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प्रायद्वीपीय भारत के पठार की पूरी जानकारी एवं महत्त्व

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प्रायद्वीपीय भारत के पठार:

वेगनर के महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत के अनुसार भारत का प्रायद्वीपीय भूखंड गोंडवाना लैंड का हिस्सा है।

पैंजिया के दो हिस्सों में टूटने के बाद गोंडवाना लैंड के सृजन के बाद यह भी कालांतर में दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, भारत का प्रायद्वीप एवं ऑस्ट्रेलिया के रूप में टूटा।

आज का प्रायद्वीपीय भारत जो अरावली से नागपुर पठार तक और दक्षिण में कन्याकुमारी तक त्रिकोण में फैला है उसने अफ्रीका महाद्वीप से कट कर युरेशियन प्लेट से टकराकर हिमालय का निर्माण करते हुए भारत की वर्तमान स्थिति का निर्माण किया।

इस पूरे पठार में कहीं कहीं कुछ और ऊंचाई वाले पठार भी मिलते हैं जैसे मालवा पठार, नागपुर पठार, दंडकारण्य पठार आदि।

इसके अलावा कुछ पहाड़ियां और पहाड़ भी पाए जाते हैं जो पूर्वी, पश्चिमी घाटों में मिलता है।

भारत का प्रायद्वीपीय पठार, हिमालय से बहुत पुराने हैं। अरावली पर्वत, संसार का सबसे प्राचीन वलित पर्वत है।

प्रायद्वीप का उच्चावच:

पठार के उत्तरी हिस्से का ढलान उत्तर दिशा में है इसी कारण चंबल और बेतवा, यमुना में इटावा के पास और सोन, उत्तर दिशा में गंगा नदी में पटना के पास मिलती है।

सतपुड़ा के दक्षिण में, तापी नदी के मुहाने से पठार की ढाल पूर्व दिशा में है। इसी कारण महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी का प्रवाह पूर्व में है और बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।

सतपुड़ा पहाड़ी के उत्तर में नर्मदा भ्रंश घाटी और दक्षिण में तापी भ्रंश घाटी है और इनका ढ़लान अरब सागर की ओर है। यही कारण है कि यह दो नदियां नर्मदा और तापी, अपने पठार के सामान्य ढाल से विपरीत पश्चिम दिशा में बहती हैं।

तापी के मुहाने से पश्चिमी तट होते हुए कार्डेमम पहाड़ी तक पश्चिमी घाट है। इसे सह्याद्रि भी कहते हैं।

पूर्वी घाट ऐसे ही पूर्वी तट पर फैला है। लेकिन यह नदियों के प्रवाह के कारण पर्वतमाला न होकर कई आकृतियों में कटा या विभाजित है।

दोनों घाटों का मिलन दक्षिण में नीलगिरी पहाड़ियों में होता है। नीलगिरी का विस्तार केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में है।

इसके दक्षिण में अन्ना मलाई और सबसे अंतिम में कार्डेमम पहाड़ियां हैं।

भारत के प्रायद्वीपीय पठार:

  1. अरावली विस्तार
  2. मालवा पठार
  3. विंध्य पर्वत
  4. सतपुड़ा पहाड़ियां
  5. छोटा नागपुर पठार
  6. पश्चिमी घाट पर्वत
  7. पूर्वी घाट पर्वत
  8. नीलगिरी पहाड़
  9. दक्कन का पठार
  10. अन्नामलाई
  11. कार्डेमम पहाड़ियां
  12. शिलांग पठार

अरावली पर्वत:

अरावली पहाड़ी, दक्षिण पश्चिम में पालनपुर, गुजरात से दिल्ली के मजनू का टीला तक 800 किमी में फैला है।

इसका सबसे लंबा विस्तार राजस्थान में है जहां इसे जरगा पहाड़ी के नाम से जाना जाता है।

इसका सर्वोच्च शिखर गुरु शिखर है जो माउंट आबू में है। यह स्थान दिलवाड़ा के जैन मंदिरों हेतु भी प्रसिद्ध है।

