Global Hindus

श्रीनिवास रामानुजन शिक्षा, जीवनी | महान गणितज्ञ रामानुजन की हिन्दू धर्म में अटूट निष्ठा

Spread the love! Please share!!

मित्रों, महान गणितज्ञ रामानुजन की हिन्दू धर्म में अटूट निष्ठा थी |श्री रामानुजन ने कहा था………….

“मेरे लिए गणित के उस सूत्र का कोई मतलब नहीं है जिससे मुझे आध्यात्मिक विचार न मिलते हों।” ……

एक बहुत ही सामान्य परिवार में जन्म ले कर पूरे विश्व को आश्चर्यचकित करने की अपनी इस यात्रा में इन्होने भारत को अपूर्व गौरव प्रदान किया। रामानुजन के शोधों की तरह उनके गणित में काम करने की शैली भी विचित्र थी। वे कभी कभी आधी रात को सोते से जाग कर स्लेट पर गणित से सूत्र लिखने लगते थे और फिर सो जाते थे। इस तरह ऐसा लगता था कि वे सपने में भी गणित के प्रश्न हल कर रहे हों।

रामानुजन की कुलदेवी “नामगिरी देवी”:

शायद आप को आश्चर्य होगा की उन्होंने अपने जीवन के सारे गणितीय शोधो का श्रेय अपने गाँव की एक साधारण सी कुलदेवी “नामगिरी देवी” को देते थे | पूरी दुनिया के सामने ट्रिनिटी और हारवर्ड में भी या जब दुनिया भर के पत्रकार उनसे किसी प्रेरणा की बात करते थे तो वो सिर्फ एक नाम लेते थे “नामगिरी देवी”….|

रामानुजन का आध्यात्म के प्रति विश्वास इतना गहरा था कि वे अपने गणित के क्षेत्र में किये गए किसी भी कार्य को आध्यात्म का ही एक अंग मानते थे। वे धर्म और आध्यात्म में केवल विश्वास ही नहीं रखते थे बल्कि उसे तार्किक रूप से प्रस्तुत भी करते थे। रामानुजन के नाम के साथ ही उनकी कुलदेवी का भी नाम लिया जाता है। इन्होने शून्य और अनन्त को हमेशा ध्यान में रखा और इसके अंतर्सम्बन्धों को समझाने के लिए गणित के सूत्रों का सहारा लिया।

विश्वमंच पर जाकर भी वो सदैव केवल शाकाहारी ही नहीं अपितु स्वयं पकाकर खाने वाले विशुद्ध आयंगर ब्राह्मण का आदर्श जीवन भी जिया | जब उनकी तबियत खराब हुई तो डाक्टर उन्हें चिकन सूप पीने की सलाह दिए जिसे उन्होंने ये कहते त्याग दिया की मृत्यु स्वीकार है परन्तु धर्म से विमुख नहीं होउंगा |

मित्रों आज हम सनातन धर्म के ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहाँ यह विराट संस्कृति हमसे तमाम आशाओं और आकांक्षाओं की उम्मीद में है | कौन हैं यह “नामगिरी देवी” क्या हमारे अपने गाँव के “काली माई” और “डीह बाबा” की पूजा के रूप में विद्यमान दुर्गा और शिव जी ही तो हैं |

क्या हम अपने ग्राम देवता, माता,पिता, भावनात्मक सम्बन्ध सब कुछ सिर्फ इसलिए भूल गए की हम आज दिल्ली और बम्बई में रहने लगे …….हमने अपनी वो आस्था भुला दिया जहाँ की मनौतियों ने कितने भोले हिन्दुओं को संतान दिया और निरोग किया | बहुत इमानदार होकर कहा जाए तो अपनी सहज आस्था और माता पिता के साथ जो भावना है हम उसे दुनिया की भीड़ में कितना कृतिम कर दे रहे हैं ????

आज से १० साल पहले जब साइ बाबा जैसे “हज कम टूरिस्म” का प्रचार नहीं था तो क्या हिन्दू धर्म में लोगों की मन्नतें नहीं पूरी होती थीं ??? क्या लोगों के जीवन में दुःख ही दुःख था जो साइ बाबा के यात्रा से दूर हो रहा है ??? क्या हिन्दू धर्म के लोग अधम थे या हिन्दू निकृष्ट जीवन पध्हती थी ???

