Best Shayari Collection | बेहतरीन शायरी

100 दर्द ए तन्हाई अकेलेपन की बेहतरीन शायरी | 100 Best Tanhai Shayari – 3

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100 दर्द ए तन्हाई अकेलेपन की बेहतरीन शायरी | 100 Best Tanhai Shayari – 3

सारी दुनिया हमें पहचानती है
कोई हम सा भी न तन्हा होगा

तन्हाई से आती नहीं दिन रात मुझे नींद
या-रब मिरा हम-ख़्वाब ओ हम-आग़ोश कहाँ है

दरवाज़े पर पहरा देने
तन्हाई का भूत खड़ा है

दिन को दफ़्तर में अकेला शब भरे घर में अकेला
मैं कि अक्स-ए-मुंतशिर एक एक मंज़र में अकेला

दर्द ए तन्हाई शायरी

अकेले-पन भी हमारा ये दूर करती है
कि रख के देखो ज़रा अपने पास तस्वीरें

अब तो उन की याद भी आती नहीं
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा

सूने घरों में रहने वाले कुंदनी चेहरे कहते हैं
सारी सारी रात अकेले-पन की आग जलाती है

कोई क्या जाने कि है रोज़-ए-क़यामत क्या चीज़
दूसरा नाम है मेरी शब-ए-तन्हाई का

अकेले तन्हा शायरी

 

तन्हाई की ये कौन सी मंज़िल है रफ़ीक़ो
ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है

गो मुझे एहसास-ए-तन्हाई रहा शिद्दत के साथ
काट दी आधी सदी एक अजनबी औरत के साथ

सुब्ह तक कौन जियेगा शब-ए-तन्हाई में
दिल-ए-नादाँ तुझे उम्मीद-ए-सहर है भी तो क्या

अकेला उस को न छोड़ा जो घर से निकला वो
हर इक बहाने से मैं उस सनम के साथ रहा

 

मेरा कर्ब मिरी तन्हाई की ज़ीनत
मैं चेहरों के जंगल का सन्नाटा हूँ

उदासियाँ हैं जो दिन में तो शब में तन्हाई
बसा के देख लिया शहर-ए-आरज़ू मैं ने

मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया
मैं इक हिसार था तन्हाइयों ने तोड़ दिया

तन्हाई शायरी 2 लाइन

इक आग ग़म-ए-तन्हाई की जो सारे बदन में फैल गई
जब जिस्म ही सारा जलता हो फिर दामन-ए-दिल को बचाएँ क्या

कितने चेहरे कितनी शक्लें फिर भी तन्हाई वही
कौन ले आया मुझे इन आईनों के दरमियाँ

मिरे घर में तो कोई भी नहीं है
ख़ुदा जाने मैं किस से डर रहा हूँ

ज़मीं आबाद होती जा रही है
कहाँ जाएगी तन्हाई हमारी

कोई भी यक़ीं दिल को ‘शाद’ कर नहीं सकता
रूह में उतर जाए जब गुमाँ की तन्हाई

उन की हसरत भी नहीं मैं भी नहीं दिल भी नहीं
अब तो ‘बेख़ुद’ है ये आलम मिरी तंहाई का

तन्हाई की दुल्हन अपनी माँग सजाए बैठी है
वीरानी आबाद हुई है उजड़े हुए दरख़्तों में

ये कैसा क़ाफ़िला है जिस में सारे लोग तन्हा हैं
ये किस बर्ज़ख़ में हैं हम सब तुम्हें भी सोचना होगा

सर-बुलंदी मिरी तंहाई तक आ पहुँची है
मैं वहाँ हूँ कि जहाँ कोई नहीं मेरे सिवा

अकेलापन शायरी

देख कभी आ कर ये ला-महदूद फ़ज़ा
तू भी मेरी तन्हाई में शामिल हो

दश्त-ए-तन्हाई में जीने का सलीक़ा सीखिए
ये शिकस्ता बाम-ओ-दर भी हम-सफ़र हो जाएँगे

ग़म ओ नशात की हर रहगुज़र में तन्हा हूँ
मुझे ख़बर है मैं अपने सफ़र में तन्हा हूँ

पुकारा जब मुझे तन्हाई ने तो याद आया
कि अपने साथ बहुत मुख़्तसर रहा हूँ मैं

शहर की भीड़ में शामिल है अकेला-पन भी
आज हर ज़ेहन है तन्हाई का मारा देखो

हिज्र ओ विसाल चराग़ हैं दोनों तन्हाई के ताक़ों में
अक्सर दोनों गुल रहते हैं और जला करता हूँ मैं

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Shivesh Pratap

Hello, My name is Shivesh Pratap. I am an Author, IIM Calcutta Alumnus, Management Consultant & Literature Enthusiast. The aim of my website ShiveshPratap.com is to spread the positivity among people by the good ideas, motivational thoughts, Sanskrit shlokas. Hope you love to visit this website!

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