एक समर्पित सन्यासी योग गुरु स्वामी रामदेव के पीछे राष्ट्रद्रोही किस तरह से पढ़े हुए हैं ।
सब की बीमारी यही है कि योग गुरु बाबा रामदेव एक तरफ तो भारतीय संस्कृति की पहचान पूरी दुनिया के घर घर तक करवा रहे ओर दूसरी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की अंधाधुंध लूट को बंद करके आयुर्वेद की तरफ सब को मोड़ने का जो अभियान बाबा ने चलाया हे उससे पहाड़ो पर रहने वाले लाखोँ लोगोँ को जडी बूटियाँ उगाकर रोजगार भी मिल रहा हे ओर मैदानी क्षेत्रोँ मेँ भी रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए गए हैं ।
सांस्कृतिक संवर्धन मेँ बाबा रामदेव का योगदान कही न कही मोदी से बढ़कर है क्यूंकि रामदेव ने भारतीय संस्कृति का माइक्रो मनेजमेंट करके संस्कृति के प्रति घर घर को संवेदनशील किया हे ।
बाबा रामदेव के प्रति जो भी गलत बात समाज मेँ फैलाई जा रही है वह कही न कही उनके द्वारा बहुराष्ट्रीय कंपनियो के खिलाफ खड़े गए किए गए एक स्वदेशी तंत्र के कारण ही है ।
बाबा रामदेव से डर कर तमाम इस्लामी देशोँ मेँ योग का प्रसारण बंद कर दिया गया कि इसे भारतीय संस्कृति इस्लामिक देशो मेँ अपनी पैठ बना सकता है । बाबा रामदेव के योग से अमेरिका जैसे देश तक डर गए हैं ओर अमेरिकी संसद मेँ कई बार योग को स्कूल मेँ अनिवार्य न करने के लिए कई रुढ़िवादी ईसाई सांसदों द्वारा मुहिम छेडी गई है ।
वर्तमान मेँ पुत्रजीवक वटी के नाम पर राष्ट्र द्रोहियों द्वारा संसद मेँ प्रायोजित रुप से जो विरोध किया गया हे वह कही न कही एसे तत्वों की भारतीय संस्कृति एवम आयुर्वेद के बारे मेँ जानकारी की कमी को दर्शाता है । एसी बाते करना वास्तव मेँ पूरी भारतीय संस्कृति एवम हजारोँ वर्ष के रिषि मुनियों की महान आविष्कारोँ की परंपरा तथा आयुर्वेद का अपमान है । जया बच्चन ओर के सी त्यागी जेसे मूर्खोँ पर हस्ता हूँ जिंहेँ आयुर्वेद के बारे मेँ कुछ भी नहीँ पता ।
आयुर्वेद मेँ भावप्रकाश निघंटु एक प्रामाणिक आयुर्वेदिक पुस्तक है जिसे विश्व स्तर पर चिकित्सकीय मान्यता प्राप्त हे एवम उसमेँ वर्णित चिकित्सा प्रणालियोँ का प्रयोग करके कोई भी आयुर्वेदिक दवाएँ बना सकता हे जिसे भारत सरकार की आयुर्वेद तंत्र से लाइसेंस मिलता हे ओर यही कारण हे कि दवाओं पर (भा. प्र. नि.) लिखा रहता है ।
मैने भी विरोध के चलते हुए अब पातंजलि योगपीठ के सभी सामानोँ को प्रयोग करने की ठान लिया हे ओर सब कुछ पातंजलि का ही प्रयोग करुंगा । दुनिया को यह संदेश देना चाहता हूँ कि जितना विरोध करोगे हम अपनो मेँ ओर अपनी संस्कृति मेँ उतनी ही विश्वास रखते चले जाएंगे ।