आज जब शंकराचार्य जी ने ये कहा की “माता पिता की पूजा” छोड़ कर उन्हें घर में अकेला छोड़ कर मुर्दों को पूजने जाने का क्या औचित्य है ???? तो इसमें बुरा क्या है | हम में से कितने ऐसे हैं जिनके माता पिता आज बुढ़ापे में अकेले जीवन जीने को मजबूर हैं ……क्या हम उनकी सुध ले सकते हैं ???? क्या उनके पास जाकर उनकी सेवा करके हम तीर्थयात्रा का पुन्य नहीं ले सकते हैं |

जिस धर्म में “मातृपितृ चरणकमलेभ्यो नमः” का उद्घोष है, जिस देश में गणेश भगवान् “माता पिता” की पूजा करके धरती की परिक्रमा कर लेते हैं उस देश में शिरडी में जाकर कब्र पूजने का क्या औचित्य है ? क्या हम सिर्फ इसलिए साई की पूजा करने लगे की हमारे बगल वाला करता है ??? आस्था “नक़ल” से पैदा नहीं होती |

बहुत दुःख होता है की सनातन हिन्दू धर्म में आज हम श्री रामानुजन के महान आदर्शों को समझ क्यों नहीं पा रहे हैं | 

आस्था एक सहज अभिव्यक्ति है जो कृतिमता के कीचड में नहीं संभव है …..हमारे अव्चेतन में वही सहज इस्वर की मूर्ति सदैव हनुमान जी, राम जी, कृष्ण जी या दुर्गा जी बनकर विराजमान रहेगी जहाँ हमारि आस्था का पहला प्रस्फुटन हुआ था जिस आस्था ने हमें बचपने में कभी रात में डरने से बचाया होगा | किसी देखा देखि अपनी आस्था को मत बदलिए ……साईं का क्षणिक उद्वेग एक नकलची प्रभाव है जो जल्द ही थम जाएगा |

और रामानुजन की तरह उस सहज आस्था के मूल पर एकाग्रचित्त होकर हम जो भी चाहेंगे, वो सब कुछ हमें मिलेगा …..जैसे रामानुजन को मिला

क्यों की हिन्दू धर्म का अटल विश्वास है की यदि आस्था सच्ची है तो 
महलों के खभों को फाड़ कर ईश्वर नृसिंह बनकर हमारी रक्षा करेगा |…
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा |प्रगट भई फाड़ के खम्भा ||

ईश्वर पैदा हुए कौशल्या के गर्भ से पुत्र बनकर |
सती की जिद होगी तो ईश्वर पति के रूप में भी आएगा |
और यदि याचक तुलसी दास है तो मथुरा में कृष्ण का बाल रूप मुरली छोड़ कर धनुषबाण भी धारण करता है |

“कित मुरली कित चन्द्रिका कित गोपियन के साथ ”
“तुलसी दास सर तब नवे धनुष बाण ल्यो हाथ ”

………..अपनी सहज आस्था के मूल में लौटने का समय

Facebook Comments

Spread the love! Please share!!
Shivesh Pratap

Hello, My name is Shivesh Pratap. I am an Author, IIM Calcutta Alumnus, Management Consultant & Literature Enthusiast. The aim of my website ShiveshPratap.com is to spread the positivity among people by the good ideas, motivational thoughts, Sanskrit shlokas. Hope you love to visit this website!

View Comments

  • रामानुजन हिंदू धर्म को आधार बनाकर इतनी सुंदर ढंग से रखने के लिए धंयवाद

  • उत्तम आलेख है,जिससे हमे आत्म चिन्तन की ओर विवशतः ही आकृष्ट होकर अपने कर्म के प्रति सजग होने की प्रेरणा देता है।

Recent Posts

आत्मनिर्भर रक्षातंत्र का स्वर्णिम अध्याय। दैनिक जागरण 3 अक्टूबर 2023

       रक्षा निर्यात पर भारत सरकार द्वारा किए जा रहे अभूतपूर्व प्रयासों के…

7 months ago

भारतीय द्वीप समूहों का सामरिक महत्व | दैनिक जागरण 27 मई 2023

भारतीय द्वीप समूहों का सामरिक महत्व | दैनिक जागरण 27 मई 2023  

11 months ago

World Anti Tobacco Day in Hindi तंबाकू-विरोधी दिवस: धूम्रपान-मुक्त दुनिया की ओर

  World Anti Tobacco Day in Hindi तंबाकू-विरोधी दिवस: धूम्रपान-मुक्त दुनिया की ओर   परिचय:…

12 months ago

Commonwealth Day in Hindi 2023 राष्ट्रमंडल दिवस: एकता और विविधता का उत्सव

  Commonwealth Day in Hindi 2023 राष्ट्रमंडल दिवस: एकता और विविधता का उत्सव परिचय: राष्ट्रमंडल…

12 months ago

Anti Terrorism Day 21st May in Hindi आतंकवाद विरोधी दिवस 21 मई

आतंकवाद विरोधी दिवस: मानवता की रक्षा करना और शांति को बढ़ावा देना आतंकवाद विरोधी दिवस परिचय:…

12 months ago

World Telecommunication Day (Information Society Day) in Hindi विश्व दूरसंचार दिवस इतिहास

World Telecommunication Day (Information Society Day) in Hindi विश्व दूरसंचार दिवस का इतिहास   17…

12 months ago