जतोला: पहला कौशल विकास

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जतोला: पहला कौशल विकास

अपने 3 वर्षीय बेटे वैदिक के लिए इस वर्ष मैंने दीपावली पर वही जतोला खरीदा जिसे दीपावली पर खेल कर हम लोग बड़े हुए थे।
जांत/जांता का बाल रूप है जंतोला। विचार करने पर पाया की जांत शब्द संस्कृत के “यंत्र” शब्द से बना। महाप्राण की जगह अल्पप्राण व्यंजन का प्रयोग सरल और कम काकल्यस्पर्शी होते हुए यही यन्त्र शब्द जांत और जांता बन गया। हमारे अवधी में भी जांता कहा जाता है।

खाद्य चक्र एक परिवार की इकाई:

यह प्रश्न उठना बड़ा स्वाभाविक है कि बड़े बड़े पहाड़ों को काटकर देवालय बनाने से लेकर असीम समुद्रों को अपनी नौवहन प्रतिभा से लंघ्य बना देने वाली संस्कृति में यंत्र शब्द पत्थर के दो पाटों के बीच में अन्न को पीसकर खाने योग्य बनाने वाले व्यवस्था को ही क्यों कहा गया?
भारतीय समाज की व्यवस्था में खाद्य चक्र को पूरी तरह से एक परिवार की इकाई में ही समाहित कर दिया गया है, उसे किसी राजा/ शासन आदि से मुक्त रखा गया है। इसका अर्थ है कि प्राचीन भारत में खाद्य उत्पादन से लेकर और भोजन बनने तक की पूरी प्रक्रिया को परिवार के लोग ही बिना किसी अन्य सामाजिक व्यवस्था पर निर्भर हुए स्वयं पूर्ण करते हैं। किसी युद्ध महामारी या विस्थापन में यदि आप परिवार रूपी इकाई में सुरक्षित हैं तो आपका अस्तित्व सुरक्षित रहेगा।
यह वैल्यू चैन मानव के सतत विकास में कितना महत्वपूर्ण है यह विचार करें। दूसरे शब्दों में समझाऊं तो आपके शहर में कोई दंगा हुआ और कर्फ्यू लग गया तो ऐसी दशा में आपकी खाद्य श्रृंखला में टिफिन वाले या स्विगी/ जोमैटो पर निर्भर रहने वाले लोगों के जान पर बन आयेगी।

खाद्य प्रसंस्करण रसोई का बहुत महत्वपूर्ण अंग:

कोविड-19 के दौरान प्रत्यक्ष रूप से इन स्थितियों की भयावहता को लोगों ने महसूस किया और घर के भीतर ही रसोई के महत्व को समझा है। हमारी भारतीय रसोई आज की तरह केवल चूल्हे को ही नहीं कहते थे अपितु खाद्य प्रसंस्करण भी इसका बहुत महत्वपूर्ण अंग रहा है। क्यों की भोजन की शुद्धता पर सबसे अधिक प्रभाव इसी खाद्य प्रसंस्करण के क्रम में आता है। आज जांता/ ओखली आदि के न रहने से इसी खाद्य प्रसंस्करण से बाजारवादी शक्तियां समृद्ध हो रही हैं। खेतों से निकलने वाला अन्न/ मसाले आदि खेतों से बाजार में पहुँच कर 10 गुने दाम पर अशुद्ध रूप में हमें प्राप्त हो रहे हैं।
शायद यही कारण है कि सतत विकास एवं समाज के स्थायित्व के लिए प्राचीन काल से ही कृषि तथा रसोई के उपकरणों की पूजा का प्रचलन हुआ। यहां पूजा का अर्थ है उसके महत्व को स्थापित करना। और इस जांते कि इतनी महिमा कि भारत की संस्कृति में एक छोटे से बच्चे का पहला कौशल विकास उसके हाथ में जतोला देकर कराया जाता है। इसका सीधा तात्पर्य है कि यदि वह खाने के मामले में आत्मनिर्भर होगा तो वह स्वतंत्र रूप से जीने और विचार करने में भी आत्मनिर्भर बनेगा। और भारत के सनातन धर्म के मूल दर्शन ‘मृत्यु से अमरता’ के अनुसन्धान की यात्रा का एक यात्री बन सकेगा।
इस जतोले से प्रारम्भ हुए कौशल विकास का एक छुपा हुआ सन्देश यह भी है की भौतिक सुखों संसाधनों के लिए हम बाज़ारवाद के कुचक्र में भले फंस जाएँ परन्तु अपनी खाद्य श्रृंखला को इस बाजार-उपभोक्तावाद से बचा कर रखें, घरों में रसोई के संस्कार को अक्षुण्ण रखें।
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Shivesh Pratap

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