प्रकृति के व्यवहार में एक गजब का सामंजस्य है। प्रकृति का अनुकूलन लाखों वर्षों की एक क्रमबद्ध परंपरा है इससे छेड़छाड़ किसी भी रुप में नुकसान साबित होगा । कई बार थोड़े से फायदे के लिए हम अपना बहुत बडा नुकसान भी करते हैं । तथाकथित विदेशी विज्ञान प्रकृति के विरुद्ध जाकर उसके उलट कुछ कर देने को अपनी उपलब्धि कहता है जैसे विपरीत परिस्थितियों में किसी फसल का उत्पादन ।
दुनिया में जब नॉर्मन बोरलॉग ने हरित क्रांति की शुरुआत की तो भारत ने भी इसे बड़े उत्साह से स्वीकार किया लेकिन इसी हरित क्रांति ने मात्र 30 सालों में पूरी स्थिति को बदल कर रख दिया ।
हरित क्रांति ने एक और जहां जैव विविधता को चुनौती देकर प्राकृतिक व्यवस्था से छेड़छाड़ की वहीं दूसरी ओर अति उत्पादन के कारण आपूर्ति और मांग के बिगड़े हुए समीकरण में किसानों को अपनी लागत के बराबर पैसा भी नहीं मिल पा रहा है।
उत्पादन की वृद्धि की गलाकाट प्रतिस्पर्धा मैं किसानों ने अपनी बहुत सारी पूंजी, कीटनाशक और उर्वरक लगाकर जो उत्पादन किया उससे मानव स्वास्थ्य पर भी बहुत अधिक असर पड़ा है।
पंजाब और हरियाणा का पूरा भूगोल 65 सेमी वर्षा के अनुकूल था अब नहरों के जाल और खादों के अतिशय प्रयोग और फसल चक्र परिवर्तन से बर्बाद हो रहा है।
नहरों के द्वारा पर्याप्त जल आपूर्ति के कारण यहां की मिट्टी की लवणता (Saline Alkaline Soil) बहुत अधिक बढ़ गई है और इस कारण आज पंजाब और हरियाणा में सकल कृषि भूमि का लगभग 50% प्रभावित हो गया है और इस कारण से वहां की आधी भूमि रेह या लोकल भाषा में थूर हो रही है ।
अब थूर की समस्या से निदान पाने के लिए और इस लवणता की समस्या को कम करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों के पास केवल एक मात्र विकल्प बचा है जो है गोबर की खाद । यानि मात्र तीस सालों में ही हरित क्रांति के दुष्परिणामों ने पूरी जैव विविधता को डिस्टर्ब कर दिया ।
कुल मिलाकर गेहूं पैदा करने वाली भूमि के पास अब केवल टमाटर और चुकंदर पैदा करने का विकल्प बचा है। 2004 में पंजाब, पश्चिम बंगाल के बाद सबडे बडा चावल उत्पादक था पर मात्र एक दशक में ही यानि 2015 में यह बंगाल, UP, आंध्र के बाद चौथे पर पहुंच गया ।
जिस किसान को अपनी पुरानी पीढ़ी से पारंपरिक खेती के द्वारा एक समृद्ध खेत मिला था अब वह किसान अपनी अगली पीढ़ी को कल्लर/रेह देकर जा रहा है ।
लाभ कमाने की गलाकाट स्पर्धा में हमने मुर्गी को काट कर सोने के अंडे निकालने की जल्दी कर दी और अब उसका परिणाम सामने है ।
एक गाय जो पांच वर्ष में तीन लाख का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ अपने स्वामी को दे सकती है उसे 15000 में कसाई के हाथ बेच कर हम कितना बडा नुकसान कर रहे हैं । बडा प्रश्न गौ मांस खाने का नहीं है अपितु गौसंरक्षण का है जिससे भारत के 65% कृषि से जुडी जनसंख्या प्रभावित होगी ।
गौमांस का निर्यात नहीं रूका तो हमें कल 500 रूपए किलो दूध खरीदने को तैयार रहना चाहिए जैसे आज हरियाणा और पंजाब रेह बनते जा रहा है । सतलज गंगा मैदान की बढती लवणता से हम गौ वंश की रक्षा के महत्व को समझ सकते हैं ।
रक्षा निर्यात पर भारत सरकार द्वारा किए जा रहे अभूतपूर्व प्रयासों के…
भारतीय द्वीप समूहों का सामरिक महत्व | दैनिक जागरण 27 मई 2023
World Anti Tobacco Day in Hindi तंबाकू-विरोधी दिवस: धूम्रपान-मुक्त दुनिया की ओर परिचय:…
Commonwealth Day in Hindi 2023 राष्ट्रमंडल दिवस: एकता और विविधता का उत्सव परिचय: राष्ट्रमंडल…
आतंकवाद विरोधी दिवस: मानवता की रक्षा करना और शांति को बढ़ावा देना आतंकवाद विरोधी दिवस परिचय:…
World Telecommunication Day (Information Society Day) in Hindi विश्व दूरसंचार दिवस का इतिहास 17…
View Comments
Hret krante kya hai