नदियों को भारत में दो प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है;
हिमालयी नदियां तीन तंत्र में विभाजित है;
हिमालय की तीन नदियां ऐसी हैं जो हिमालय की पूर्ववर्ती नदी है। सिंधु, सतजल और ब्रम्हपुत्र। यानी हिमालय के निर्माण के पूर्व यह तीनों टेथिस सागर में गिरती थीं।
हिमालय के उत्थान के दौरान भी इन नदियों ने अपना प्रवाह बनाये रखा और अपने मार्ग में आने वाले हिमालयी उत्थान को काटती रहीं। ऐसे में पहाड़ों में गार्ज या खड्ड का निर्माण होता रहा है। यह पूर्ववर्ती अपवाह तंत्र का उदाहरण है।
जम्मू कश्मीर मेँ गिलगित के नजदीक सिंधु गार्ज, हिमाचल में सतलुज नदी पर शिपकी ला गार्ज और ब्रह्मपुत्र नदी पर अरुणाचल प्रदेश में दिहांग गार्ज इन नदियों द्वारा बनाया जाता है।
तीनों नदियों का उद्गम कैलाश मानसरोवर के पास से हुआ है।
सिंधु नदी तंत्र की मुख्य नदी सिंधु है। इसके बाएं तट पर आ कर मिलने वाली 5 प्रमुख सहायक नदियों का क्रम: सिंधु, झेलम, चिनाव, रावी, व्यास और सतलज
सिंधु तंत्र में दो नदियां मानसरोवर से निकलती है। सिंधु और सतलुज। चिनाव, रावी, व्यास का उद्गम हिमाचल प्रदेश तथा झेलम का उद्गम जम्मू कश्मीर से हैं।
सिंधु की सभी 5 सहयोगी नदियां पाकिस्तान के मिठान कोट में सिंधु के बाएं तट से सिंधु में गिरती हैं।
सिंधु: तिब्बत के मानसरोवर झील के समीप चेमायुंगडुंग ग्लेसियर से
झेलम: कश्मीर के बेरीनाग के समीप शेषनाग झील से।
चिनाब: हिमाचल प्रदेश के बारालाचाला दर्रे के समीप से
रावी और व्यास: हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे के समीप व्यासकुण्ड से।
सतलुज: तिब्बत के मानसरोवर झील के बगल की झील राकसताल से।
इनमें से व्यास नदी, सतलज की सहायक नदी है और पाकिस्तान में प्रवेश नहीं करती। व्यास नदी, पंजाब के कपूरथला के निकटी हरिके में सतलज में मिल जाती है।
यह ब्रह्मपुत्र के बाद भारत में बहने वाली दूसरी सबसे लम्बी नदी है।
लंबाई का क्रम:
मानसरोवर से निकल कर जम्मू कश्मीर में लद्दाख और जास्कर के मध्य से उत्तर पश्चिम की ओर बहती है। लेह क़स्बा, सिंधु नदी के तट पर बसा हुआ है।
गिलगित के पास यह मुड़कर पाकिस्तान में प्रवेश करती है।
शेषनाग झील से निकलकर जम्मू कश्मीर के श्रीनगर में बुलरझील में मिल जाती है। इसके बाद यह भारत पाकिस्तान की सीमा के समानांतर होते हुए पाकिस्तान में चली जाती है।
इस नदी का पुराना नाम वितस्ता है
कश्मीर घाटी के मैदान में आते ही झेलम नदी विशर्पण करती है। झेलम, अनंतनाग से बारामुला तक नौकागम्य है।
वैदिक काल में चेनाब नदी को भारतीय लोग अश्किनी के नाम से जानते थे।
चिनाब, हिमाचल प्रदेश में बारा लाचा दर्रे से बर्फ पिघलने से शुरू होता है। दर्रे से दक्षिण की ओर बहने वाले जल को चंद्र नदी और उत्तर की ओर बहती भगा नदी के मिलने से चंद्रभागा नदी बनाती हैं। यही चिनाब कहलाती है।
रावी नदी हिमाचल प्रदेश के कांगडा जिले में रोहतांग दर्रे से निकल कर हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर तथा पंजाब होते हुए पाकिस्तान से बहती हुयी झांग जिले की सीमा पर चिनाव नदी में मिल जाती हैं।
यह प्राचीन काल में परुष्णी के नाम से जानी जाती थी।
ब्यास नदी का पुराना नाम ‘अर्जिकिया’ या ‘विपाशा’ था।
यह कुल्लू में व्यास कुंड से निकलती है। व्यास कुंड पीर पंजाल पर्वत शृंखला में स्थित रोहतांग दर्रे में है।
मनाली व्यास नदी के किनारे बसा है। यह आर्की में सतलुज नदी में जा मिलती है।
राकसताल से निकल शिपकिला दर्रे से हिमाचल प्रदेश में प्रवेश कर पंजाब से पाकिस्तान में चली जाती है।
इसका पौराणिक नाम शुतुद्रि है।
अन्य नदियां जो सिंधु में बाएं से मिलती हैं: जास्कर, सियांग, सिगार और गिलगिट
अन्य दाहिनी ओर से मिलने वाली: श्योक, काबुल, कुर्रम, गोमल
सिंधु नदी जल समझौता 1960 में हुआ था। सिंधु नदी तंत्र के 3 नदियों सिंधु, झेलम, चिनाब के 20% पाक 80% भारत एवं पूर्व की तीन रावी, व्यास, सतलज का 80% जल प्रयोग भारत करेगा और 20% पाकिस्तान करेगा।
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