पान शब्द वास्तव में संस्कृत शब्द “पर्ण” का अपभ्रंस है | पान के पौधे के पत्ते जितना व्यापक सामाजिक प्रयोग अन्य किसी पौधे के पत्ते का नहीं है|
पान का पत्ता (Betel Leaf) को हजारों वर्षों से भारतीय परंपरा का अभिन्न अंग रहा है। इसे संस्कृत में ताम्बूल कहते हैं | पान के पत्ते (Betel Leaf) का व्यवहार दो हज़ार साल पहले से होता आ रहा है । पान में वाष्पशील तेलों के अतिरिक्त अमीनो अम्ल, कार्बोहाइड्रेट और कुछ विटामिन प्रचुर मात्रा में होते हैं। पान का पत्ता (Betel Leaf) और सुपारी परम्परागत रूप से हिन्दुओं के किसी भी अनुष्ठान में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। पान का पत्ता (Betel Leaf) डंठल के साथ इस्तेमाल होता है सिर्फ स्टफ करने के बाद खाने के वक्त छोटा-सा डंठल रखा जाता है।
दक्षिण भारत में भी पान का पत्ता (Betel Leaf) और सुपारी, हल्दी और कुमकुम विवाहित महिलाओं को दिये जाते हैं | खास नवरात्री के दौरान ‘वर-लक्ष्मीपूजा’ के समय या किसी मांगलिक कार्य के अवसर पर जैसे – शादी, हवन या त्योहार। राजस्थानी विवाह के समय वर और बाराती तभी खाते है जब रुपया दिया जाता है और वधु पक्ष के बड़े मेहमानों को पान का पत्ता (Betel Leaf) खिलाते है।
वैज्ञानिक दृष्टि से पान एक महत्वपूर्ण वनस्पति है। पान के लिए अधिक नमी व कम धूप की आवश्यकता होती है।
दिल के आकार वाला पान (Betel) का पौधा 10-15 फीट ऊँचा होता है और यह तीन महीनें में ही तैयार हो जाता है।
जब पौधा एक मीटर का हो जाता है तब पत्तों को बिक्री के लिए तोड़ा जाता है। पान का पौधा बहुत नाज़ुक होता है।
यह दक्षिण और दक्षिणपूर्वी एशिया में हमारे देश, श्रीलंका, वियतनाम और मलेशिया में होता है।
पान की सबसे उम्दा क्वालिटी को मघई कहते हैं जो बिहार के पटना, मगध प्रांत में होता है।
पान एक ऐसा वृक्ष है जिसे अंगूर-लता की तरह ही उगाया जाता है। पान का कोई फल नहीं होता और इसे केवल इसकी पत्तियों के लिए ही उगाया जाता है।
पान के उत्पादन के लिए पानी की बेहद आवश्यकता होती है और इसके लिए भोजपुरी में दोहा प्रसिद्द है;
धान पान अरु केरा, तीनों पानी के चेरा |
भारत में पान के पत्तों का क्या इस्तेमाल औषधि के रूप में होता है। पान के औषधीय गुणों का वर्णन चरक संहिता में भी किया गया है। सुश्रुत संहिता के समान आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ में भी इसके औषधीय द्रव्यगुण की महिमा वर्णित है।
पायरिया: पान में देशी कपूर को लेकर दिन में तीन-चार बार चबाने से पायरिया की शिकायत दूर हो जाती है।
चोट लगने पर: चोट लगने पर पान को गर्म करके परत-परत करके चोट वाली जगह पर बांध लेना चाहिए। इससे कुछ ही घंटों में दर्द दूर हो जाता है।
खांसी में: खांसी आती हो तो गर्म हल्दी को पान में लपेटकर चबाएं। यदि खांसी रात में बढ़ जाती हो तो हल्दी की जगह इसमें अजवाइन डालकर चबाना चाहिए।
सरसों के तेल में भीगे और गर्म किये हुए पान के पत्ते लगाने से खांसी और सांस लेने में कठिनाई से मदद मिलती है। शहद के साथ मिले हुए कुचले पान के फल या बेर से खांसी की परेशानी से राहत मिलती है।
किडनी में: यदि किडनी खराब हो तो पान का इस्तेमाल बगैर कुछ मिलाए करना चाहिए। इस दौरान मसाले, मिर्च से पूरा परहेज रखना जरूरी है।
जलने व छालों पर: जलने या छाले पड़ने पर पान के रस को गर्म करके लगाने से छाले ठीक हो जाते हैं। पीलिया, ज्वर और कब्ज में भी पान का इस्तेमाल बहुत फायदेमंद होता है।
जुकाम: जुकाम होने पर पान में लौंग डालकर खाने से जुकाम जल्दी पक जाता है।
