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Sanskrit Shlokas for Tapasya with Hindi Meaning | तप (तपस्या) पर संस्कृत श्लोक

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Sanskrit Shlokas for Tapasya with Hindi Meaning | तप (तपस्या) पर संस्कृत श्लोक

मीनः स्नानरतः फणी पवनभुक्त मेषस्तु पर्णाश्ने
निराशी खलु चातकः प्रतिदिनं शेते बिले मूषकः ।
भस्मोध्द्वलनतत्परो ननु खरो ध्यानाधिसरो बकः
सर्वे किं न हि यान्ति मोक्षपदवी भक्तिप्रधानं तपः ॥

मीन (मछली) नित्य जल में स्नान करती है, साँप वायु भक्षण करके रहता है; चातक तृषित रहता है, चूहा बिल में रहता है, गधा धूल में भस्मलेपन करता है; बगुला आँखें मूंदके बैठ ध्यान करता है; पर इन में से किसी को भी मोक्ष नहीं मिलता, क्यों कि तप में प्रधान “भक्ति” है ।

देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम् ।
ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते ॥

देवों, ब्राह्मण, गुरुजन-ज्ञानीजनों का पूजन, पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा – यह शरीर का तप कहलाता है ।

मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः ।
भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ॥

मन की प्रसन्नता, सौम्यभाव, मौन, आत्मचिंतन, मनोनिग्रह, भावों की शुद्धि – यह मन का तप कहलाता है ।

अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत् ।
स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङमयं तप उच्यते ॥

उद्वेग को जन्म न देनेवाले, यथार्थ, प्रिय और हितकारक वचन (बोलना), (शास्त्रों का) स्वाध्याय और अभ्यास करना, यह वाङमयीन तप है ।

अनशनमूनोदरता वृत्तेः संक्षेपणं रसत्यागः ।
कायक्लेशः संलीनतेति बाह्यं तपः प्रोक्तम् ॥

अनशन, कम खुराक, वृत्ति को संकोरना, रसत्याग, काया को कष्ट देना, और संलीनता – ये सब बाह्य तप कहे गये हैं ।

मलं स्वर्णगतं वह्निः हंसः क्षीरगतं जलम् ।
यथा पृथक्करोत्येवं जन्तोः कर्ममलं तपः ॥

जैसे सुवर्ण में रहे हुए मल को अग्नि, और दूध में रहे हुए पानी को हंस पृथक् करता है, उसी प्रकार तप प्राणीयों के कर्ममल को पृथक् करता है ।

यद् दूरं यद् दुराराध्यं यच्च दूरे व्यवस्थितम् ।
तत्सर्वं तपसा साध्यं तपो हि दुरतिक्रमम् ॥

जो दूर है, कष्टसाध्य है, और दूर रहा हुआ है, वह सब तप से साध्य है । तप अवश्य करने योग्य है ।

रागद्वैषौ यदि स्यातां तपसा किं प्रयोजनम् ।
तावेव यदि न स्यातां तपसा किं प्रयोजनम् ॥

यदि राग-द्वेष कायम हो तो तप का क्या मतलब ? और यदि वे दोनों न हो तो तप की क्या जरुरत ?

अहिंसा सत्यवचन मानृशंस्यं दमो घृणा ।
एतत् तपो विदुः र्धीराः न शरीरस्य शोषणम् ॥

अहिंसा, सत्यवचन, दयाभाव, दम और (भोगों के प्रति) तिरष्कार, इन्हें धीर पुरुष तप कहते हैं, न कि शरीर के शोषण को ।

क्षान्त्या शुध्यन्ति विद्वांसो दानेना कार्यकारिणः ।
प्रच्छन्नपापा जापेन तपसा सर्व एव हि ॥

क्षमा से विद्वान शुद्ध होते हैं; अयोग्य काम करनेवाले दान से, और गुप्त पाप करनेवाले जप से शुद्ध होते हैं । पर तप से तो सभी शुद्ध होते हैं ।

मासपक्षोपवासेन मन्यन्ते यत्तपो जनः ।
आत्म विद्योपघतस्तु न तपस्तत्सतां मतम् ॥

मास या पक्ष के उपवास को सामान्य लोग तप समजते हैं (वह तप नहि), पर वह आत्मविद्या का उपघात है, ऐसा सज्जनों का मत है ।

कान्तारं न यथेतरो ज्वलयितुं दक्षो दवाग्निं विना
दावाग्निं न यथेतरः शमयितुं शक्तो विनाम्भोधरम् ।
निष्णातं पवनं विना निरसितुं नान्यो यथाम्भोधरम्
कर्मौघं तपसा विना किमपरं हर्तुं समर्थं तथा ॥

जिस तरह दावाग्नि के सिवा अन्य कोई वन को जलाने में प्रवीण नहि, जिस तरह दावाग्नि के शमन में बादलों के सिवा अन्य कोई समर्थ नहि, और निष्णात पवन के अलावा अन्य कोई बादलों को हटाने शक्तिमान नहि, वैसे तप के अलावा और कोई, कर्मप्रवाह को नष्ट करने में समर्थ नहि ।

विषयाशावशातीतो निरारंम्भोऽपरिग्रहः ।
ज्ञानध्यान तपोरक्त स्तपस्वी स प्रशस्यते ॥

विषय की आशा के वश में न आया हुआ, अनारंभी, अपरिग्रही, ज्ञान-ध्यान-तप में मग्न रहनेवाला तपस्वी प्रशंसा के पात्र है ।

तनोति धर्मं विधुनोति कल्मषं हिनस्ति दुखं विदधाति संमदम् ।
चिनोति सत्त्वं विनिहन्ति तामसं तपोऽथवा किं न करोति देहिनाम् ॥

तप धर्म को फैलाता है, दुःख का नाश करता है, अस्मिता देता है, सत्त्व का संचय करता है, तमस् का नाश करता है । अर्थात् यूँ कहो कि तप क्या नहि करता ?

विशुध्यति हुताशेन सदोषमपि काञ्चनम् ।
तद्वत् तथैव जीवोऽयं तप्यमानस्तपोऽग्निना ॥

दोषयुक्त सोना (सुवर्ण) भी अग्नि से शुद्ध होता है, वैसे यह (संसार से तप्त) जीव तपरुप अग्नि से शुद्ध होता है ।

यस्माद्विघ्न परम्परा विघटते दास्यं सुराः कुर्वते
कामः शाम्यति दाम्यतीन्द्रियगणः कल्याणमुत्सर्पति ।
उन्मीलन्ति महर्ध्दयः कलयति ध्वंसं च यत्कर्मणां
स्वाधीनं त्रिदिवं करोति च शिवं श्लाध्यं तपस्तप्यताम् ॥

जिस से विघ्न परंपरा दूर होती है, देव दास बनते हैं, काम शांत होता है, इंद्रियों का दमन होता है, कल्याण नजदीक आता है, बडी संपत्ति का उदय होता है, जो कर्मो का ध्वंस करता है, और स्वर्ग का कब्जा दिलाता है, उस कल्याणकारी, प्रशंसनीय तप का आचरण करो ।

 

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Shweta Pratap

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