अवस्था: दक्षिण भारत की नदियां अपने प्रौढ़ अवस्था में है जबकि हिमालयी नदियां अभी युवा अवस्था में है।
प्रौढ़ नदियां अपना मार्ग और नही काट सकतीं और अपना मार्ग नहीं बदलती।
विसर्प: हिमालयी नदियां मैदानों में विसर्प करती हैं जबकि दक्षिण भारतीय प्रायद्वीपीय नदियां नहीं करती।
जल की उपलब्धता: हिमालयी नदियां वर्षवाहिनी होती हैं। दक्षिण भारतीय नदियों की लंबाई कम है। क्यों कि इनके जल के दो श्रोत हैं, ग्लेसियर और वर्षा जल। जबकि प्रायद्वीपीय नदियां केवल वर्षा पर निर्भर होती हैं और सालभर प्रवाहित नहीं होती।
क्षोभमंडल में 4400 मीटर की हिमरेखा के ऊपर द्रव की बूंदें बर्फ में बदल जाती है। एक ओर हिमालय के पहाड़ 6000 मीटर के ऊपर हैं वहीं दूसरी ओर भारत के पठार 1000 मीटर से कम ऊंचाई के हैं।
लम्बाई: हिमालयी नदियां लंबी होती हैं। गोदावरी की 1465 km लंबाई है जबकि गंगा 2525 km है। दक्षिण भारतीय नदियों की लंबाई कम है।
प्रायद्वीपीय नदियां दो भागों में विभाजित हैं;
यह छोटा-नागपुर पठार से भ्रंश घाटी से प्रवाहित होकर हुगली नदी में अपना जल गिराती है।
यह रांची के सटे निकलती है और 3 राज्य से होते हुए ओडिशा के तट पर अपना मुहाना बनाती है।
छोटा नागपुर के तमाम उद्योग धंधे और खासकर जमशेदपुर अपना अपशिष्ट इस नदी में गिराते हैं इसलिए यह बहुत प्रदूषित नदी है। यह जैविक रूप से मृत नदी या जैविक मरुस्थल कहते है।
यह उड़ीसा के क्योंझर पठार से निकल ओडिशा के तट पर समुद्र में गिर जाती है।
रांची के समीप यह निकालकर ओडिशा के तट पर समुद्र में मिल जाती है।
छोटानागपुर पठार से तीन नदियां दामोदर, स्वर्णरेखा और ब्राह्मणी निकलती है जबकि वैतरणी ओडिशा से निकलती है।
यह छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य पठार से निकल कर ओडिशा के कटक के पास अपना डेल्टा बनाती है।
महानदी बेसिन को धान का कटोरा कहते हैं।
यह दक्षिण की सबसे लंबी 1465 km की नदी है। इसे बूढ़ी गंगा भी कहते हैं । यह पश्चिमी घाट के नासिक के त्रयम्बक पहाड़ी से निकल कर महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से गुजरते हुए राजमुंदरी के पास अपना डेल्टा बनाती है।
गोदावरी की सहायक नदी:
उत्तर से मिलने वाली: प्रवरा, पूर्णा, वेन गंगा (सबसे लंबी), पेन गंगा, प्राणहिता, इंद्रावती (ओडिशा से बस्तर होते हुए)
दक्षिण से निकलने वाली: मंजीरा एकमात्र नदी।
दूसरी सबसे लंबी दक्षिण भारतीय नदी। यह पश्चिमी घाट के महाबलेश्वर पर्वत से निकल कर महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र से होते विजयवाड़ा के समीप अपना डेल्टा बनाती है।
कृष्णा व गोदावरी के मध्य कोलेरो झील आंध्र में है।
मुख्य मिलने वाली नदियां: तुंगभद्रा (सबसे लंबी सहायक नदी, तुंगा+भद्रा दो धाराओं में उद्गम), घाटप्रभा, मालप्रभा, दूधगंगा, पंचगंगा, भीमा, कोयना, मूसी (हैदराबाद इसी तट पर बसा है)
कर्नाटक के कोलार से निकल आंध्र में अपना मुहाना बनाती है।
यह कर्नाटक के पश्चिमी घाट पर्वत के ब्रम्ह/ पुष्प गिरी पहाड़ी से निकलती है।
ये दक्षिण गंगा के नाम से भी प्रसिद्ध है। कावेरी नदी घाटी धान उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है और यह दक्षिण के धान का कटोरा के नाम से जाना जाता है।
यह कर्नाटक और तमिलनाडु में प्रवाहित है परंतु इसका जल ग्रहण क्षेत्र तमिल, कर्नाटक, आंध्र, तेलंगाना, केरल 5 राज्यों में है।
कावेरी की सहायक नदियां: सिमसा, अर्कावती, हेमवती, अमरावती, काबिनी, भवानी, लक्ष्मणतीर्थ, लोकपवानी
