संघ की प्रार्थना की रचना व प्रारूप सर्वप्रथम फरवरी 1939 में नागपुर के पास सिन्दी में हुई बैठक में तैयार किया गया। प्रार्थना बैठक में संघ के आद्य सरसंघचालक डाॅक्टर केशव बलिराम हेडगेवार, श्री गुरूजी, बाबा साहब आपटे, बालासाहब देवरस, अप्पाजी जोशी व श्री नानासाहब टालाटुले जैसे प्रमुख लोग सहभागी थे।
प्रारम्भ में प्रार्थना आधी मराठी व आधी हिन्दी भाषा में बनी परन्तु सारे देश में एक स्वरूप एवं एक भाषा में प्रार्थना हो, ऐसा विचार करके देश की सर्वमान्य संस्कृत भाषा में इसका अनुवाद किया गया एवं संशोधित किया गया। प्रार्थना के अन्त में ‘भारत माता की जय’ हिन्दी में रखा गया।
पुणे के नरहरि नारायण भिड़े द्वारा प्रार्थना का संस्कृत में रूपान्तरण किया गया। संघ यानी Rashtriya Swayamsevak Sangh की वर्तमान में प्रचलित प्रार्थना को पहली बार सार्वजनिक रूप से 18 मई 1940 को नागपुर में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग में गाया गया था, और प्रचारक यादव राव जोशी जी ने पहली बार प्रार्थना गायी थी।
संघ की प्रार्थना में कितने श्लोक हैं? : संघ की प्रार्थना में कुल 3 श्लोक हैं।
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम् ।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।।१।।
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम्
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत् ।।२।।
समुत्कर्षनिःश्रेयस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम् ।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम् ।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ।।३।।
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