दक्षिण चीन सागर चीन के दक्षिण में स्थित एक सीमांत सागर है। यह प्रशांत महासागर का एक भाग है, जो सिंगापुर से लेकर ताईवान की खाड़ी तक लगभग 35 लाख वर्ग किमी. में फैला हुआ है।
पाँच महासागरों के बाद यह विश्व के सबसे बड़े जलक्षेत्रों में से एक है। इस सागर पर बिखरे छोटे-छोटे द्वीपों पर इसके तट से लगते विभिन्न देशों की दावेदारी है और यह उनके सम्प्रभुता का प्रश्न बन गया है।
South China Sea का पूर्वी तट वियतनाम और कंबोडिया को स्पर्श करते हैं। पश्चिम में फिलीपींस है, तो दक्षिण चीन सागर के उत्तरी इलाके में इंडोनेशिया के बंका व बैंतुंग द्वीप हैं।
दक्षिण चीन सागर को दुनिया के सबसे व्यस्त जलमार्गों में से एक माना जाता है और यह व्यापार तथा परिवहन के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार है।
इस क्षेत्र से हर वर्ष कम से कम 5 खरब डॉलर के कर्मिशयल गुड्स की आवाजाही होती है। यू.एस. डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के अनुमान के अनुसार यहाँ तेल और प्राकृतिक गैस का विशाल भंडार है।
चीन से लगे दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों और उनके द्वीपों को लेकर भी चीन, वियतनाम , इंडोनेशिया , मलेशिया, ब्रूनेई दारुसलाम, फिलीपींस, ताइवान , स्कार्बोराफ रीफ आदि क्षेत्रों को लेकर विवाद है।
लेकिन मूल विवाद की जड़ है दक्षिण चीन सागर में स्थित स्पार्टली और पार्सल द्वीप, क्योंकि यह दोनों द्वीप कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस से परिपूर्ण हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार इसकी परिधि में करीब 11 अरब बैरल प्राकृतिक गैस और तेल तथा मूंगे के विस्तृत भंडार मौजूद हैं।
सर्वप्रथम वर्ष 1947 में मूल रूप से चीन गणराज्य की कुओमितांग सरकार ने Eleven Dash line के माध्यम से दक्षिण चीन सागर में अपने दावों को प्रस्तुत किया था। दरअसल चीन ने एक मैप के जरिए सीमांकन का दावा पेश किया, जिसमें लगभग पूरे इलाके को शामिल कर लिया। कई एशियाई देशों ने इस पर असहमति जताई थी।
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने वर्ष 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का गठन करने के बाद टोंकिन की खाड़ी को इलेवन डैश लाइन से बाहर कर दिया गया। परिणामस्वरूप इलेवन डैश लाइन को अब ‘नाईन डैश लाइन’ यानि दक्षिण चीन सागर पर चीन द्वारा खींची गई 9 आभासी रेखा के अंतर्गत क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा।
इसी प्रकार नाईन डैश लाइन के अंतर्गत फिलीपींस का स्कारबोरो शोल द्वीप, इंडोनेशिया का नातुना सागर क्षेत्र शामिल है।
वर्ष 1949 से ही चीन नाइन-डैश लाइन के माध्यम से दक्षिण चीन सागर के लगभग 80% पर अपने अधिकार का दावा करता रहा है।
सन् 1982 के यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी के अनुसार किसी देश की पहुंच अपने समुद्री तटों से 200 नॉटिकल मील की दूरी तक ही होगी।
इस संधि को चीन, वियतनाम, फिलीपीन्स और मलेशिया सभी ने मंजूर किया है। लेकिन अमेरिका ने मंजूर नहीं किया। रिपब्लिकन सिनेटर्स ने इसे यह कहते हुए नामंजूर कर दिया था कि इस संधि से समुद्री संचालन में अमेरिकी संप्रभुता को खतरा रहेगा।
चीन ने दक्षिण चीन सागर में लगभग सात कृत्रिम द्वीप बनाकर उन पर ऐंटी एयरक्राफ्ट और ऐंटी मिसाइल सिस्टम लगा लिया है। चीनी जलसेना ने समुद्र विज्ञान पोत द्वारा छोड़े गए एक अमेरिकी ड्रोन को जब्त भी कर लिया था।
जब्त ड्रोन के बारे में अमेरिका का कहना था कि यह दक्षिण चीन सागर के अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र में चलाए जा रहे वैध सैन्य सर्वे का हिस्सा था, जो जल की लवणता, तापमान और स्वच्छता संबंधी सूचनाएं इकट्ठा कर रहा था।
यद्यपि अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर पर सीधे कोई दावा नहीं किया है, लेकिन इस क्षेत्र में उसके राजनीतिक और आर्थिक हित जुड़े हुए हैं। प्रत्येक वर्ष दक्षिण चीन सागर से 1.2 खरब डॉलर का अमेरिकी व्यापार होता है।
वॉशिंगटन ने फिलीपीन्स से पारस्परिक रक्षा संधि कर रखी है। अमेरिका इस द्वीपीय देश को सुरक्षा-सहयोग देने के लिए प्रतिबद्ध है।
यही कारण है कि चीन को दक्षिण चीन सागर में अपने भू-आर्थिक और भू-सामरिक हित दिखाई देते हैं । दक्षिण चीन सागर में 11 बिलियन बैरल प्राकृतिक तेल के भंडार हैं, 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस के भंडार है , जिसके 280 ट्रिलियन क्यूबिक फीट होने की संभावना व्यक्त की गई है।
चीन को प्राकृतिक तेल की आपूर्ति मध्य पूर्व के देशों द्वारा मलक्का जलडमरुमध्य के रास्ते से होती है। अक्सर अमेरिका चीन को चेतावनी देता है कि वह मलक्का जलडमरुमध्य को ब्लॉक कर देगा जिससे चीन की ऊर्जा आपूर्ति रुक जाएगी।
यह जानना भी जरूरी है कि सिर्फ़ तेल और गैस ही नहीं, दक्षिणी चीन सागर में मछलियों की हज़ारों नस्लें पाई जाती है। दुनिया भर के मछलियों के कारोबार का करीब 55 प्रतिशत हिस्सा या तो दक्षिणी चीन सागर से गुज़रता है, या वहाँ पाया जाता है। इसलिये चीन इस प्रकार के क्षेत्रों में विशेष रुचि रखता है।
भारत स्पष्ट रूप से 1982 के United Nations Convention on the Law of the Sea के सिद्धांतो के आधार पर दक्षिण चीन सागर में स्वतंत्र व निर्बाध जल परिवहन का समर्थन करता है।
अमेरिका के साथ मिलकर भारत इस क्षेत्र के लोगों की क्षमताओं में वृद्धि करने में सहायता कर सकता है तथा इस प्रकार इस क्षेत्र में चीन की बढ़ रही आक्रामक भूमिका को संतुलित करने में भारत-अमेरिका का महत्त्वपूर्ण भागीदार बन सकता है।
भारत, वियतनाम और फिलीपींस जैसे देशों के साथ युद्धक आयात-निर्यात की गतिविधियों को बढ़ा रहा है। इस प्रकार भारत पूर्वी एशिया खासतौर पर चीन के साथ विवाद में उलझे हुए देशों के महत्त्वपूर्ण सैन्य भागीदार के रूप में उभर सकता है।
नाईन डैश लाइन विवाद से चीन ने पूर्वी एशियाई देशों के साथ अपने संबंध खराब कर लिये हैं, ऐसे में भारत को इस क्षेत्र में अपना कद बढ़ाने का सुअवसर प्राप्त हुआ है।
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