कावेरी दक्षिण भारत की एकमात्र ऐसी नदी है जिसमें जल वर्षभर बना रहता है। क्योंकि कावेरी नदी को वर्षाजल दो श्रोतों से प्राप्त होता है।
ऊपरी जल ग्रहण क्षेत्र में दक्षिणी पश्चिमी मानसून से और निचले जल ग्रहण क्षेत्र में अर्थात कोरोमंडल तट पर उत्तर पूर्वी मानसून से।
उत्तर पूर्वी मानसून में नमी की मात्रा होती है इसलिए कोरोमंडल तट पर अच्छी वर्षा करता है। यही कावेरी के लिए वर्ष भर जल उपलब्ध कराता है।
उत्तरी पूर्वी मानसून भारत में केवल तमिलनाडु में वर्षा करता है।
साबरमती, माही, नर्मदा, तापी नदियां खम्बात की खाड़ी में गिरती है।
लूनी नदी समुद्र तट तक नहीं पहुंच पाती है और इसका जल कच्छ के रण में दलदल में विलीन हो जाता है।
नर्मदा और तापी प्रायद्वीपीय पठार के विपरीत अपनी भ्रंश घाटियों में पश्चिम दिशा में बहकर अरब सागर में गिरती हैं।
पश्चिमी घाट से बहुत सी नदियां निकालकर अरबसागर में गिरती हैं। इस कगार नुमा आकृति के खड़े ढलान पे बहने के कारण यह नदियां प्रपाती होती हैं।
माही नदी कर्क रेखा को दो बार काटती है।
यह अरावली पहाड़ी से निकलकर सांभर झील से गुजरते हुए गुजरात के कच्छ के दलदल में विलीन हो जाती है।
राजस्थान के उदयपुर जिले के मेवाड़ से निकलती है और खम्बात की खाड़ी में गिरती है। इसी के तट पर गांधीनगर और अद्योकिक नगर अहमदाबाद बसा हुआ है।
यह मध्यप्रदेश के विंध्य पर्वत से निकलकर मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात होते खम्बात की खाड़ी में अपना जल गिराती है। को ‘आदिवासियों की गंगा’ के नाम से जाना जाता है
यह अरब सागर में जल गिराने वाली सबसे लंबी नदी है। यह गोदावरी और कृष्णा के बाद प्रायद्वीपीय भारत की तीसरी सबसे बड़ी नदी है।
नर्मदा नदी, मैकाल पहाड़ी के अमरकंटक से निकल कर भरूच में अपना मुहाना बनाती है।
यह MP, महाराष्ट्र और गुजरात में बहती है और जबलपुर और भरूच इसी के तट पर बसे हैं। इसकी सर्वाधिक लंबाई मध्यप्रदेश में है।
नर्मदा, जबलपुर के पास भेड़ाघाट की संगमरमर की चट्टानों में एक सुंदर जलप्रपात बनाती है जिसे हम धुआंधार जल प्रपात या कपिल धारा के नाम से जानते हैं।
यह महादेव से लगे हुए बैतूल के पठार से निकलती है और सतपुड़ा के दक्षिण में अपनी भ्रंश खाड़ी में प्रवाहित हो सूरत के समीप खम्बात खड़ी में अपना जल गिराती है।
सूरत शहर इसी तापी नदी के किनारे पर बसा हुआ है।
अरब सागर में जल गिराने वाली प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी सबसे लंबी नदी है। यह नदी मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से गुजरती है।
गुजरात की जल विद्युत परियोजना उकाई, काकराफ़ार तापी नदी पर हैं।
कगारनुमा आकार के कारण सह्याद्रि को नदियां सीधे ढाल से गिरती हैं इसलिए प्रपाती होती हैं।
इनको दो तरह से जल प्राप्त होता है, जून से सितंबर तक दक्षिणी पश्चिमी मानसून सह्याद्रि से टकराकर खूब वर्षा करते हैं। दूसरा दरारों के जल शुष्क मौसम में नदियों को मिलते हैं।
गुजरात में: शतरंजी और मादर नदी
गोआ में: मांडवी और जुआरी नदियां। पंजिम मंडावी के मुहाने पर बसा है।
कर्नाटक में: शरावती और गंगावेळी नदी
केरल में: भरतपुझा, पेरियार और पम्बा नदी। भरतपुझा केरल की सबसे लंबी नदी है। पेरियार दूसरी सबसे लंबी नदी है।
पश्चिमी तट की नदियां प्रपाती हैं। जैसे शरावती पर जोग या गरसोप्पा जल प्रपात है।
कुंचिकल जल प्रपात सबसे ऊंचाई पर स्थित जल प्रपात है। यह कर्नाटक के शिमोगा के वाराही नदी पर स्थित है।
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