2016 में, इस्लामिक उग्रवादियों और वहां की जनता के द्वारा हमारे सीआरपीएफ के १०२२ जवान घायल हो गए या पूरी तरह से अपंग हो गए। इस्लामिक आदंकवाद ने कश्मीर में जनता कि खोल ओढ़कर जवानों के सैकड़ों परिवारों को अनाथ कर दिया । 956 जवान 8-16 जुलाई के बीच पत्थरबाजी में घायल हो गए।
कश्मीर की हिंसक भीड़ पर अब आंसू गैस के गोले भी नहीं काम करते हैं क्योंकि अब वह इसके आदी हो चुके हैं और उन्होंने इसका उपाय भी ढूंढ निकाला है। ऐसे मौकों पर पहले से ही तैयार उपद्रवी आंसू गैस का गोला फायर होने पर उसपर गीले बोरे डाल देते हैं जिससे उसका असर खत्म हो जाता है। कश्मीर में सुरक्षाकर्मियों के हाथ सरकार ने बाँध रखे हैं जिस कारण वह कभी भी उचित एक्शन नहीं ले पाते फलस्वरूप पैलेट गन ही अंतिम विकल्प बचता है। आइये बताते हैं पैलेट गन क्या है और इसका कैसा असर होता है।
पैलेट गन को फौजी भाषा में Pump action gun बोलते है। ये cartridge बेस्ड गन है। इसके एक बार फायर होने से सैकड़ों छर्रे निकलते हैं जो रबर और प्लास्टिक के होते हैं। ये जहां जहां लगते हैं उससे शरीर के हिस्से में चोट लग जाती है।
यह गैर जानलेवा हथियार है जो हिंसक भीड़ नियंत्रण के लिए संसार के लगभग सभी देशों की पुलिस और सेना द्वारा इस्तेमाल किया तरीकों का एक रूप है। अन्य लोकप्रिय तरीकों में आंसू गैस, पानी की तोप, काली मिर्च स्प्रे, टेसर बंदूकें आदि हैं । पैलेट गन चिड़ियों के शिकार और कीट नियंत्रण में भी लोकप्रिय है।
पैलेट गन, उपद्रवियों को घायल करने और दर्द पैदा करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह 500 गज की दूरी तक के लिए प्रभावी होता है, लेकिन यदि नजदीक से गोली चलाई जाये तो यह घातक भी हो सकता है, खासकर जब आँखों की तरह संवेदनशील हिस्सों लग जाये। यह शरीर के ऊतकों को नुकसान पहुंचा सकता है।
बचपन में हम सभी मेले में जाते थे और वहां गुब्बारे पर निशाना भी लगते थे । बस उस गन से निकलने वाली गोली ही पैलेट है । पैलेट का मतलब आम बोल चाल में “छर्रा” होता है और इसी छर्रे वाली बन्दूक को “पैलेट गन” बोलते हैं । कभी कभी हम इसे “एयर गन” भी कहते हैं ।
पैलेट विभिन्न आकार के होते हैं जैसे बॉल बेयरिंग या शंकुवाकार। यह लेड यानि शीशा धातु से बनाई जाती है |
भारत सरकार के गोली बंदूक आयुध निर्माणी, ईशापुर इसका निर्माता है।
इसका प्रयोग जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) द्वारा किया जाता है। पहली बार इसे अगस्त 2010 में सीआरपीएफ द्वारा इस्तेमाल किया गया । सीआरपीएफ के पास 600 बंदूकें हैं।
ये बंदूकें उग्रवाद प्रभावित (एलडब्ल्यूई) क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है लेकिन ज्यादातर कश्मीर घाटी में आतंकियों पर प्रयोग किया जाता है।
प्रारंभ में 4,5 mm / .177 to .22 कैलिबर पैलेट गन पेलेट का प्रयोग 2010 में किया गया था जो घातक सिद्ध हुआ था और उपद्रवियों की मौत भी हुई थी । पिछले ढाई सालों से 8, 9 mm के पैलेट का प्रयोग करने का फैसला किया गया था। यह गैर घातक माना जा रहा है।
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