राई एवं सरसों का वैज्ञानिक नाम ब्रेसिका कम्प्रेसटिस है | राई घरेलू मसालों का अभिन्न अंग है। यह क्रूसीफेरी कुल का द्विबीजपत्री, एकवर्षीय शाक जातीय पौधा है | इसका पूरे भारत में कृषि द्वारा उत्पादन किया जाता है। राई भी दो प्रकार की होती है- काली राई तथा लाल राई। दोनों के ही गुण समान होते हैं। राई के पत्ते मूली के पत्तों की तरह होते हैं। वसंत ऋतु में इसके फूल पीले रंग के बड़े मनमोहक होते हैं। राई के हरे पत्तों का साग अत्यंत लाभकारी होता है। यह साग वात और कफ को नष्ट करता है। राई के ४-५ दाने खाने से पाचन शक्ति बढ़ती है। राई में कृमि नाशक गुण है। राई के दाने सरसो से छोटे होते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा में चरक एवं सुश्रुत द्वारा राई का प्रयोग मिलता है।
जठराग्नि मंद होने पर, विषैले दुष्प्रभाव को मिटाने में, हर्निया, कृमि रोग, श्वास रोग, संधिवात की पीड़ा, सिर दर्द, कान का पकना, कान का दर्द, पीनस, बवासीर, श्वास नलिका प्रदाह तथा हैजा आदि में राई का प्रयोग होता है।। राई से अचार लंबे समय तक तरोताजा बना रहता है।
मसूड़ों की तकलीफ में- ४ ग्राम राई पीसकर एक लीटर पानी में डालकर काढ़ा बनाकर थोड़ा सेंधा नमक मिलाकर सहने योग्य गरम पानी से कुल्ला करने से लाभ होता है।
सायटिका शूल में- यह शूल जब कमर के हिस्से में सायटिका नर्व निकलने के स्थान पर होने पर राई को पीसकर लेप लगाने से लाभ होता है।
ल्यूकोडर्मा में- २०० ग्राम राई को पीसकर डेढ़ किलो पुराने गोघृत में मिलाकर प्रतिदिन त्वचा पर लेप करने से एक्जिमा,, दाद आदि में लाभ करता है।
पेट में छोटे कृमि होने पर- १ ग्राम राई पीसकर ५० ग्राम गोमूत्र के साथ निराहार प्रात:काल नित्य पीने से कुछ दिनों में कृमि नष्ट हो कर बाहर निकल जाते हैं।।
हैजा में- हैजा प्रारंभिक अवस्था में हो तो १ ग्राम राई पीसकर देशी खाँड के साथ खिलाने से लाभ होता है।
आमवत या पक्षाघात में- १०० ग्राम राई के तेल में ५ ग्राम कपूर मिलाकर मालिस करने से लाभ होता है।
पीनस में- नाक के अंदर घाव होने से पीला बदबू- दार स्राव होता है। उस पर राई को पीसकर १० ग्राम,, २ ग्राम कपूर और १०० ग्राम गोघृत लेकर अच्छी तरह घोंटकर मलहम बना कर लगाया जाता है।। इसे लगाने से श्लेष्मा निकल जाता है।। घाव शुद्ध हो जाता है।। तत्पश्चात सफेद कत्था को घी में मिलाकर मलहम बना कर लगाने से घाव जल्दी भरता है।
बवासीर में-
(१) सुबह निराहार राई को पीसकर पके केले में चीरा लगाकर अंदर डाल कर केला खा लें ।। यह प्रयोग १-२ करने से खून आना बंद हो जाता है।
(२) बवासीर के मस्सों,, जिनमें खुजली होती हो तो वे कफज बवासीर के मस्से होते हैं।। उनपर राई का तेल नित्य लगाने से मस्से मुरझा जाते हैं।
कान का पकना तथा दर्द होने पर- राई १० ग्राम,, लहसुन की कली १० ग्राम तथा कपूर २ ग्राम तिल के १०० ग्राम तेल में आग पर पकाएँ।। तेल उबल जाने पर,, ठंढ़ा होने पर शीशी में भरकर रख लें।। यह सिद्ध तेल २-४ बूंद कान में डालते रहने से दर्द एवं बहना बंद हो जाता है।। घाव भर जाता है।
