हिन्दू धर्म का ब्रह्म बनाम अब्राहमिक अल्लाह
निराकार ब्रह्म यथार्थ में क्या है ? पढ़ें और शेयर करें
वैदिक युग के सामाजिक व्यवस्थापन के बाद हिन्दू समाज के मनीषी इस बात की खोज में लग गए की सिर्फ खाना, पीना और मृत्यु ही इस जीवन का उद्देश्य नहीं है। इस जीवन का परम उद्देश्य क्या है ? इस महान उद्देश्य की खोज में ही हिन्दू संस्कृति में “उपनिषदों” और षड्दर्शनों (साँख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त) का प्राकट्य हुआ।
एक ओर हम वैदिक हैं और ईश्वर से लौकिक समृद्धि और अभय की याचना करते हैं तो दूसरी ओर औपनिषदिक काल में हम मुक्तिकामी चेतना के विकास से मानवीय ऊर्जा को ब्रह्मांडीय सत्ता के साथ लय करते नज़र आते हैं। संसार में यदि शोध की बात होती है तो “आइन्स्टाइन” जैसे वैज्ञानिकों ने भी ये कहा है की चेतना के स्तर पर रहस्यों के भेदन में हिन्दू दर्शन का जो शोध है वो विज्ञान के किसी भी शोध से दुष्कर है और भारतीय मनीषियों ने इसे कर दिखाया है।
हिन्दू धर्म में मोक्ष ही मानव का परम उद्देश्य है। मोक्ष का अंग्रेजी में कोई पर्यायवाची नहीं है परन्तु इसे COMPLETE EQUANIMITY “पूर्ण रूप से ब्रम्ह में व्याप्त होना” से समझा जा सकता है। हास्य की बात ये है की पश्चिम के अब्राहमी धर्म (मुस्लिम,इसाई, यहूदी) सनातन धर्म के हज़ारों साल बाद पैदा हुए और उन्होंने स्वर्ग नरक की अवधारणा से लोगों में डर पैदाकर के धर्म को उन पर थोपा।
एक ओर जहाँ हिन्दू संस्कृति ने लोगों को “निर्भयता” और “प्रज्ञानं ब्रम्ह” का मंत्र सिखाया वहीँ दूसरी ओर मुसलामानों ने ईसाईयों ने अल्लाह को को अव्यक्त की श्रेणी में डाल दिया। कु*आन में अल्लाह की खोज में जब जिब्राइल ने मुहम्मद साहब को सातवें आसमान के आगे अकेले जाने दिया तो फिर वो प्रकाश पुंज को देख वापस लौट आये। ऐसा वर्णन आता है। 72 हूरों और अंगूर के शराब वाले स्वर्ग की अवधारणा कितनी हास्यास्पद है और इसी के पीछे पूरे संसार को आतंक की फैक्ट्री बनाने वालों को हिन्दू संस्कृति से कुछ समझना चाहिए।
कम से कम शांतिप्रिय लोग निराकार की बाते ना करें तो अच्छा हो। उनका अल्लाह शरीर धारी है .. मैं नही कह रहा, किताब खुद कह रही है:
अल्लाह ने 6 दिन में जमीन और आसमान बनाया और सातवे दिन तख़्त पर जा बेठे। तख़्त पर शरीर धारी बेठेगा या निराकार ?
अल्लाह ने स्रष्टि बनाने के लिए सिर्फ इतना ही कहा “कुन” अर्थात हो जा और “फाया कुन” अर्थात हो गया ..कोई व्यक्ति बिना मुख “कुन” कैसे कहेगा ? अल्लाह ने सभी को मिटटी लाने को कहा फिर अल्लाह ने इंसानों को बनाया अपने दोनों हाथों से, हाथ निराकार के होते है क्या ? अल्लाह ने फूंक मारी और हवा का निर्माण हुआ। मुख बिना फूंक केसे मरेगा अल्लाह ?
