धीरेन्द्र शास्त्री के बहाने विज्ञान एवं चमत्कार पर सम्यक विचार

Spread the love! Please share!!

धीरेन्द्र शास्त्री के बहाने विज्ञान एवं चमत्कार पर सम्यक विचार

चमत्कार और विज्ञान:

यदि आप पढ़े लिखे व्यक्ति हैं, इस युग में विज्ञान की समझ पाते है तो जानते होंगे की चमत्कार और पश्चिमी विज्ञान की नूराकुश्ती आज से नहीं है। चमत्कार के नाम पर जब पानी में आग लगता था तो विज्ञान ने उस दिन तक उसका विरोध किया जब तक सोडियम का गुण धर्म उसे ज्ञात नहीं था। सोडियम पानी में आग तब से लगाता रहा है जब विज्ञान ने इस घटना को नहीं खोजा होगा। हिन्दू ज्योतिष द्वारा सूर्य-चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणी तब तक चमत्कार थी जबतक पश्चिमी विज्ञान को लगता था की पृथ्वी का चक्कर सूर्य लगाता है। जिसदिन यह सोडियम और धरती चंद्रमाँ के सापेक्षिक भ्रमण का रहस्य खुला यही चमत्कार, विज्ञान की दीर्घा में खड़े होकर शेष चमत्कारों पर अट्ठहास करने लगा। यह क्रम हज़ारों वर्षों से जारी है परन्तु यही चमत्कार विज्ञान के खोज की प्रेरणा है इसे समझते हुए विज्ञान की तमाम प्रेरणाए चमत्कार से ही प्रेरित मानी जानी चाहिए। कल्पना करिये की मोबाइल युग आने से पहले दूरभाष केवल एक चमत्कार था और आज टेलीकॉम एक व्यवस्थित वैज्ञानिक तकनिकी है।

तथाकथित विज्ञान के नियम:

कोई वैज्ञानिक चुनौती स्वीकार कर सकता हो तो सिद्ध करके दिखाए..तथाकथित विज्ञान के नियम E = MC2 का प्रेक्टिकल कर के मुझे एनर्जी में बदल के दिखाइए। बोसॉन्स की संकल्पना को छोड़ प्रमाणों के आधार पर CERN के रिसर्च प्रमाणित करें। श्रोडिंगर wave equation को लैब में प्रमाणित करिए?
आज संसार जानता है की न्यूटन के प्रतिपादित गति के नियम ब्रह्मांडीय सार्वभौमिकता पर खरे नहीं उतरते परन्तु फिर भी उसे क्यों पढ़ाया जाता है? इसी छद्म सिद्धांत के बल पर न्यूटन के मरने पर उनकी कब्र तक ब्रिटैन के ड्यूक जैसे बड़े लोग पहुंचे थे। आज त्रिआयामी और बहुआयामी गति के नियमों में भी न्यूटन को अपदस्थ नहीं किया जाता, उनका सम्मान कायम है तो चमत्कारों के द्वारा किसी नवाचार की संकल्पना प्रस्तुत करने वाले लोगों को अवैज्ञानिक कहकर आलोचना क्यों की जाती है? क्या ग्रेगर जॉन मंडल की आलोचना इसलिए उचित है की उन्होंने अपने अनुप्रयोग वैज्ञानिक प्रयोगशाला में वैज्ञानिक के रूप में न करते हुए एक पादरी के रूप में चर्च के किचन गार्डन में किया ? नहीं न।

गैलीलियो की कब्र खोदकर फेंक देने वाले:

चमत्कारों पर प्रश्न चिह्न लगाने वाले लोग समय की यात्रा में गैलीलियो की कब्र खोदकर फेंक देने वाले एक अंधविश्वासी पादरी हैं जो सिर्फ धरती को गोल कहने और सूर्य परिक्रमण सिद्धांत के कारण ही गैलीलियो को कयामत के दिन ईसाइयत के न्याय से वंचित रखने हेतु उसके ताबूत और शव से भी अमानवीयता करता है। समय ने गैलीलियो के समक्ष समूचे मध्ययुगीन ईसाइयत को नंगा किया।
एक दिन जब शक्तिशाली थर्मल कैमरे होंगे, ऊर्जा तरंगों और मानवीय आभा को डिकोड करने वाले उपकरण होंगे (कुछ हद तक बन भी चुके है) तो आप जैसे लोग इसी चमत्कार को वैज्ञानिक उपलब्धि कह तालियां बजाएंगे। लेकिन तब तक यह सनातन धर्म का आध्यात्मिक ज्ञान, यूरोप के द्वारा पश्चिमी कलेवर में रंग कर आप के पास मोटी फीस लेकर परोसा जाएगा। उसदिन हमारा तर्क परसेप्शन का गुलाम बनकर उसे स्वीकार कर लेगा वैसे ही जैसे आज की गुलाम मानसिकता के आधीन हम कुंठित हिन्दू समाज के लोग माथे पर चन्दन लगाने को कर्मकाण्ड कहते है लेकिन 50 रूपये की टाई पहन कर कोई भी सभ्य जेंटलमैंन की श्रेणी में आ जाता है।
आप को संदेह है ……. दम है तो चुनौती स्वीकार करिये, मिलिए धीरेन्द्र शास्त्री से और जान लीजिये अपनी बात। यदि धीरेन्द्र शास्त्री आपके भ्रम को तोड़ने में सफल हों तो मानिये। प्रत्यक्षं किम प्रमाणं!
निकोला टेस्ला ने दिसंबर 1899 में जब कोलराडो में अपने प्रयोगशाला में मैग्नीफाइंग ट्रांसमीटर के द्वारा उच्च वोल्टता के 22-22 फ़ीट ऊँचे विद्युत् स्फुल्लिंग उत्पादित किये (चित्र में) तो अनजान विश्व के लिए यह एक आकाशीय बिजली पैदा करने वाले शैतान का डराने वाला चमत्कार था परन्तु विज्ञान ने उसे विश्व के समक्ष व्यवस्थित कर के रखा। आज के दौर में भारत के योगियों, तंत्र मन्त्रों को नकारने की जगह उसे वैज्ञानिकों को रिवर्स इंजिनीयरिंग के द्वारा समझकर समाज के सामने रखे जाने की आवश्यकता है जिससे विज्ञान में नई खोज होगी और विश्व का कल्याण भी संभव होगा।
Facebook Comments

Spread the love! Please share!!
Shivesh Pratap

Hello, My name is Shivesh Pratap. I am an Author, IIM Calcutta Alumnus, Management Consultant & Literature Enthusiast. The aim of my website ShiveshPratap.com is to spread the positivity among people by the good ideas, motivational thoughts, Sanskrit shlokas. Hope you love to visit this website!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is the copyright of Shivesh Pratap.