यह संसार का सबसे प्राचीन बलित पर्वत है। कभी यह बहुत विशाल पर्वत हुआ करता था जो आज अवशेष के रूप में है।

बनास नदी अरावली को पश्चिम से पूर्व में पार करती है और चंबल में मिल जाती है।

मालवा का पठार:

यह अरावली के दक्षिण और विंध्य पर्वत के उत्तर में है।

इसका निर्माण ज्वालामुखी के शांत लावा के कई परतों से हुआ है। यानी यह बेसाल्ट चट्टान है जिससे रेगुर या कपासी या काली मिट्टी यहां पाई जाती है।

चंबल, बेतवा और काली सिंध, मालवा पठार से निकल कर उत्तर की ओर बहती यमुना में मिल जाती हैं।

नदियों के कारण मालवा पठार को बहुत अपरदित कर दिया है जिससे बहुत गहरी नालियां बन गई हैं। इसे उतखाद या बीहड़ नाम से भी जाना जाता है। मालवा पठार अवनालिका अपरदन हेतु प्रसिद्ध है। चंबल नदी इस अपरदन हेतु जिम्मेदार है।

छोटा नागपुर पठार:

यह पठार झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्यों में फैला है। इसमें से दो नदियां दामोदर नदी और सुवर्णरेखा नदी बहती है।

दामोदर नदी की भ्रंश घाटी इस पठार को दो भागों, उत्तर में हज़ारीबाग़ पठार और दक्षिण में रांची पठार में बांटती है।

रांची पठार को समप्राय मैदान का अच्छा उदाहरण माना जाता था।

भारत में केवल 3 नदियां भ्रंश घाटी बनाती हैं। नर्मदा, तापी और दामोदर नदियों की भ्रंश घाटियां।

छोटा नागपुर पठार खनिज के दृष्टि से सर्वाधिक समृद्ध पठार माना जाता है। इसी पठार पर राजमहल पहाड़िया भी मिलती हैं जो झारखंड में है।

शिलांग पठार भी इसी राजमहल पहाड़ियों का विस्तार है।

शिलांग पठार की सबसे ऊंची चोटी नोकरेक है जो गारो का हिस्सा है।

विंध्य पर्वत श्रेणी:

यह मालवा पठार के दक्षिण में है और इसका सम्पूर्ण विस्तार मध्य प्रदेश राज्य में है।

विंध्य पर्वत को पूर्व में विस्तार भाँढेर पहाड़ी और उसके पूर्व में कैमूर पहाड़ी के नाम से है।

विंध्य पर्वत के दक्षिण में नर्मदा भ्रंश घाटी है और इस घाटी के दक्षिण में सतपुड़ा पहाड़ियां और फिर तापी भ्रंश घाटी है।

सतपुड़ा पर्वत श्रेणी:

यह भारत का एक मात्र ब्लॉक पर्वत का उदाहरण है। यह गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ तक फैला है।

दो भ्रंश घाटियों के बीच के पर्वत को ब्लॉक पर्वत कहते हैं।

सतपुड़ा पश्चिम से पूर्व में तीन पहाड़ियों राजपीपला, महादेव और मैकाल पहाड़ी के रूप में फैली है।

इसकी सबसे ऊंची चोटी महादेव पहाड़ी पर धूपगढ़ है। धूपगढ़, तापी नदी का उद्गम है और पंचमढ़ी प्रसिद्ध हिल स्टेशन है।

मैकाल पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी अमरकंटक है। इसी से नर्मदा और सोन नदी निकलती है।

सोन नदी पूर्व में गंगा में तथा नर्मदा खम्बात खड़ी में गिरती है।

दक्कन पठार:

दक्कन पठार की स्थिति सतपुड़ा, पश्चिमी एवं पूर्वी घाट के बीच की अवस्थिति है। यह दक्कन ट्रैप का ही हिस्सा है।

इसमें हरिश्चन्द्र, बालाघाट, अजंता, गवितगढ़ पहाड़ियां महाराष्ट्र में है।

इसी के अन्तर्गत दंडकारण्य का पठार भी आता है। यह छत्तीसगढ़ और ओडिशा में फैला है। इसका दक्षिण हिस्सा बस्तर पठार के नाम से जाना जाता है जो भारत में एकमात्र टिन का स्रोत है।