ब्रह्म बनाम अल्लाह:
यदि ब्रह्म किसी के पाप और पुण्य का फैसला करेगा तो इसका अर्थ है की उसमे दोष दर्शन का गुण है और ऐसी चेतना उसे कभी पूर्ण ब्रह्म नहीं बना सकती है। यदि अल्लाह क़यामत के दिन केवल ईमान वालों को जन्नत भेजेगा तो इसका अर्थ है की अल्लाह में राग और द्वेष है इसलिए वह पूर्ण ब्रह्म नहीं है। हिन्दू धर्म का ब्रह्म तो चिदानन्दरूप है। ब्रह्म के बारे में हिन्दू धर्म की विवेचना को साधारण अर्थों में समझाने हेतु अद्वैत शिरोमणि श्री आदि शंकराचार्य ने “निर्वाण शतकम” लिखा है जिसे मै अर्थ सहित लिख रहा हूँ। इसे पढ़ कर आप को निराकार या पूर्ण ब्रह्म के वास्तविक स्वरुप का पता चलेगा। इसे पढने के बाद आप को समझ आयेगा की वास्तव में ब्रह्म गुणातीत, निर्विकार और अप्रमेय क्यों कहा जाता है और क्यों ब्रह्म को अल्लाह कहना मूर्खता है।
“निर्वाण शतकम”
===========
मनोबुद्धयहंकार चित्तानि नाहं,
न च श्रोत्रजिव्हे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 1 ।।
हिन्दी अर्थ :
मै न तो मन हूँ ,न अहंकार ,न ही चित्त हूँ
मै न तो कान हूँ ,न जीभ ,न नासिका ,न ही नेत्र हूँ
मै न तो आकाश हूँ ,न धरती ,न अग्नि ,न ही वायु हूँ
मै तो मात्र शुद्ध चेतना हूँ ,अनादी ,अनंत हूँ ,अमर हूँ
न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः,
न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः ।
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायु,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 2 ।।
हिन्दी अर्थ :
मैं न प्राण चेतना हूँ ,न ही शरीर को चलने वाली पञ्च वायु
मैं न शरीर का निर्माण करने वाला सात धातु हूँ ,न ही शरीर की पञ्च कोशिकायें
मै न तो वाणी हूँ ,न हाँथ ,न पैर ,न ही विसर्जन की इन्द्रिया हूँ
मै तो मात्र शुद्ध चेतना हूँ ,अनादी ,अनंत हूँ ,अमर हूँ
न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ,
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः ।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 3 ।।
हिन्दी अर्थ :
न मुझे किसी से वैर है.न किसी से प्रेम,न मुझे लोभ है, न मोह है
न मुझे अभिमान है,न ईर्ष्या है
मै धर्म ,धन,लालसा एव मोक्ष से परे हूँ
मै तो मात्र शुद्ध चेतना हूँ ,अनादी ,अनंत हूँ ,अमर हूँ
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं,
न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञ ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 4 ।।
हिन्दी अर्थ :
मैं पुण्य,पाप,सुख और दुःख से विलग हूँ
न मैं मंत्र,न तीर्थ,न ज्ञान,न ही यज्ञ हूँ
न मैं भोजन,न ही भोगने योग्य और न ही भोक्ता हूँ
मै तो मात्र शुद्ध चेतना हूँ ,अनादी ,अनंत हूँ ,अमर हूँ
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः,
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः ।
न बन्धुर्न मित्रं गुरूर्नैव शिष्यः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 5 ।।
हिन्दी अर्थ :
न मुझे मृत्यु का डर है,न जाती का भय
मेरा न कोई पिता है न माता है,न ही कभी मै जन्मा था
मेरा न कोई भाई है ,न मित्र ,न गुरु ,न शिष्य
मै तो मात्र शुद्ध चेतना हूँ ,अनादी ,अनंत हूँ ,अमर हूँ
अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो,
विभुत्वाच सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
न चासङत नैव मुक्तिर्न मेयः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 6 ।।
हिन्दी अर्थ :
मैं निर्विकल्प हूँ ,निराकार हूँ
मैं विचार विमुक्त हूँ और सर्व इन्द्रियों से पृथक हूँ
मैं न कल्पनीय हूँ ,न आसक्ति हूँ,और न ही मुक्ति हूँ
मै तो मात्र शुद्ध चेतना हूँ ,अनादी ,अनंत हूँ ,अमर हूँ
साभार – Shivesh Pratap “वयं राष्ट्रे जागृयाम”
2014 में लिखा मेरा यह लेख आज पुनः प्रासंगिक हो गया है।
Facebook Comments