सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्याऽभ्यासेन रक्ष्यते ।
मृज्यया रक्ष्यते रुपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते ॥
धर्म का रक्षण सत्य से, विद्या का अभ्यास से, रुप का सफाई से, और कुल का रक्षण आचरण करने से होता है ।
अग्निना सिच्यमानोऽपि वृक्षो वृद्धिं न चाप्नुयात् ।
तथा सत्यं विना धर्मः पुष्टिं नायाति कर्हिचित् ॥
अग्नि से सींचे हुए वृक्ष की वृद्धि नहीं होती, जैसे सत्य के बिना धर्म पुष्ट नहीं होता !
तस्याग्निर्जलमर्णवः स्थलमरिर्मित्रं सुराः किंकराः
कान्तारं नगरं गिरि र्गृहमहिर्माल्यं मृगारि र्मृगः ।
पातालं बिलमस्त्र मुत्पलदलं व्यालः श्रृगालो विषं
पीयुषं विषमं समं च वचनं सत्याञ्चितं वक्ति यः ॥
जो सत्य वचन बोलता है, उसके लिए अग्नि जल बन जाता है, समंदर जमीन, शत्रु मित्र, देव सेवक, जंगल नगर, पर्वत घर, साँप फूलों की माला, सिंह हिरन, पाताल दर, अस्त्र कमल, शेर लोमडी, झहर अमृत, और विषम सम बन जाते हैं ।
नासत्यवादिनः सख्यं न पुण्यं न यशो भुवि ।
दृश्यते नापि कल्याणं कालकूटमिवाश्नतः ॥
कालकूट पीनेवाले की तरह असत्य बोलनेवाले को इस दुनिया में सख्य, पुण्य, यश या कल्याण प्राप्त नहीं होते ।
सत्यहीना वृथा पूजा सत्यहीनो वृथा जपः ।
सत्यहीनं तपो व्यर्थमूषरे वपनं यथा ॥
उज्जड जमीन में बीज बोना जैसे व्यर्थ है, वैसे बिना सत्य की पूजा, जप और तप भी व्यर्थ है ।
भूमिः कीर्तिः यशो लक्ष्मीः पुरुषं प्रार्थयन्ति हि ।
सत्यं समनुवर्तन्ते सत्यमेव भजेत् ततः ॥
भूमि, कीर्ति, यश और लक्ष्मी, सत्य का अनुसरण करनेवाले पुरुष की प्रार्थना करते हैं । इस लिए सत्य को हि भजना चाहिए ।
ये वदन्तीह सत्यानि प्राणत्यागेऽप्युपस्थिते ।
प्रमाणभूता भूतानां दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥
प्राणत्याग की परिस्थिति में भी जो सत्य बोलता है, वह प्राणियों में प्रमाणभूत है । वह संकट पार कर जाता है ।
सत्यधर्मं समाश्रित्य यत्कर्म कुरुते नरः ।
तदेव सकलं कर्म सत्यं जानीहि सुव्रते ॥
हे सुव्रता ! सत्य धर्म के आश्रय से जो मनुष्य काम करता है, वह हर काम सत्य हि है ऐसा समज ।
सत्यं स्वर्गस्य सोपानं पारावरस्य नौरिव ।
न पावनतमं किञ्चित् सत्यादभ्यधिकं क्वचित् ॥
समंदर के जहाज की तरह, सत्य स्वर्ग का सोपान है । सत्य से ज़ादा पावनकारी और कुछ नहीं ।
सत्येन पूयते साक्षी धर्मः सत्येन वर्धते ।
तस्मात् सत्यं हि वक्तव्यं सर्ववर्णेषु साक्षिभिः ॥
सत्य (वचन) से साक्षी पावन बनता है, सत्य से धर्म बढता है । इस लिए सभी वर्णो में, साक्षी ने सत्य हि बोलना चाहिए ।
सत्यमेव व्रतं यस्य दया दीनेषु सर्वदा ।
कामक्रोधौ वशे यस्य स साधुः – कथ्यते बुधैः ॥
‘केवल सत्य’ ऐसा जिसका व्रत है, जो सदा दीन की सेवा करता है, काम-क्रोध जिसके वश में है, उसीको ज्ञानी लोग ‘साधु’ कहते हैं ।
नास्ति सत्यसमो धर्मो न सत्याद्विद्यते परम् ।
न हि तीव्रतरं किञ्चिदनृतादिह विद्यते ॥