दमा, श्वास के दौरे में- आधा ग्राम पीसी हुई राई १ ग्राम घी तथा ३ ग्राम शहद के साथ सुबह शाम चाटने से लाभ होता है।
गांठ में- किसी भी प्रकार की गांठ बढ़ रही है तो राई और काली मिर्च बराबर मात्रा में पीसकर गोघृत में मिलाकर लेप करने से वृद्धि रुक जाती है।
कांटा चुभ जाने पर- कांटा या कांच त्वचा में चुभ जाता है जो आसानी से नहीं निकलता।। उस स्थान पर पिसी हुई राई घी शहद में मिलाकर लेप लगाने से बाहर निकल जाता है।।
सर्दी, जुकाम में- आधा ग्राम पिसी हुई राई १ ग्राम देशी खाँड में मिलाकर पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है।। राई के तेल से तलवों तथा नाक के आस पास मालिस करें।।
दाद में- राई को सिरके के साथ पीसकर लेप करने से लाभ होता है।।
बच्चों की खांसी में- राई के तेल से छाती की मालिस करने से लाभ होता है।।
पित्तज सूजन में- पित्त की सूजन में राई की पुल्टिस बाँधने से लाभ होता है।। पुल्टिस बाँधने से एवं पहले गोघृत लगा दें जिससे त्वचा को हानि न हो।।
तेल मालिस में- मालिस के लिए सरसों का तेल लाभप्रद होता है। इसे कुष्ठ नाशक भी कहते हैं।
मसूड़ों से खून बहने पर- ३ ग्राम सरसों के तेल में चुटकी भर पिसी हुई सेंधा नमक मिलाकर मंजन करने से रक्तस्राव बंद हो जाता है। दांतों, मसूड़ों के रोग से मुक्ति मिलती है।
चेहरे की त्वचा की श्यामलता- सरसों को पीसकर दूध में उबालकर, उबटन सा लगाकर मालिश करें।। आधा घंटे बाद धो दें, त्वचा में चमक, निखार आ जाता है।।
मुंहासों पर- सरसों, बच,लोध्र और सेंधा नमक मिलाकर पानी में पीसकर फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।।
कफ युक्त खाँसी में- सरसों को पीसकर शहद के साथ चाटने से लाभ होता है।।
कान दरद में-
(१) वात जन्य कान दर्द में २-३ बूँद तेल कान में डालने से दर्द बंद हो जाता है।।
(२) पीपल के ८-१० पत्ते १०० ग्राम तेल में पकाकर,, छानकर १-२ बूँद सुबह शाम कान में डालने से लाभ होता है।।
सूजन में- सरसों का चूर्ण लेप करने से लाभ होता है।।
एक्जिमा, खुजली में- १०० ग्राम तेल में आक के पत्तों का रस २० ग्राम और थोड़ी हल्दी मिलाकर आग पर पकाकर,, छान लें।। रोग ग्रस्त त्वचा पर लगाने से लाभ होता है।।
हाथी पांव की सूजन में– सरसों के पत्ते,, कंटकारी के पत्तों को गोमूत्र में पीसकर लेप करने से लाभ होता है।।
हृदय रोगों से बचाव हेतु- राई या सरसों के तेल में अनसेचुरेटेड फैट होता है।। ओमेगा थ्री पाया जाता है। यह तेल कैंसररोधी होता है।। यह तेल हृदय रोगी के लिए लाभप्रद होता है।
इस तेल में लिनोलेनिक अम्ल (एन-३) तथा (एन-६) का सही अनुपात हृदय संबंधी बीमारियों का खर्चा कम करने में प्रभावी होता है। यह अनुपात राई या सरसों के तेल में ही मिल जाता है। वैज्ञानिकों ने इसे पोषक तत्वों की गुणवत्ता के आधार पर जैतून के तेल के बाद सरसों के तेल को श्रेष्ठ माना है।
बच्चों की पसली चलने पर- सरसों के तेल में थोड़ा प्याज का रस मिलाकर गुनगुना करके बच्चों की छाती पर मालिश करने से लाभ होता है।।
ओंठ फटने पर- सरसों के तेल में सेंधा नमक मिलाकर नाभि पर लगाने से ओंठ फटना बंद हो जाता है।
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