ज्ञान पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Shlokas for knowledge with Hindi meaning

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  ज्ञान पर संस्कृत श्लोक,संस्कृत सुभाषितानि

 

हर्तुर्याति न गोचरं किमपि शं पुष्णाति यत्सर्वदा
    ह्यर्थिभ्यः प्रतिपाद्यमानमनिशं प्राप्नोति वृद्धिं पराम् ।
कल्पान्तेष्वपि न प्रयाति निधनं विद्याख्यमन्तर्धन
    येषां तान्प्रति मानमुज्झत नृपाः कस्तैः सह स्पर्धते ॥
ज्ञान अद्भुत धन है,  ये आपको एक ऐसी अद्भुत ख़ुशी देती है जो कभी समाप्त नहीं होती। जब कोई आपसे ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा लेकर आता है और आप उसकी मदद करते हैं तो आपका ज्ञान कई गुना बढ़  जाता है।शत्रु और आपको लूटने वाले भी इसे छीन नहीं पाएंगे यहाँ तक की ये इस दुनिया के समाप्त  हो जाने पर भी ख़त्म नहीं होगी।
अतः हे राजन! यदि आप किसी ऐसे ज्ञान के धनी व्यक्ति को देखते हैं तो अपना अहंकार त्याग दीजिये और समर्पित हो जाइए, क्यूंकि ऐसे विद्वानो से  प्रतिस्पर्धा करने का कोई अर्थ नहीं है।

ज्ञानं तु द्विविधं प्रोक्तं शाब्दिकं प्रथमं स्मृतम् ।
अनुभवाख्यं द्वितीयं तुं ज्ञानं तदुर्लभं नृप ॥

हे राजा ! ज्ञान दो प्रकार के होते हैं; एक तो स्मृतिजन्य शाब्दिक ज्ञान, और दूसरा अनुभवजन्य ज्ञान जो अत्यंत दुर्लभ है।

जन्मदुःखं जरादुःखं मृत्युदुःखं पुनः पुनः ।
संसार सागरे दुःखं तस्मात् जागृहि जागृहि ॥

संसार सागर में जन्म का, बुढापे का, और मृत्यु का दुःख बार बार आता है, इसलिए (हे मानव!), “जाग, जाग !”

एकः शत्रु र्न द्वितीयोऽस्ति शत्रुः ।
अज्ञानतुल्यः पुरुषस्य राजन् ॥

हे राजन् ! इन्सान का एक ही शत्रु है, अन्य कोई नहीं; वह है अज्ञान ।

आशा हि लोकान् बध्नाति कर्मणा बहुचिन्तया ।
आयुः क्षयं न जानाति तस्मात् जागृहि जागृहि ॥

बडी बड़ी चिंताएं कराके, कर्मो द्वारा आशा इंसान को बंधन में डालती है । इससे खुद के आयुष्य का क्षय हो रहा है, उसका उसे भान नहीं रहेता; इस लिए “जागृत हो, जागृत हो ।”

Sanskrit Shlokas for knowledge with Hindi meaning

न जातु कामः कामानुपभोगेन शाम्यति ।
हविषा कृष्णवत्मैर्व भुय एवाभिवर्धते ॥

जैसे अग्नि में घी डालने से वह अधिक प्रज्वलित होती है, वैसे भोग भोगने से कामना शांत नहीं होती, उल्टे प्रज्वलित होती है ।

शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दसामिति ।
ज्योतिषामयनं चैव षडंगो वेद उच्यते ॥

शिक्षा, कल्पसूत्र, व्याकरण (शब्द/ व्युत्पत्ति शास्त्र), निरुक्त (कोश), छन्द (वृत्त), और ज्योतिष (समय/खगोल शास्त्र) – ये छः वेदांग कहे गये हैं ।

विषययोगानन्दौ द्वावद्वैतानन्द एव च ।
विदेहानन्दो विख्यातो ब्रह्मानन्दश्च पञ्चमः ॥

विषयानंद, योगानंद, अद्वैतानंद, विदेहानंद, और ब्रह्मानंद, ऐसे पाँच प्रकार के आनंद कहे गए हैं ।

यावज्जीवेत् सुखं जीवेदृणं कृत्वा धृतं पिबेत् ।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥

जितना जिओ, शौक से जिओ; ऋण (लोन) लेकर भी घी पीओ (भोग भुगतो) । भस्मीमभूत होने के बाद, यह देह वापस कहाँ आनेवाला है ? (चार्वाक दर्शन, नास्तिक मत)

विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनं
    विद्या भोगकारी यशःसुखकारी विद्या गुरूणां गुरुः ।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परा देवता
    विद्या राजसु पूजिता न तु धनं विद्याविहीनः पशुः ॥
वास्तव में केवल ज्ञान ही मनुष्य को सुशोभित करता है, यह ऐसा अद्भुत खजाना है जो हमेशा सुरक्षित और छिपा रहता है, इसी के माध्यम से हमें गौरव और सुख मिलता है। ज्ञान ही सभी शिक्षकों को शिक्षक है। विदेशों में विद्या हमारे बंधुओं और मित्रो की भूमिका निभाती है। ज्ञान ही सर्वोच्च सत्ता है। राजा – महाराजा भी ज्ञान को ही पूजते व् सम्मानित करते हैं न की धन को। विद्या और ज्ञान के बिना मनुष्य केवल एक पशु के समान है।

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Shweta Pratap

I am a defense geek

4 thoughts on “ज्ञान पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Shlokas for knowledge with Hindi meaning

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