सत्य जैसा अन्य धर्म नहीं । सत्य से पर कुछ नहीं । असत्य से ज़ादा तीव्रतर कुछ नहीं ।
सत्यं मृदु प्रियं वाक्यं धीरो हितकरं वदेत् ।
आत्मोत्कर्षं तथा निन्दां परेषां परिवर्जयेत् ॥
धीर पुरुष ने सत्य, मृदु, प्रिय, हितकारक और स्वयं का उत्कर्ष हो वैसा बोलना चाहिए । परायों की निंदा का त्याग करना चाहिए ।
सत्यं सत्सु सदा धर्मः सत्यं धर्मः सनातनः ।
सत्यमेव नमस्येत सत्यं हि परमा गतिः ॥
सत्पुरुषों के लिए सत्य हि सनातन धर्म है । सत्य को नमस्कार करने चाहिए, सत्य हि परम् गति है ।
सत्यमेव जयते नानृतम् सत्येन पन्था विततो देवयानः ।
येनाक्रमत् मनुष्यो ह्यात्मकामो यत्र तत् सत्यस्य परं निधानं ॥
जय सत्य का होता है, असत्य का नहीं । दैवी मार्ग सत्य से फैला हुआ है । जिस मार्ग पे जाने से मनुष्य आत्मकाम बनता है, वही सत्य का परम् धाम है ।
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् ।
नासत्यं च प्रियं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः ॥
सत्य और प्रिय बोलना चाहिए; पर अप्रिय सत्य नहीं बोलना और प्रिय असत्य भी नहीं बोलना यह सनातन धर्म है ।
न पुत्रात् परमो लाभो न भार्यायाः परं सुखम् ।
न धर्मात् परमं मित्रं नानृतात् पातकं परम् ॥
पुत्र के अलावा अन्य लाभ नहीं, पत्नी से बेहतर सुख नहीं, धर्म से परम् मित्र नहीं और असत्य जैसा परम् पातक अन्य कोई नहीं ।
नानृतात्पातकं किञ्चित् न सत्यात् सुकृतं परम् ।
विवेकात् न परो बन्धुः इति वेदविदो विदुः ॥
वेदों के जानकार कहते हैं कि अनृत (असत्य) के अलावा और कोई पातक नहीं; सत्य के अलावा अन्य कोई सुकृत नहीं, (और) विवेक के अलावा अन्य कोई भाई नहीं ।
विश्वासायतनं विपत्तिदलनं देवैः कृताराधनम्
मुक्तेः पथ्यदनं जलाग्निशमनं व्याधोरग स्तम्भनम् ।
श्रेयः संवननं समृद्धिजननं सौजन्य सञ्जीवनम्
कीर्तेः केलिवनं प्रभाव भवनं सत्यं वचः पावनम् ॥
विश्वास को आश्रय देनेवाला, विपत्ति का नाश करनेवाला, देव जिसकी आराधना करते हैं, मुक्ति के लिए पथ्य, अग्नि को शांत करनेवाले पानी जैसा, साँप को रोकनेवाले व्याध जैसा, श्रेयकारक, समृद्धिदायी, सौजन्य की संजीवनी जैसा, कीर्ति बढानेवाला, (और) प्रभाव का सदन, एसा सत्य वचन पावनकारी है ।
सदयं ह्रदयं यस्य भाषितं सत्यभूषितम् ।
कायः परहिते यस्य कलिस्तस्य करोति किम् ॥
जिसका हृदय दयालु है, वाणी सत्य से भूषित है, और जिसकी काया परायों के हितार्थ है, उसे कलि क्या कर सकता है ?
सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः ।
सत्येन वायवो वान्ति सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम् ॥
सत्य से पृथ्वी का धारण होता है, सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से पवन चलता है । सब सत्य पर आधारित है ।
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Thank you these slokas hepled me lot
Thank you for your wonderful effort. May we all understand the value of being truthful in all walks of life.