लिंकिन पार्क के चर्चित सिंगर चेस्टर बेंनिंगटन ने 41 साल की उम्र में अवसाद ग्रस्त होकर अपने घर में आत्महत्या कर लिया । यानी अपने संगीत में रेवोल्यूशन को दिखा दुनिया में बदलाव का विमर्श देने वाला शख्श खुद ही निराशा के अंधकूप में डूब अपने जीवन की इहलीला समाप्त कर बैठा।
एक बार फिर पश्चिम का वैभव और भौतिकवाद बेंनिंगटन की आत्महत्या के साथ नंगा हो गया । बहुत छोटी सी उम्र में ही चेस्टर बेनिंगटन ने सफलता का हर वह मुकाम हासिल किया जो एक व्यक्ति के लिए स्वप्न से कम नहीं है परंतु इसके बाद भी वह कौन सी ऐसी रिक्तता थी जिसने उनको इतना अकेला कर दिया कि उन्हें आत्महत्या के अलावा और कोई दूसरा उपाय नहीं बचा ।
बस यही वह स्थिति है जहां पर लाखों आलोचनाओं के बाद भी हमारी हिंदू और भारतीय संस्कृति अपनी सार्थकता को सिद्ध करती है । भारतीय संस्कृति का अधिकतर विमर्श भौतिकवाद के महासागर में अपनी सीमाओं को संतुलित करने का उपदेश देती है ।
एक और जहां दुनिया में अन्य देश की संस्कृतियों में लोग तमाम वैभव इकट्ठा करने के बाद या फिर निरंकुश हो जाते हैं या निराश हो जाते हैं वहीं दूसरी ओर भारतीय संस्कृति के विचार परंपरा ने हमें एक ऐसी विरासत सौंपी है जहां सत्ता के चरम पर पहुंचकर भौतिकता को लोग ईश्वर को समर्पित कर देते हैं । इसका सबसे अच्छा उदाहरण है केरल का श्री पद्मनाभ मंदिर का जहां के राजा ने भगवान विष्णु को अपने समस्त राज्य का राजा मान कर स्वयं को “पद्मनाभ दास” की उपाधि देकर राज किया करते थे । तभी आज पद्मनाभ स्वामी मंदिर खजाने से भरा है। सामूहिक रूप से राजा के साथ प्रजा के विलासिता और वैभव का त्याग संसार में कहीं मिलना दुर्लभ है ।
सनातन परंपरा विदेहता से प्रेरित है। सब कुछ होकर भी उसे अपना न मानने की व्यवस्था बहुत पहले से निर्धारित की गई है। ईशोपनिषद का पहला श्लोक यही कहता है कि,
ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ।।
अर्थात हमारी भौतिकता सिर्फ तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा वाली है यानी कि परित्यक्त भाव से इस धरा की वस्तुओं का सेवन करे। यही कारण है हमारे संस्कृति में भौतिकता का प्रभाव कमतर है।
फिर भी लिंकिन पार्क के इस सुपरस्टार का इस तरह से जाना अत्यधिक व्यथित करता है । काश बेनिंगटन भारत आकर काशी और हरिद्वार की परंपरा का हिस्सा बन पाते और यह महसूस कर पाते कि दरअसल जिस कारण वह इतने रिक्त और अवसाद ग्रस्त हैं उसका समाधान तो दशाश्वमेध घाट पर बैठे किसी सन्यासी के पास है । चेस्टर को वो सब चाहिए था जो दशाश्वमेध के घाट पर खुले आसमान में बैठे एक अनाम सन्यासी के पास मौजूद था ………… ।
#शिवेशानुभूति
रक्षा निर्यात पर भारत सरकार द्वारा किए जा रहे अभूतपूर्व प्रयासों के…
भारतीय द्वीप समूहों का सामरिक महत्व | दैनिक जागरण 27 मई 2023
World Anti Tobacco Day in Hindi तंबाकू-विरोधी दिवस: धूम्रपान-मुक्त दुनिया की ओर परिचय:…
Commonwealth Day in Hindi 2023 राष्ट्रमंडल दिवस: एकता और विविधता का उत्सव परिचय: राष्ट्रमंडल…
आतंकवाद विरोधी दिवस: मानवता की रक्षा करना और शांति को बढ़ावा देना आतंकवाद विरोधी दिवस परिचय:…
World Telecommunication Day (Information Society Day) in Hindi विश्व दूरसंचार दिवस का इतिहास 17…