भारत देश की भूमि मान्यताओं, विविधताओं और सांस्कृतिक उत्सवों के सम्मिश्रण का प्रतिनिधित्व करती है जिसे हम “त्यौहार” कहते हैं। इन्हीं त्यौहारों में एक प्रसिद्द त्यौहार है होली । होली का पर्व ऋतुराज बसंत के आगमन पर फाल्गुन मास की पूर्णिमा को आनंद और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाये जाने के पीछे इसका ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व माना जाता है।
मंजीरा, ढोलक, मृदंग की ध्वनि से गूंजता रंगों से भरा होली का त्योहार बहुत ही उल्लास पूर्ण और मनोरंजक होता है इस त्योहर में सभी की ऊर्जा देखते बनती है पर होली के अवसर पर सबसे अधिक खुश होते बच्चों को देखा है वह रंग-बिरंगी पिचकारी को अपने सीने से लगाए भागते फिरते हैं। कुछ टोलियां देखने को मिलती हैं जो किसी पर भी रंग डालकर जोर-जोर से “होली है….” कहते हैं।
होली के एक दिन पहले, लोग ‘होलिका दहन’ जिसे आजकल छोटी होली कहते हैं,मनाया जाता है। इस दिन लोग सार्वजनिक क्षेत्रों में लकड़ी के ढेर को जलाते हैं, इस लकड़ी के ढेर को हम होलिका कहते हैं । यह होलिका और राजा हिरण्यकश्यप की कहानी बुरी शक्तियों को जलाने का प्रतीक है। इसके अलावा, सभी होलिका के चारों ओर घूमकर आशीर्वाद लेते हैं। ऐसी मान्यता है के होलिका दहन के दिन उबटन लगाना चाहिए। उबटन लगाने से व्यक्ति के सभी रोग व त्वचा की बीमारियां दूर हो जाते हैं उत्तर भारत में विशेष रूप से लोग उत्साह के साथ होली मनाते हैं।
होलिका दहन के अगले दिन भारत का सबसे रंगीन दिन होता है, क्यंकि इस दिन होली मनाई जाती है। लोग सुबह उठते हैं और भगवान को पूजा में रंग अर्पित करते हैं। होली प्रेम,सौहार्द एवं भाईचारे का प्रतीक माना जाता है क्यूंकि इस दिन सभी जाति-धर्म का भेदभाव भूलकर एकजुट होकर गुलाल लगते हैं और गले मिलते हैं। इस दिन बड़े लोग भी बच्चे बनकर एक दूसरे के चेहरे पर रंग लगाते हैं।यह देश में सद्भाव और खुशी लाती है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
होली का त्यौहार भारत के अलग-अलग राज्यों और शहरों में कई विभिन्नताओं और मनोरंजक ढंग से मनाया जाता है,जिनमे से कुछ के नाम इस प्रकार है –
“सब जग होरी या ब्रज होरा” अर्थात सारे जग से अनूठी ब्रज की होली है, और ऐसा वास्तव में है । ब्रज के गांव बरसाना में होली प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इस होली में नंदगांव के पुरुष और बरसाना की महिलाएं भाग लेती हैं क्योंकि श्री कृष्ण नंदगांव से थे और राधा बरसाना से। जहां पुरुषों का ध्यान भरी पिचकारी से महिलाओं को भिगोने में रहता है वहीं महिलाएं खुद का बचाव और उनके रंगों का उत्तर उन्हें लाठियों से मार कर देती है। सच में यह अद्भुत दृश्य होता है। है। इस दौरान होरी भी गाई जाती है, जो श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है।
मथुरा और वृंदावन में होली की अलग छटा नज़र आती है। यहां होली की धूम 16 दिन तक छाई रहती है। लोग “फाग खेलन आए नंद किशोर” और “उड़त गुलाल लाल भए बदरा” आदि अन्य लोक गीत का गायन कर इस पावन पर्व में डूब जाते हैं। यहाँ का होली का माहौल एकदम खुशनुमा और मनभावन लगता है
महाराष्ट्र और गुजरात में होली पर श्री कृष्ण की बाल लीला का स्मरण करते हुए होली का पर्व मनाया जाता है। महिलाएं मक्खन से भरी मटकी को ऊँचाई पर टांगती हैं इन्हें पुरुष फोड़ने का प्रयास करते हैं और नांच गाने के साथ होली खेली जाती है ।
