जीवन जीना एक कला है एवं इसके लिए भी हमें जीवन के हर पड़ाव पर कुछ नए अनुभव ग्रहण करने पड़ते हैं। जीवन इतना छोटा है की यदि हम सब कुछ कर के सीखेंगे तो हम अधिक आगे नही जा पाएंगे। इसलिए ही लोगों के अनुभव काम आते हैं।
यहाँ 5 खण्डों में प्रेरणादायक जीवन पर संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlok on Life with Hindi Meaning) दिया जा रहा है जो हमें कई अनुभव जानने में मदद करेगा।
चिन्ताज्वरो मनुष्याणां क्षुधां निद्रां बलं हरेत् ।
रूपमुत्साहबुध्दिं श्रीं जीवितं च न संशयः ॥
“चिंता” स्वरुप ज्वर (बुखार) भूख, नींद, बल, सौंदर्य, उत्साह, बुद्धि, समृद्धि और स्वयं जीवन को भी हर लेता है ।
आदित्यः सोमो भौमश्च तथा बुध बृहस्पतिः ।
भार्गवः शनैश्चरश्चैव एते सप्त दिनाधिपाः ॥
सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, और शनि – ये सात सप्ताह के दिनों के क्रमशः अधिपति हैं ।
संपत्सरस्वती सत्यं सन्तानं सदनुग्रहः ।
सत्ता सुकृत सम्भारः सकाराः सप्त दुर्लभाः ॥
संपत्ति, सरस्वती, सत्य, संतान, सज्जन कृपा, सत्ता, और सत्कृत्य की सामग्री – ये सात ‘स’ कार दुर्लभ हैं ।
मत्तः प्रमत्तः उन्मत्तः श्रान्तः क्रुद्धः बुभुक्षितः ।
त्वरमाणश्च लुब्धश्च भीतः कामी च ते दश ॥
मद्य पीया हुआ, असावध, उन्मत्त, थका हुआ, क्रोधी, डरपोक, भूखा, त्वरित, लोभी, और विषयलंपट – ये दस धर्म को नहीं जानते (अर्थात् उनसे संबंध नहीं रखना चाहिए) ।
आयु र्वित्तं गृहच्छिद्रं मन्त्रमौषध मैथुने ।
दानं मानापमानौ च नव गोप्यानि कारयेत् ॥
आयुष्य, वित्त, गृहछिद्र, मंत्र, औषध, मैथुन, दान, मान, और अपमान – ये नौ बातें गुप्त रखनी चाहिए ।
उद्योगः कलहः कण्डू र्मद्यं द्यूतं च मैथुनम् ।
आहारो व्यसनं निद्रा सेवनात् विवर्धते ॥
उद्योग, कलह, खुजली, मद्य, मैथुन, आहार, व्यसन, द्यूत, और निद्रा, सेवन करने से बढते हैं ।
पद्भ्यां कराभ्यां जानुभ्यामुरसा शिरस्तथा ।
मनसा वचसा दृष्टया प्रणामोऽष्टाङ्गमुच्यते ॥
हाथ, पैर, घूटने, छाती, मस्तक, मन, वचन, और दृष्टि इन आठ अंगों से किया हुआ प्रणाम अष्टांग नमस्कार कहा जाता है ।
शृङ्गार हास्य करुणा रौद्र वीर भयानकाः ।
बीभत्साद्भुतं संज्ञौ चेत्यष्टौ नाट्ये रसाः स्मृताः ॥
शृंगार, हास्य, करुणा, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, और अद्भुत – ये आठ नाट्यरस हैं ।
रति र्हासश्च शोकश्च क्रोधोत्साहौ भयं तथा ।
जुगुप्सा विस्मयश्चेति स्थायीभावाः प्रकीर्तिताः ॥
रति, हास, शोक, उत्साह, क्रोध, भय, निंदा, विस्मय – ये आठ स्थायीभाव माने गये हैं ।
गोभिर्विप्रैः च वेदैश्च सतीभिः सत्यवादिभिः
अलुब्धै र्दानशीलैश्च सप्तभि र्धार्यते मही ॥
