही होनी चाहिए। हर प्रहार के लिए एक प्रति-प्रहार और उसी तर्क से हर चुम्बन के लिए एक जवाबी चुम्बन।

ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति।
भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्॥

लेना, देना, खाना, खिलाना, रहस्य बताना और उन्हें सुनना ये सभी 6 प्रेम के लक्षण है।

यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता,
साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः।
अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या,
धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च॥

मैं अपने चित्त में रात दिन जिसकी स्मृति सँजोये रखता हूँ वो मुझसे प्रेम नहीं करती, वो किसी और पुरुष पर मुग्ध है।

वह पुरुष किसी अन्य स्त्री में आसक्त है। उर पुरुष की अभिलाषित स्त्री मुझपर प्रसन्न है।

इसलिए रानी को, रानी द्वारा चाहे हुए पुरुष को, उस पुरुष की चाहिए हुई वेश्या को तथा मुझे धिक्कार है और सबसे अधिक कामदेव को धिक्कार है जिसने यह सारा कुचक्र चलाया।

धनुः पौश्पं मौर्वी मधुकरमयी चञ्चलदृशां
दृषां कोणो बाणः सुहृदविजितात्मा हिमकरः ।
तथाप्येकोSनङ्गस्त्रिभुवनमपि व्याकुलयति
क्रियासिद्धिः सत्वे भवति महतां नोपकरणे ॥

प्रेम के देवता कामदेव का धनुष पुष्पों से बना हुआ है तथा उसकी प्रत्यंचा भ्रमरों से बनी है , चञ्चल नेत्रों की तिरछी दृष्टि उसके बाण हैं तथा सबके मन को प्रभावित करने वाला चन्द्रमा उसका मित्र है फिर भी अकेला ही कामदेव तीनों लोकों को अपने प्रभाव से व्याकुल कर देता है ।

सच है महान और शक्तिशाली व्यक्तियों के कार्य उनके पराक्रम से सिद्ध होते हैं न कि उनके विभिन्न उपकरणों के कारण । 

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Shivesh Pratap

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