पिता पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit Shlok on Father
पिता शब्द ‘पा रक्षणे’ धातु से निष्पन्न होता है। ‘यः पाति स पिता’ जो रक्षा करता है, वह पिता कहलाता है। कई बार हमारे अनेक मित्र, सामाजिक बन्धु, चिकित्सक, अधिवक्ता, रक्षाकर्मी व अनेक पारिवारिक संबंधी हमारी रक्षा की भूमिका में होते हैं। इससे वह पिता अर्थात् हमारी रक्षा की भूमिका में होते हैं।
अतः पिता एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है। इसे केवल रूढ़ अर्थों में ही नहीं लिया जाना चाहिये अपितु चिन्तन-मनन कर इसके अनेक प्रयोगों पर विचार किया जाना व उन अर्थों को भी ग्रहण करना चाहिये। ऋषि यास्काचार्य प्रणीत ग्रन्थ ‘निरुक्त’ के सूत्र 4/21 में कहा गया है-‘‘पिता पाता वा पालयिता वा”। निरुक्त 6/15 में कहा है –‘‘पिता–गोपिता” अर्थात् पालक, पोषक और रक्षक को पिता कहते हैं।
यहाँ पिता पर संस्कृत श्लोक दिया जा रहा है जिसे पढ़ कर आपको अच्छा लगेगा;
उपाध्यायान्दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता।
सहस्त्रं तु पितृन् माता गौरवेणातिरिच्यते।।
दस उपाध्यायों से बढ़कर आचार्य, सौ आचार्यों से बढ़कर पिता और एक हजार पिताओं से बढ़कर माता गौरव में अधिक है, अर्थात् बड़ी है। मनुस्मृति
माता गुरुतरा भूमेः पिता चोच्चतरं च खात्।
मनः शीघ्रतरं वाताच्चिन्ता बहुतरी तृणात्।।
माता पृथिवी से भारी है। पिता आकाश से भी ऊंचा है। मन वायु से भी अधिक तीव्रगामी है और चिन्ता तिनकों से भी अधिक विस्तृत एवं अनन्त है। महाभारत
पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः।
पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः॥
पिता धर्म है, पिता स्वर्ग है और पिता ही सबसे श्रेष्ठ तप है। पिता के प्रसन्न हो जाने पर सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हो जाते हैं। पद्मपुराण
My Father is my heaven, my father is my dharma, he is the ultimate penance of my life. If he is happy, all deities are pleased.
पन्चान्यो मनुष्येण परिचया प्रयत्नतरू।
पिता माताग्निरात्मा च गुरुश्च भरतर्षभ॥
भरतश्रेष्ठ ! पिता, माता अग्नि, आत्मा और गुरु – मनुष्य को इन पांच अग्नियों की बड़े यत्न से सेवा करनी चाहिए।
Bharat Shrestha! Father, Mother, Fire, Soul and Master – Human beings should serve these five fire diligently.
पितरौ यस्य तप्यन्ति सेवया च गुणेन च।
तस्य भागीरथी स्नानमहन्यहनि वर्तते॥
जिसकी सेवा और सदगुणों से पिता-माता संतुष्ट रहते हैं, उस पुत्र को प्रतिदिन गंगा-स्नान का पुण्य मिलता है। पद्मपुराण
Whose service and virtues keep father and mother satisfied, That son gets the blessings of holy dip in the Ganges.
Sanskrit Shlok on Father’s Day
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्॥
माता सर्वतीर्थमयी है और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप है। इसलिये सब प्रकार से माता-पिता का पूजन करना चाहिये। पद्मपुराण
Mother is omniscient and father is the form of all deities. That is why parents should be worshiped in every way.
शरीरकृत् प्राणदाता यस्य चान्नानि भुंजते।
क्रमेणैते त्रयोऽप्युक्ताः पितरो धर्मशासने।।
गर्भाधान द्वारा शरीर का निर्माण करता है वह प्रथम, जो अभयदान देकर प्राणों की रक्षा करता है वह द्वितीय और जिसका अन्न भोजन किया जाता है वह तृतीय, यह तीनों पिता होते हैं।
मातरं पितरंश्चैव यस्तु कुर्यात प्रदक्षिणम्।
प्रदक्षिणीकता तेन सप्तदीपा वसुन्धरा॥
जो माता-पिता की परिक्रमा करता है उसकी तो सप्तद्वीपों वाले धरती माता की परिक्रमा हो जाती है। पद्मपुराण
The orbit of the parents revolves around the earth.
मातृपितृकृताभ्यासो गुणितामेति बालकः।
नगर्भच्युतिमात्रेण पुत्रो भवति पण्डितः ॥
माता और पिता के कारित अभ्यास से बालक विद्वान बनता है न कि गर्भ से बाहर आते ही बिना पुरुषार्थ के ही विद्वान् बन जाता है।
The child taught by mother and father becomes qualified; the child does not become learned just by being born.