नव संवत्सर ही विश्व का नया साल है

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ब्रिटिश (ग्रेगोरियन) कलेंडर जब हिंदू पंचांग के संपर्क मेँ आया तो उसको अपनी बहुत सारी कमियोँ और गलतियो का एहसास हुआ । जेसे ब्रिटिश कलेंडर 6 महीनो का था ओर दिन की शुरुआत मेँ भी भ्रम था । उनके क्रिसमस गुड फ्राइडे जेसे त्योहार आगे ओर पीछे होते रहते थे साथ ही साथ चंद्रग्रहण सूर्यग्रहण के बारे मेँ सटीक जानकारी प्राप्त करना भी उनके बस की बात नहीँ थी । ज्वार भाटा से संबंधित घटनाओं के बारे मेँ ब्रिटिश इसाई कैलेंडर सटीक नहीँ था ।

इसाई कलेंडर रात को बारह बजे दिन क्योँ बदलता हे ??

इसाईयो ने जब भारतीय पंचांग के संपर्क मेँ आया तब से अपनी तमाम कमियोँ का ज्ञान हुआ ओर उसने हिंदू पंचांग की नकल प्रारंभ की । इस काम मेँ चुकी भारतीय काल गणना ब्रिटेन से साढ़े पांच घंटे आगे हे ओर हिंदू पंचांग मेँ दिन की शुरुआत ब्रम्हमूहुर्त से होती हे इस कारण उन्होने अपने कलेंडर मे दिन का बदलाव हिंदू पंचांग से मिलाने के लिए ब्रिटेन मेँ रात को 12 बजे भारतीय समय से प्रातः काल 5.30) से दिन परिवर्तन की गणना शुरु की ।

महीनो की नकल

इसाई कलेंडर शुरुआत मेँ 6 महीने का होता था सीर हिंदू पंचांग की नकल से उनहोने इसको चार महीने ओर बढा कर 10 महीने किया, यही कारण है कि जर्मनी जैसे देशो मेँ आज भी क्रिसमस जैसे त्योहार जून महीने मेँ मनाया जाता हे ।

चार महीने जो जोडे गए उनके नाम भी संस्कृत के लिए गए हे जैसे सप्तांबर, अष्टांबर, नवांबर, दसांबर ।इस साधारण नकल से तात्कालीन कमियाँ दूर हो गई परंतु जो गणनाएँ ओर सटीक भविष्यवाणियां थी वह नहीँ हो सकी । उसके बाद इसाई विद्वानोँ ने उसमेँ 2 ओर महीने जोडे जो जूलियस सीजर ओर आगस्टस के नाम पर जुलाई ओर अगस्त बन गए । अब भारतीय पंचांग की गणना से उनका कैलेंडर समान हुआ ।

इसाई कलेंडर  सन १७५२ से पहले एक वर्ष मेँ 10 महीने मानता था और यही कारण है कि दिसंबर दसवाँ महीना होता था जिसे रोमन मेँ एक्समस XMAS नाम से भी लिखते थे ।

हिंदू पंचांग कितना सटीक क्यूँ हे ??

दरअसल हिंदू पंचांग का नाम पंचांग इसलिए क्यूंकि हम अपनी काल गणना के लिए पांच मानकोँ का विश्लेषण करते हैं ।

  1. तिथि : चंद्र मास में 30 तिथियाँ होती हैं, जो दो पक्षों में बँटी हैं | चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर दो पक्षों यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है।
  2. वार : सात दिन होते हैं |
  3. नक्षत्र : आकाश में तारामंडल के विभिन्न रूपों में दिखाई देने वाले आकार को नक्षत्र कहते हैं। मूलत: नक्षत्र 27 माने गए हैं।

चित्रा, स्वाति (चैत्र ) ||विशाखा, अनुराधा (वैशाख)||ज्येष्ठा, मूल (ज्येष्ठ)||पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, सतभिषा (आषाढ़)||श्रवण, धनिष्ठा(श्रावण)||पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र (भाद्रपद )||अश्विन, रेवती, भरणी (आश्विन) || कृतिका, रोहणी (कार्तिक )||मृगशिरा, उत्तरा (मार्गशीर्ष)||पुनर्वसु, पुष्य (पौष) ||मघा, अश्लेशा (माघ)||पूर्वाफाल्गुन, उत्तराफाल्गुन, हस्त (फाल्गुन)

  1. योग : योग 27 प्रकार के होते हैं। सूर्य-चंद्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं।
  2. करण : एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

कुछ लोग भ्रम हे कि भारतीय पंचांग सौर गणनाओं पर आधारित नहीँ हे परंतु भारतीय पंचांग की जो १२ संक्रांतियाँ होती हे वह वास्तव मेँ सौर मास गणनाओं पर ही आधारित हैं । प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं।  भारतीय पंचांग चंद्र एवं सूर्य गणनाओं  पर आधारित संसार का अकेला सबसे व्यवस्थित कैलेंडर है । चुकी चंद्रमा धरती से नजदीक होने के कारण उसकी स्थिति का अधिक सटीक आकलन होता हे ओर इस कारण से भारतीय समय गणना चंद्रमा की दशा पर आधारित रहती हे इससे जो ज्योतिषीय अनुमान होते हैं वह अधिक सही होते हैं ।

कितना बडा दुर्भाग्य हे हम भारतीय संस्कृति को मानने वाले लोगों का । अपने महान पूर्वजोँ की थाती भूल कर आज नकलचियोँ द्वारा बनाए गए  1 जनवरी को नया साल मनाते हे ओर अपने हिंदू काल गणना का नया साल  यानि नव संवत्सर मनाने में शर्म आती है या भूल चुके हैं ।

Nav Samvatsar 2072 wishes to all of you!!!

 Also Read : मूर्ख भारतीयों के लिए क्रिसमस के मायने… & Nav Samvatsar 2072

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Shivesh Pratap

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  • वाह क्या बात है अद्भुत जानकारी है

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