सन्यासी परंपरा की वर्तमान कड़ी हैं संघ प्रचारक
याज्ञवल्क्य ने अपनी पत्नी मैत्रेयी को त्याग कर सन्यास ले लिया और भौतिक लिप्सा में जीते समाज को “मोक्ष” का मार्ग सुझाया |
फिर गौतम बुद्ध ने अपनी पत्नी “यशोधरा” का परित्याग कर घनघोर नीरव रात्री में सम्बुद्ध होने को अग्रसर हो गए |
उसके बाद महावीर ने अपनी पत्नी “यशोदा” का त्याग कर “जिन” की प्राप्ति का मार्ग ले लिया और महावीर कहलाये |
सोलहवीं शताब्दी में मुगलों द्वारा लतियाये जाते हिन्दू समाज में तुलसीदास अपनी पत्नी रत्नावली को छोड़ राममय हो गए और अधोपतित होते हिन्दू समाज को “मानस” की पतवार थमा दिया |
आज नरेन्द्र मोदी नाम का एक व्यक्तित्य कुछ ऐसी ही वेदना से यशोदाबेन को राष्ट्रहित में परित्याग कर अपनी ही भारत भूमि पर विनष्ट होते समाज को झिंझोड़ कर जगाने आया है |
कोई भी देशकाल, परिस्थिति हो, जब तक हिन्दू समाज में सर्वोच्च चेतना और मानवता के कल्याण हेतु अपने मोह को त्याग परमार्थ के लिए कोई न कोई अपना जीवन अर्पण करता रहेगा ……इस सनातन संस्कृति का बाल भी बांका भी नहीं होगा |
जहाँ दुसरे धर्मों में 72 कुंवारी हूरों से सम्भोग को जन्नत का सर्वोच्च सुख बताकर लोगों को इश्वर और मुक्ति के नाम पर सम्भोग सुख से ललचाया गया वहीँ भारत की महान हिन्दू संस्कृति जिसने सम्भोग और कामनाओं पर विजय प्राप्त कर अपनी मेधा, बुद्धि का प्रवाह “मोक्ष” की ओर मोड़ दिया |
क्या है भारत की हिन्दू संस्कृति का वह गूढ़ तत्त्व जिसने “काम” और “सम्भोग” को भी जीत लिया ? क्या है उस हिन्दू दर्शन की ओजस्विता जिसने काम और सम्भोग जैसे सुखों पर विजय प्राप्त कर लिया ?? क्या है वह विचार जिसने ब्रम्हचर्य को नागाओं, ब्रम्ह्चारियों, दिगम्बरों और सन्यासियों के रूप में अखंड और सतत रखा ???
वास्तव में उपरोक्त पर विचार करना हिन्दू धर्म के बारे में एक अलग ही परिदृश्य तैयार करता है |
यह वही धर्म है जिसकी विचारशीलता और अंतिम सत्य की खोज के प्रति जिजीविषा ने “ज्ञान” और “वैराग्य” की इतनी यथार्थ और गूढ़ विरासत तैयार किया जो हजारों सालों से “अन्तरंग ही भावे” की अजर अमर यात्रा में चलायमान है |
ज्ञान और वैराग्य की यही विरासत है जिसने कभी विश्व विजेता सिकंदर के सामने लेटे एक निर्भय दिगंबर के रूप में सिकंदर की सेना को मार्ग बदल देने को विवश करता है | तो कभी महाराजा शिवी बनकर एक कबूतर की प्राण रक्षा में अपना सर्वस्व लुटा देने को उठ खड़ा होता है |
ज्ञान और वैराग्य की यह विरासत इतनी सशक्त है जो कभी की ब्राह्मणों के यज्ञोपवित तोड़ने वाले तुगलक के समय में सूअर के चर्बी के यज्ञोपवित के रूप में “सुकर संप्रदाय” बनकर उभरता है तो कभी गुरु तेगबहादुर की शहादत बनकर पूरे मुग़ल सल्तनत को अपने बलिदान के गौरव से लजा देता है |
ज्ञान और वैराग्य की यह महान परंपरा ही है जिसने औरंगजेब द्वारा १२ लाख मंदिरों को खंडित किये जाने के बाद भी सनातन धर्मियों के हृदयों से हिदू धर्म के ईश्वरीय आत्मतत्व को नहीं मिटा सका | क्यों की भारत का धर्म कभी मंदिरों से संचालित नहीं होता था अपितु यह तो गुफाओं और आरण्यकों की महँ गाथा है | अत्याचारियों को भ्रम था की कुरान या बाइबिल जैसे किसी किताबों से इस महान संस्कृति का सञ्चालन होता है | जब की इस महान संस्कृति का बाल बांका तब भी नहीं हुआ जब की नालंदा और तक्षशिला में ग्रथों और पांडुलिपियों को जलाया गया | क्यों की यह संस्कृति पुस्तक प्रधान नहीं विचार प्रधान है |
आक्रान्ताओं को यह पता नहीं की इस राष्ट्र का दर्शन श्रुति और स्मृति नाम के दो पहियों पर चलायमान है और श्रुति वह परंपरा है जिसे कभी जलाया या नष्ट नहीं किया जा सकता । यह तो युगों से सनातन धर्म की आत्मा मेँ सतत प्रवाहमान है ।
इस संस्कृति का सिंहावलोकन करें तो हम पाएंगे की यह किसी किताब या सिद्धांत द्वारा संचालित नहीं अपितु दर्शनों का एक गतिक प्रवाह है | यह प्रवाह इतना सूक्षम है जो तलवारों से नहीं कट या मिट सकती |
आज भी जब राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ की प्रचारक परंपरा को देखता जनता और समझता हूँ तो ज्ञान और वैराग्य की यह महान परंपरा अखंड दिखती है जो हजारों वर्षों से इस राष्ट्र की अखंडता को उर्जित और प्रणित करती आई है | संस्कृति के इस सिंहावलोकन में संघ के “प्रचारक” पद को ज्ञान और वैराग्य की महायात्रा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव मानता हूँ और आज के समय में संघ के प्रचारकों के त्याग और समर्पण के सामने नतमस्तक हो जाता हूँ |
ज्ञान और वैराग्य की इस महायात्रा में संघ की प्रचारक परंपरा में गुरु गोलवलकर, भाऊराव देवरस, रज्जू भैय्या, सुदर्शन जी, दत्तोपंत ठेंगडी, जैसे रत्न जगमगा रहे हैं और दो प्रचारक कर्त्तव्य कर्म के कुरुक्षेत्र में नए भारत की संकल्पना हेतु सन्नद्ध हो रहे है एक कृष्ण के रूप में मोहन भागवत और दूसरे नरेन्द्र मोदी के रूप में अर्जुन |
सामने खड़ी है असंख्य कौरव सेना | परन्तु जय तो धर्म का होगा |
जब तक यह महान भारत ज्ञान और वैराग्य के वशीभूत सामाजिक और सांस्कृतिक रक्षा हेतु यशोधराओं और यशोदाओं का त्याग करता रहेगा और यशोधराओं का चरित्र अनंतकाल तक संन्यासियों और वैरागियों की महायात्रा को पोषित करता रहेगा । तब तक इस संस्कृति के अमरत्व की थाती को कोई छू न पायेगा |
ज्ञान और वैराग्य की महागाथा एवं संघ की “प्चरक” परंपरा