शालपर्णी का वानस्पतिक नाम: Desmodium gangeticum
हिन्दी नाम: सरवन
संस्कृत नाम: शालपर्णी, सौम्या, दिर्घमूल
औषधीय गुण: यह रक्त शोधक (Blood Purifier) है|
यह एकऔषधीय पौधा है | यह दशमूल की दश जड़ो में से एक है|
दशमूल को शरीर के दर्द एवं सूजन को दूर करने के लिए प्रयोग किया जाता है|
इसका प्रयोग बुखार, सूजन, वात, प्रेमह, पाईंल्स, ख़ासी, पीठ में दर्द, आदि मे किया जाता है |
शालपर्णी का पौधा पुरे भारतवर्ष में पानी के किनारे उगता है |
इसका पौधा 4 फुट लम्बा होता है इसके पत्ते लम्बे मरोड़दार नोख वाले होते है |
पुष्प गुलाबी-बैंगनी रंग के होते है |
शालपर्णी का ज्यादातर इस्तेमाल मांसपेशियों में दर्द या सूजन के इलाज के लिए होता है| शालपर्णी हमारे मांसपेशियों को मजबूत बनाता है|
रक्त के विकार और बुखार में लाभ:
चिरायता के साथ इसका काढा बनाकर काली मिर्च डालकर पीने से रक्त के विकार नष्ट होते है और बुखार भी उतरता है ।
दमा में उपयोगी:
चिरायता के साथ इसका काढा बनाकर काली मिर्च डालकर पीने से दमा में फायदा होता है|
ब्रोंकाइटिस और जीर्ण सांस की बीमारियों में उपयोगी|
Skin की समस्या में उपयोग:
त्वचा के समस्या में शालपर्णी के बीज का पेस्ट बना कर त्वचा पर लगाने से फायदा होता है|
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