चीन के हाथो मिली करारी हार के बाद पूरा देश हताशा मेँ जी रहा था । नेहरु के फर्जी आदर्श धराशाई हो गए । जवाहरलाल नेहरु , कृष्ण मेनन के कारण हजारोँ भारतीय सेनिको के शौर्य पर पानी फिर गया ।
तब संसद मेँ अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने एक काव्य पाठ किया था ओर भारत को आदर्शोँ के आडंबर से बाहर निकल कर अपने पुरुषार्थ को दिखाने का आहवान किया था ।
दिनकर के इस दहाड़ को सुनकर जवाहर लाल नेहरु और कृष्ण मेनन का सर संसद में झुक गया था ।
उनके काव्यपाठ का सीधा सा अर्थ था कि भारत को अहिंसा ओर आदर्शवाद के आडम्बर छोडकर यथार्थ के धरातल पर एक शक्तिशाली ओर नेतृत्वशाली राष्ट्र बनने की जरुरत है । भारत को युधिष्ठिरों के आदर्शवादी चोचलों की जरुरत नहीँ है अपितु अर्जुन और भीम के गांडीव ओर गदा की जरुरत है ।
इस कविता ने वास्तव मेँ राष्ट्र के अंदर जोश का संचार किया था,
रे, रोक युधिष्ठिर को न यहाँ
जाने दे उनको स्वर्ग धीर,
पर, फिरा हमें गाण्डीव-गदा,
लौटा दे अर्जुन-भीम वीर।
कह दे शंकर से, आज करें
वे प्रलय-नृत्य फिर एक बार।
सारे भारत में गूँज उठे,
‘हर-हर-बम-बम’ का फिर महोच्चार।
ले अंगडाई हिल उठे धरा
कर निज विराट स्वर में निनाद
तू शैलीराट हुँकार भरे
फट जाए कुहा, भागे प्रमाद
तू मौन त्याग, कर सिंहनाद
रे तपी आज तप का न काल
नवयुग-शंखध्वनि जगा रही
तू जाग, जाग, मेरे विशाल
Photo : Dinkar Ji in Poland.