शक्ति पूजा और धर्म की सार्थकता का द्वंद्व:
निकुम्भला की यज्ञशाला में समस्त विधि मेघनाद की “अपराजेय” होने की पूजा और राम की शक्ति के समन्वय की पूजा एक ही दिन हो रही है ………राक्षस कुल भूषण मेघनाद
बीजमंत्रों के उच्चारण से दशो दिशाएं अनुनादित, घड़ियालों के स्वर में ब्रह्माण्ड कम्पित, शक्ति पूजा में शस्त्रों की सिद्धि हेतु निरीहों की बलि का करूँ क्रंदन ……
दूसरी ओर शुद्ध-बुद्ध-समाधिस्थ पीताम्बर में जटाजूट धारी……रात्रि में सम्मुख रखे हुए शक्ति स्वरुप “शर” की दीप्ति से प्रभासित वातावरण ……साक्षात ब्रम्ह राम
एकतरफ शक्ति स्वरूपा सीता के सतीत्व के हनन हेतु शक्ति के पूजा में रत है मेघनाद …….दूसरी ओर शक्ति के परित्राण के लिए समाधिस्थ आराधना में रत हैं …..ब्रम्ह राम
एक साधन सम्पन्न ……दूसरा साधन विपन्न
एक भोगी ………..दूसरा वैरागी
एकतरफ बल के स्थापन में रत …….. दूसरा आदर्श के स्थापन में रत
एक के भवन के मंदिर में शक्ति……..एक के मन मंदिर में शक्ति
शक्ति किसका साथ देंगी ….????
बस यहीं पर “धर्म” पात्रता का नेतृत्व करता है और धर्म के सर्वोपरि होने का प्रमाण है की शक्ति को धर्मोंमुख होना ही पड़ता है …..
शेषावतार मेघनाद का वध करते हैं ……शक्ति पूजा छिन्न होती है और ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण शक्ति धर्म के सम्मुख झुक कर ….
“धर्म स्थापन” के महान कार्य में लग जाती है |
कम पात्रता, संसाधन, कर्मकांड, के बाद भी राम विजय को वरण करते हैं ………….
भावातुर “हुंकार”
विजयादशमी के पर्व की शुभ एवं विजय कामनाएं |
Dharma vs Power