श्वासनली की बीमारी में: श्वास नली की बीमारियों में भी पान का इस्तेमाल अत्यंत कारगर है। इसमें पान का तेल गर्म करके सीने पर लगातार एक हफ्ते तक लगाना चाहिए।
मन पर अच्छा प्रभाव: पान में पकी सुपारी व मुलेठी डालकर खाने से मन पर अच्छा असर पड़ता है।
बनारसी पान: भूख बढ़ाने, प्यास बुझाने और मसूड़ों की समस्या से निजात पाने में बनारसी एवं देशी पान फायदेमंद साबित होता है।
गठिया का सूजन: पान की पत्तियों को स्थानीय तौर पर लगाने से गठिया और सूजन का इलाज किया जाता है। पत्तियों के गर्म प्रलेप के मिश्रण या उनके रस के साथ कोई भी तेल जैसे नारियल का तेल को कमर पर लगाना अनुकूल परिणाम देता है।
मधुमेह में: पान में मधुमेह रोधी गुण होते हैं और यह इसके उपचार में मदद करता है।
सिर दर्द: तंत्रिका दर्द, तंत्रिका की थकावट और दुर्बलता के उपचार के लिए शहद के एक चम्मच के साथ कुछ पान के पत्ते का रस एक टॉनिक बनाता है। पान के पत्ते की एनाल्जेसिक और ठंडी विशेषताओं की वजह से ऊपर से लगाने में यह तेज सिर दर्द से राहत दिलाने में मदद करेगा
चोट में: पान के कुछ पत्तों का रस चोट पर लगाएं और पान का पत्ता रख कर पट्टी बांध दें, तो चोट 2-3 दिन में ठीक हो जाती है।
पाचन में: पान पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है, साथ ही वज़न को भी नियंत्रित करने में भी मदद करता है। जब पान को काली मिर्च के साथ खाया जाता है तब वज़न घटाने के प्रक्रिया और भी असरदार में काम करने लगती है।*
पान को चबाने से उपापचय (Metabolism) का दर बढ़ जाता है: मुँह में लार बनने लगता है जो खाने को जल्दी हजम करवाने में मदद करता है। साथ ही शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में सहायता करता है। इसमें फाइबर उच्च मात्रा में होने के कारण भूख कम लगती है और कब्ज़ की बीमारी से भी राहत मिलती है।
पान के पत्ते को जब काली मिर्च के साथ खाया जाता है तब इसमें जो फाइटोन्यूट्रीएन्ट (Phytonutrients) और पीपरीन ( Piperine) होता है वह शरीर में फैट को जमने नहीं देता है। और शरीर से विषाक्त पदार्थों को और अतिरिक्त जल को बाहर निकालने में मदद करता है।
विधि- एक ताजा पान के पत्ते में तीन-चार काली मिर्च का दाना रखकर अच्छी तरह से मोड़ लें। फिर उसको धीरे-धीरे चबाकर खायें। इससे उसकी पूरी पौष्टिकता लार के साथ पेट में चली जाएगी । रोज सुबह खाली पेट इसको आठ हफ़्ते तक खायें और अपने वज़न में आए अंतर को देखें।
चूना का एक महत्वपूर्ण कार्य है: यह जीभ से जल्दी ही सोख कर रक्त कोशिकाओं में फैल जाता है। यह एन्टिसेप्टिक है, डाइजेस्टिव ऐड है और सासों को तरोताज़ा रखता है।
आयुर्वेद में पान को एफरोडिसियेक यानि सेक्स क्षमता बढ़ने वाला मानते हैं। ऐसे तो पान का पत्ता खाने में कड़वा होता है मगर स्टफ करने के बाद जो पान खाते हैं उन्हें वह स्वाद बहुत भाता है।
पान त्रिदोष (वात-पित्त-कफ ) तीनो का शमन करता है ।
ज़्यादा समय तक पान खाने से माउथ अल्सर और मसूड़ों की सड़न से सभी दाँत को खोने की संभावना बढ़ जाती है। रात को खाने के बाद माउथ फ्रेशनर के रुप में पान खाया जाता है। यह खाना हज़म करने में सहायता करता है लेकिन ख्याल रहे कि सोने के पहले दाँतों को अच्छी तरह साफ कर लें।
हमेशा ताजा पान का पत्ता खाना स्वास्थ्य के दृष्टि से हितकारी होता है क्योंकि बासी या काला पत्ता औषधीय गुण से रहित होता है। बासी पत्ते को खाने से पेट में गड़बड़ी होने की आशंका भी हो सकती है।
पान में कभी भी सोपारी , कत्था , तम्बाकू डालकर ना खायें ।
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Very good knowledge