हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी
ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा
हया यक-लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ताकहते हैं उम्र-ए-रफ़्ता कभी लौटती नहीं
जा मय-कदे से मेरी जवानी उठा के लारात भी नींद भी कहानी भी
हाए क्या चीज़ है जवानी भीअदा आई जफ़ा आई ग़ुरूर आया हिजाब आया
हज़ारों आफ़तें ले कर हसीनों पर शबाब आयाइक अदा मस्ताना सर से पाँव तक छाई हुई
उफ़ तिरी काफ़िर जवानी जोश पर आई हुईबला है, कहर है, आफत है, फितना है, क़यामत है,
इन हसीनो की जवानी को जवानी कौन कहता है..ज़िक्र जब छिड़ गया क़यामत का
बात पहुँची तिरी जवानी तकलोग कहते हैं कि बद-नामी से बचना चाहिए
कह दो बे इस के जवानी का मज़ा मिलता नहीं
बच जाए जवानी में जो दुनिया की हवा से
होता है फ़रिश्ता कोई इंसाँ नहीं होताजिंदगी की रफ़्तार में क्या-क्या नहीं छूटा ??
कहीं बचपन नहीं रहा, कहीं जवानी नहीं रही.दिल में जूनून और आग जैसी जवानी चाहिए,
हम पंडितो को, दुश्मन भी खानदानी चाहिए.जवानी की दुआ लड़कों को ना-हक़ लोग देते हैं
यही लड़के मिटाते हैं जवानी को जवाँ हो करहुस्न ढल गया गुरूर अभी बाकी है,
नशा उतर गया सुरूर अभी बाकी है.
जवानी ने दस्तक दी और चली गई,
जेहन में वही फितूर अभी बाकी है..सफ़र पीछे की जानिब है क़दम आगे है मेरा
मैं बूढ़ा होता जाता हूँ जवाँ होने की ख़ातिरवही प्यास के अनगढ़ मोती, वही धूप की सुर्ख़ कहानी.
वही ऑंख में घुट कर मरती, ऑंसू की ख़ुद्दार जवानी..गुदाज़-ए-इश्क़ नहीं कम जो मैं जवाँ न रहा
वही है आग मगर आग में धुआँ न रहाबला है क़हर है आफ़त है फ़ित्ना है क़यामत है,
हसीनों की जवानी को जवानी कौन कहता है..उम्र-ऐ-जवानी फिर कभी ना मुस्करायी बचपन की तरह,
मैंने साइकिल भी खरीदी, खिलौने भी लेके देख लिए..
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी…….,
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया,
अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा.हिज्र को हौसला और वस्ल को फ़ुर्सत दरकार
इक मोहब्बत के लिए एक जवानी कम हैटहनियों के आँगन में हरे पत्तों को जवानी की दुआ लगे,
मुसाफिरों को ठहरने का ठिकाना और सिरों पर छाया दे.उफ़ वो तूफ़ान-ए-शबाब आह वो सीना तेरा
जिसे हर साँस में दब दब के उभरता देखा
तलातुम आरज़ू में है न तूफ़ाँ जुस्तुजू में है
जवानी का गुज़र जाना है दरिया का उतर जानाइतिहास के पन्ने जब जब पलटो ,बस एक कहानी मिलती है,
इतिहास उधर चल देता है , जिस ओर जवानी चलती है.किसी का अहद-ए-जवानी में पारसा होना
क़सम ख़ुदा की ये तौहीन है जवानी कीसुकून-ए-कल्ब की दौलत कहाँ दुनिया-ए-फानी में,
बस इक गफलत-सी आ जाती है और वो भी जवानी में.बला है क़हर है आफ़त है फ़ित्ना है क़यामत है
हसीनों की जवानी को जवानी कौन कहता हैबरसात की भीगी रातों में फिर कोई सुहानी याद आई,
कुछ अपना ज़माना याद आया कुछ उनकी जवानी याद आई.तसव्वुर में भी अब वो बे-नक़ाब आते नहीं मुझ तक
क़यामत आ चुकी है लोग कहते हैं शबाब आयाजवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा,
हया यक-लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता.अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
एक बिगड़ी हुई तस्वीर-ए-जवानी हूँ मैंये हुस्न-ए-दिल-फ़रेब ये आलम शबाब का
गोया छलक रहा है पियाला शराब कामुझ तक उस महफ़िल में फिर जाम-ए-शराब आने को है
उम्र-ए-रफ़्ता पलटी आती है शबाब आने को हैवो अहद-ए-जवानी वो ख़राबात का आलम
नग़्मात में डूबी हुई बरसात का आलम
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