क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ, कब हारा?
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।
तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की।
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।
रामधारीसिंह दिनकर वीर रस के कवि हैं । kshama daya tap tyag manobal कविता की पंक्तियाँ “शक्ति और क्षमा” शीर्षक कविता के अंतर्गत प्रथम अनुच्छेद में रामधारीसिंह दिनकर ने कौरवों और पांडवों के माध्यम से यह भाव उजागर किया है कि क्षमा वीरो का आभूषण अवश्य है किंतु दया, तप, त्याग और क्षमा जैसे गुणों से दुर्योधन जैसे शिकारी वृत्ति वाले दुर्जनों को नहीं हराया जा सकता है।
नर व्याघ्र का अर्थ: वह जो मनुष्यों में व्याघ्र यानि सिंह की तरह वीर और शिकारी हो।
कविता के इस खण्ड में कवि के कहने का भाव यही है कि हर जगह दया या क्षमा से ही कार्य की पूर्ति नही हो पाती। क्योंकि हर कोई दया, प्रेम या क्षमा की भाषा नही समझता है और ऐसी स्थिति आगे बढ़कर शक्ति का प्रदर्शन करके अपने कार्य का संधान करना पड़ता है।
इस खण्ड में उन्होंने महाभारत का उद्धृत देते हुये कहा कि पांडवों ने कौरवों को उनके कुकृत्यों के लिये अनेकों बार क्षमा किया परन्तु कौरव थे कि छल, कपट से बाज नही आये। उन्हे पांडवों द्वारा प्रदर्शित दया, त्याग, प्रेम की भाषा समझ नही आयी और वो अपना कुटिल आचरण करते ही रहे।
इसी प्रकार जब भगवान राम विनयपूर्वक समुद्र से रास्ता मांगते रहे तो उसमें एक लहर भी नहीं जगी। कई दिनों तक उन्होंने इंतजार किया और समुद्र की दुष्टता को क्षमा किया परन्तु जब भी उसने उनकी बात अनदेखी, तो उन्हें शक्ति का सहारा लेना पड़ा। भयभीत समुद्र उनके पास चला आया। अपने बात को स्पष्ट करने के लिए दिनकर और भी उदाहरण देते हैं।
वस्तुतः वे पांडवों जैसे क्षमाशील और सह्रदय सज्जनों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि बिना भयभीत किए शत्रु के समक्ष आपकी विनम्रता का कोई मोल नहीं है । जितना आप उनके साथ सहिष्णुता का व्यवहार करेंगे वह उतना ही आपको कायर या डरपोक समझेंगे । अतः यदि आपके पास इतनी शक्ति है, सामर्थ्य हैं जो उसे पराजित कर सकता है तो उसका आवश्यकता पड़ने पर प्रदर्शन अवश्य करें।
फलत: शत्रु आपके इस पौरूष को जानकर आपसे किसी भी प्रकार का अनुचित व्यवहार करने का दुस्साहस नहीं करेगा और आप के सामने विनीत रहेगा तत्पश्चात आप उसे क्षमा करेंगे तब इस क्षमा का मोल होता है।
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Mujhe samajh me nahi aaya kawita ka saransh chahiye na ki kawi yon ke nam