अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ,
है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा,मुहम्मद आदि का जग में न था तब भी पता,
कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता?
-मैथिलिशरण गुप्त
वैदिक काल के सैनिकों का मुख्य हथियार धनुष-बाण था| इसी आधार पर धनुर्वेद की रचना हुई जिसमें धनुष-बाण के मुख्य रूप, शिक्षण, प्रशिक्षण, बनावट आदि का वर्णन किया गया है| इसके अतिरिक्त वैदिककालीन अन्य प्रमुख आक्रामक हथियार निम्नलिखित थे-
धनुर्वेद, भारतीय सैन्य विज्ञान का दूसरा नाम है। ‘अथर्वेद’ का उपदेव है ‘धनुर्वेद’। इसमें धनुष से छोड़े गए तीर की दस गतियों का विस्तार से उल्लेख मिलता है। धनुर्विद्या की उत्पत्ति समय व स्थान निश्चित तौर पर ज्ञात तो नहीं है लेकिन ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार संभवत: यह विद्या भारत से ही यूनान व अरब देशों में पहुंची थी। संहिताओं और ब्राह्मणों में वज्र के साथ ही धनुष बाण का भी उल्लेख मिलता है। कौशीतकि ब्राह्मण में लिखा है कि धनुर्धर की यात्रा धनुष के कारण सकुशल और निरापद होती है। जो धनुर्धर शास्त्रोक्त विधि से बाण का प्रयोग करता है, वह बड़ा यशस्वी होता है।
इस युग में धातु का प्रयोग उन्नत पर था| सैनिकों के विभिन अंगों की रक्षा के लिए कवच का निर्माण भी हो गया था| सैनिक सीने पर कवच बंधाते थे| धनुष की प्रत्यंचा से रक्षा की लिए दस्ताने धारण करते थे| सिर के रक्षा के लिए का झिलम टोप (शिरस्त्राण) होता था जो लोहे, सोने या तांबे का होता था| ऋग्वेद में सैनिक रूप में मरुतों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वे कन्धे पर ढाल , वक्षस्त्राण, पैरों में पाद्स्त्राण धारण किये हुए थे|
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