छोटा नागपुर पठार और दंडकारण्य पठार के बीच महानदी के बेसिन के रूप में एक ढालू विस्तार है जिसे महानदी बेसिन कहते हैं। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहते हैं।

गुजरात की पहाड़ियां:

मांडव, बारदा और गिर पहाड़ियां।

एशियाटिक लायन केवल गिर में मिलते हैं क्यों कि यह अफ्रीका के सवाना के जंगलों के रहने वाले हैं और जब भारत का प्रायद्वीप टूट कर अलग हुआ तो इसके साथ अफ्रीकन शेर भारत के गिर में भारत आ गए।

पश्चिमी घाट:

यह वास्तव में पहाड़ नहीं है न ही इनका निर्माण वलन से हुआ है। यह भ्रंश कगार तब बना था जब अफ्रीकन प्लेट से टूटा था।

पश्चिमी घाट वह क्षेत्र है जो वास्तव में गोंडवाना के टूटने के समय अलग हुआ था और अब एक पूर्वी ढाल के रूप में पश्चिमी घाट पर मौजूद है।

इसका विस्तार तापी के मुहाने से केप केमोरिन यानी कन्याकुमारी तक जाता है।

यह हिमालय के बाद भारत में दूसरा सबसे लंबा विस्तार है। पश्चिमी घाट पर्वत सह्याद्रि के नाम से जाना जाता है।

उत्तरी सह्याद्रि की सबसे ऊंची चोटी कालसुबाई चोटी है। इसके दक्षिण में महाबलेश्वर चोटी है जहां से कृष्णा नदी का उद्गम है।

कर्नाटक में पश्चिमी घाट पर कुद्रेमुख और ब्रह्मगिरि चोटी है। यही ब्रह्मगिरि से कावेरी नदी निकलती है। जो तमिलनाडु तक जाती है।

सुदूर दक्षिण में पश्चिमी घाट पूर्वी घाट से मिलकर नीलगिरी पर्वतीय गाँठ का निर्माण करते हैं।

इसकी सबसे ऊंची चोटी डोडाबेट्टा है जो दूसरा सबसे ऊंचा शिखर है। प्रसिद्ध ऊटी पर्यटक स्थल इसी नीलगिरी पहाड़ी पर है।

केरल का प्रसिद्ध सदाबाहर बन साइलेंट वैली नीलगिरी पहाड़ियों पर ही है।

साइलेंट वैली अपने जैव विविधता और घने होने के कारण प्रसिद्ध है।

नीलगिरी के बाद एक दर्रा है जिसे पालघाट या पलक्कड़ गैप कहते हैं। यही तमिलनाडु को केरल से जोड़ता है।

इसके दक्षिण में अनाईमुदी पर्वतीय गांठ है जहां से उत्तर में अन्नामलाई, दक्षिण में कार्डेमम और उत्तर पूर्व में पालनी पहाड़ी निकलती है।
अनाईमुदी इस गांठ की सबसे ऊंची चोटी है।

पालनी पहाड़ी तमिलनाडु में स्थित है और इसपर पर्यटक स्थल कोडाइकनाल स्थित है।

शेनकोट्टा गैप केरल में है जो कार्डेमम पहाड़ी के बीच है। यह केरल के तिरुवनंतपुरम को तमिलनाडु से जोड़ती है।

पूर्वी घाट:

प्रायद्वीपीय भारत के पठार की तमाम नदियों के प्रवाह के कारण इस घाट की पहाड़ियों को कांट छांट दिया है।

गोदावरी और कृष्णा नदियों के बीच पूर्वी घाट पूरी तरह से गायब है।

यही कारण है कि पूर्वी घाट प्रदेशों में अपने क्षेत्रीय नामों से प्रसिद्ध हैं।

आंध्र प्रदेश: नल्लमलाई, पालकोंडा, वेलिकोंडा

तेलंगाना: शेषाचलम पहाड़ी

तमिलनाडु: जवादी, शेवरॉय, पंचमलाई, सिरुमालाई

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Shivesh Pratap

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