पंजाब में होली का यह पर्व पुरुषों के शक्ति के रूप में देखा जाता है। होली के दूसरे दिन से सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान “आनंदपुर साहेब” में छः दिवसीय मेला लगता है। इस मेले में पुरुष भाग लेते हैं तथा घोड़े सवारी, तीरंदाजी जैसे करतब दिखाते हैं।
बंगाल और उड़ीसा में डोल पूर्णिमा के नाम से होली प्रचलित है। इस दिन पर राधा कृष्ण की प्रतिमा को डोल/ डोली में बैठा कर पूरे गांव में भजन कीर्तन करते हुए यात्रा निकाली जाती है और रंगों से होली खेली जाती है।
मणिपुर में होली पर “थबल चैंगबा” नृत्य का आयोजन किया जाता है। मणिपुर में होली पूरे 6 दिनों तक चलती है, जिसे योसांग कहते हैं।
बिहार में होली का त्यौहार तीन दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन रात में होलिका दहन होता है,जिसे यहां संवत्सर दहन के नाम से भी जाना जाता है और लोग इस आग के चारों ओर घूमकर नृत्य करते हैं। अगले दिन इससे निकली राख से होली खेली जाती है, जो धुलेठी कहलाती है और तीसरा दिन रंगों का होता है। स्त्री और पुरुषों की टोलियां घर-घर जाकर डोल की थाप पर नृत्य करते हैं। फागुन मतलब लाल रंग होता है इसलिए इसे फगुवा होली भी कहते है।
मध्यप्रदेश में रहने वाले भील आदिवासियों के लिए होली विशेष होती है। इस भील होली को भगौरिया कहते हैं। वयस्क होते लड़कों को इस दिन अपना मनपसंद जीवनसाथी चुनने की छूट होती है। भीलों का होली मनाने का तरीका विशिष्ट है। इस दिन वो आम की मंजरियों, टेसू के फूल और गेहूं की बालियों की पूजा करते हैं और नए जीवन की शुरुआत के लिए प्रार्थना करते हैं।
होली के इतिहास की बात करें तो हिंदू धर्म का मानना है कि हिरण्यकश्यप नाम का एक दुष्ट राजा था। उनका एक पुत्र था जिसका नाम प्रह्लाद था और एक बहन जिसका नाम होलिका था, होलिका को आशीर्वाद प्राप्त था की वह जल नहीं सकती थी। ऐसा माना जाता है कि दुष्ट राजा के पास भगवान ब्रह्मा का आशीर्वाद था। इस आशीर्वाद का मतलब कोई भी आदमी, जानवर या हथियार उसे नहीं मार सकता था। यह आशीर्वाद उसके लिए अभिशाप बन गया और उसने अपने पुत्र को नहीं बख्शा क्योंकि वह बहुत घमंडी हो गया था। उसने अपने राज्य को भगवान के बजाय उसकी पूजा करने का आदेश दिया।
इसके बाद, सभी लोग हिरण्यकश्यप की पूजा करने लगे, लेकिन प्रह्लाद ने अपने पिता की पूजा करने से इनकार कर दिया क्योंकि प्रह्लाद भगवान विष्णु के सच्चे भक्त थे। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र की अवज्ञा को देखकर अपनी बहन के साथ मिलकर प्रह्लाद को मारने की योजना बनाई। उसने होलिका की गोद में अपने बेटे प्रह्लाद को आग में बैठाया, जहां होलिका जल गई और भगवान विष्णु के आशीवार्द से प्रह्लाद सुरक्षित निकल आए। तब से लोगों ने बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होली मनाना शुरू कर दिया।
होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। इस त्यौहार से सीख लेते हुए हमें भी अपनी बुराइयों को छोड़ते हुए अच्छाई को अपनाना चाहिए। इस त्यौहार से एक और सीख मिलती है कि कभी भी हमें अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि अहंकार हमारे सोचने समझने की शक्ति को बंद कर देता है। यह दोस्ती का त्यौहार है इसलिए इसे दोस्ती का त्यौहार ही बने रहना देना चाहिए। इसे कोई और रूप देने का हमें कोई हक नहीं है।
वर्तमान में भटके हुए युवाओं को हमें इस त्यौहार के महत्व और विशेषताओं के बारे में बताना चाहिए, ताकि उनके विचार बदले और हमारे इस सौहार्दपूर्ण त्यौहार की छवि बनी रहे।
इस त्यौहार में लोग आपस के मत-भेद भूल कर नई जीवन की शुरुआत के साथ अपने अंदर नई ऊर्जा को भी ले आते हैं।
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