हद तो तब हो गई जब की मुसलमानों ने कश्मीर के “गोपाद्री” शंकराचार्य पहाड़ी का नाम “सुलेमान टापू” रख दिया|
यदि इस देश के हिंदुओं ने एक विमर्श किया होता की हर मथुरा को आगरा, प्रयाग को इलाहाबाद, अयोध्या को फैजाबाद, कानपुर को खानपुर लक्ष्मण पुरी को लखनऊ और सीतापुर को महमूदाबाद क्यों बनाया गया ? और इसके क्या कारण थे ?? तो शायद आज इस देश के लिए संविधान में “इंडिया दैट इज भारत” न लिखा जाता है | परंतु हम हिंदुओं ने अपने पुराने इतिहास से कुछ भी ना सीखने की जैसे जिद ठान ली है|
कभी-कभी मुझे इस बात का बहुत आश्चर्य होता है जब इस देश का विभाजन धर्म के आधार पर कर दिया गया है तो फिर मुस्लिम आक्रांताओं के नामों पर बसे हुए शहरों की जगह पर पुराने नामों को क्यों नहीं हटाया गया और तब इन सारी बातों के पीछे मुझे हिंदुओं की निष्क्रियता ही नजर आती है | नहीं तो आज काशी विश्वनाथ की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा और अयोध्या जन्म भूमि पर हिंदू अस्मिता को चिढ़ाती हुई मस्जिद ना होती |
नोएडा के विकास मार्ग पर एक पुराना गांव है जिसका नाम वसई है अभी तक उस जगह को लोग इसी नाम से जानते हैं परंतु 1 साल पहले मैंने देखा कि google मैप पर इस गांव का नाम “बसई बहाउद्दीन नगर” लिखा हुआ है बाद में मैंने पता किया तो यहां पर पाया की मुस्लिम आबादी ज्यादा है और जिन्होंने इस जगह का नाम बदलने के लिए ही इस प्रकार का प्रयास शुरु किया है| अगले चरण में इस जगह का नाम “बहाउद्दीन नगर” हो जायेगा |
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