भावनात्मकता एवं आदर्शों के अतिरेक में मिटता भारतीय समाज

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|| भारतीय सेना के झोलझाल पर एक विमर्श ||

हम भारतीयों के अंदर हमेशा से एक बहुत बड़ी कमी रही है कि हमने अपना मूल्यांकन हमेशा भावनात्मक स्तर पर किया है जिसमें अपने पक्ष के प्रति पक्षपात पूर्ण तरीके से पक्षधरता भी शामिल है | यदि हमने प्रारंभ से ही निष्पक्ष मूल्यांकन करने की आदत डाली होती एवं हर सामाजिक विफलता पर ईमानदारी से सही रणनीति के साथ आगे बढ़े होते तो आज कहानी कुछ और ही होती और यह देश कभी गुलाम नहीं हुआ होता|

हम भारतीय तात्कालिक परिणामों पर बहुत जश्न मनाते हैं परंतु दीर्घकालिक परिणामों पर हम कम ही सोच पाते हैं| यह आज की कमी नहीं है अपितु सैकड़ों सालों से हम यही कमी दूहरा रहे हैं|

पाकिस्तान के 4 घुसपैठियों ने देश की सीमाओं के भीतर घुस कर एक पूरी ब्रिगेड (लगभग 1500 से 4000 सैनिक) पर हमला कर दिया और उसमें 18 जवान शहीद हो गए| पूरा देश भावनाओं का वमन करने लगा परंतु इसी के बीच में हमें ईमानदार होकर यह भी सोचना चाहिए कि एक पूरी ब्रिगेड के प्रबंधन की क्या स्थिति रही होगी कि चार व्यक्तियों ने सेना की ब्रिगेड की सुरक्षा में सेंध लगाकर इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दे दिया| लगभग 1500 से 4000 सैनिक मिलकर अपनी सुरक्षा में नाकामयाब रहे|

पाकिस्तान से ज्यादा गुनाहगार मैं ब्रिगेडियर के. सोमशेखर को मानता हूँ जिस व्यक्ति के नेतृत्व में इतनी ढील थी| सेना की ब्रिगेड कहीं भी डेरा डालती है तो यह 24×7 स्व-सुरक्षा में होती है जहाँ जवान ड्यूटी अदल बदल कर पहरा देते हैं|

झेलम नदी के तट पर जब पोरस की सेना जब अपना डेरा डाल कर आराम कर रही थी उसी समय सिकंदर की सेना वहां से 17 मील आगे जाकर नदी पार करके रात में ही धोखे से उन पर हमला कर देती है और युद्ध में यह पूरी तरह से जायज है|

यदि झेलम नदी पर सिकंदर के धोखे से इस देश में सीख लिया होता कि वास्तव में उनका पाला धर्म युद्ध करने वाले अपने ही हिंदू राजाओं से नहीं पडी है अपितु विदेशी अधर्मियों से पढ़ी है और उनके लिए धर्म युद्ध और कूट युद्ध में कोई अंतर नहीं है तो निश्चय ही तराइन के दुसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की वह दुर्दशा नहीं होती जो मोहम्मद गोरी ने की क्योंकि मोहम्मद गोरी ने भी रात में अचानक ही हमला बोलकर पृथ्वीराज को संभलने का मौका ही नहीं दिया |

इस देश को बहुसंख्य हिन्दुओं को कठोर होकर, भावनात्मकता के चोले को उतार कर हर स्थिति का यथार्थज्ञान करके भविष्य की दिशा को सही करने की आवश्यकता है | आदर्शों की अतिरेक और भावनाओं के प्रवाह ने इस देश की संस्कृति को मटियामेट करके रख दिया है और कहीं ना कहीं भारत अपनी इसी हिन्दू संस्कृति की आदर्शों के अतिरेक के कारण नित नए शत्रु पैदा करते चला जा रहा है|

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Shivesh Pratap

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