गाय, ब्राह्मण, वेद, सती स्त्री, सत्यवादी इन्सान, निर्लोभी, और दानी – इन सात की वजह से पृथ्वी टिकी हुई है ।
शुचित्वं त्यागिता शौर्यं सामान्यं सुखदुःखयोः ।
दाक्षिण्यं चानुरक्तिश्च सत्यता च सुहृद्गुणाः ॥
प्रामाणिकता, औदार्य, शौर्य, सुख-दुःख में समरस होना, दक्षता, प्रेम, और सत्यता – ये मित्र के सात गुण हैं ।
रसो रुधिरं मांसश्च मेदो मज्जास्थिरेतसः ।
सप्त धातव इमे प्रोक्ताः सर्व देह समाश्रिताः ॥
रस, खून, मांस, मेद, मज्जा, अस्थि, और शुक्र – ये सात प्रकार के धातु शरीर में होते हैं ।
अग्निदो गरदश्वैव शस्त्रपाणि र्धनापहा ।
क्षेत्रदार हरश्चैव षडेत आततायिनः ॥
घर जलानेवाला, झहर देनेवाला, शस्त्र लेकर मारने आनेवाला, धन लूंटनेवाला, स्त्री हरण करनेवाला, खेत/जागीर हरनेवाला – ये सब आततायी हैं ।
मौनं कालविलम्बश्च प्रयाणं भूमिदर्शनम् ।
भुकुट्यन्य मुखी वार्ता नकाराः षड्विधाः स्मृताः ॥
मौन धारण कर लेना, विलंब करना, चले जाना, नीचे देखना, भौंह चढाना, और विषयांतर करना, ये छः मना करने के तरीके हैं ।
बह्वाशी स्वल्पसंतुष्टः सुनिद्रः शीघ्रचेतनः ।
प्रभु भक्तश्च शूरश्च ज्ञातव्याः षट् शुनो गुणाः ॥
खूब खाना, कम में संतुष्ट होना, गहरा सोना, सदा जाग्रत, स्वामी भक्त, और शौर्य – ये छः श्वान (कुत्ते) के गुण हैं ।
मेधावी वाक्पटुः धीरो लघुहस्तो जितेन्द्रियः ।
परशास्त्रपरिज्ञाता एष लेखक उच्यते ॥
बुद्धिमान, वाक्पटु, धीर, शीघ्र लिखनेवाला, संयमी, और अन्य शास्त्रों को पूर्णरुप से जाननेवाले को लेखक कहते हैं ।
भक्ष्यं भोज्यं च पेयम् च लेह्यं चोष्यं च पिच्छिलम् ।
इति भेदाः षडन्नस्य मधुराद्याश्च षड्रसाः ॥
अन्न के छे मधुर रसों का विभाजन इस प्रकार है – चबाने योग्य, निगलने योग्य, पीने योग्य, चाटने योग्य, चूसने योग्य, और चिकना ।
श्रीरागोऽथ वसन्तश्च भैरवः पञ्चमस्तथा ।
मेघरागो बृहन्नाटो षडेते पुरुषाः स्मृताः ॥
श्री, वसंत, भैरव, पंचम, मेघमल्हार, और बृहन्नाट ये गायन शास्त्र के छे पुरुष राग हैं ।
सुस्वरं सुरसं चैव सुरागं मधुराक्षरं ।
सालङ्कारं सप्रमाणं षड्विधं गानलक्षणम् ॥
स्वरयुक्त, रसयुक्त, रागसभर, मधुर शब्दोंवाला, अलंकारयुक्त और सप्रमाण, ऐसे गाने में छे लक्षण होने चाहिए ।
सीदन्ति सन्तः विलसन्त्यसन्तः पुत्रा म्रियन्ते जनकश्चिरायुः ।
परेषु मैत्री स्वजनेषु वैरं पश्यन्तु लोक कालि कौतुकानि ॥
संत दुःखी और असंत विलास करे, पुत्र अल्पायु और पिता दीर्घायु, परायों से मैत्री पर स्वजनों से बैर, जगत में कलि के ऐसे कौतुक होते हैं ।
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Great really awesome what a heart touching slokas and meanings in Hindi. ""Mujhe Garv hai ki hamare desh Mei aisi Bhi anmol partibha waley log hain . Wah ati Anand.