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पद्मश्री आचार्य गिरिराज किशोर जी के उत्कृष्ट जीवन के रोचक और प्रेरक तथ्य

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नाम : गिरिराज किशोर

जन्म : 8 जुलाई, 1937, मुजफ्फररनगर

शिक्षा : मास्टर ऑफ सोशल वर्क 1960, समाज विज्ञान संस्थान, आगरा

अनुभव : 1960 से 1964 तक सेवायोजन अधिकारी व प्रोबेशन अधिकारी उ.प्र. सरकार

आचार्य गिरिराज किशोर जी का प्रारंभिक जीवन:

आचार्य गिरिराज किशोर का जन्म 4 फ़रवरी 1920 को एटा, उ.प्र. के मिसौली गांव में श्री श्यामलाल एवं श्रीमती अयोध्यादेवी के घर में मंझले पुत्र के रूप में हुआ।

हाथरस और अलीगढ़ में उनकी शिक्षा हुई, आगरा से उन्होंने इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। आगरा में श्री दीनदयाल जी और श्री भव जुगादे के सानिध्य में आने से वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े और फिर उन्होंने संघ के लिए ही जीवन समर्पित कर दिया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की परम साधना:

गिरिराज किशोर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक रहे।

प्रचारक के नाते आचार्य जी मैनपुरी, आगरा, भरतपुर, धौलपुर आदि में रहे। 1948 में संघ पर प्रतिबंध लगने पर वे मैनपुरी, आगरा, बरेली तथा बनारस की जेल में 13 महीने तक बंद रहे। वहां से छूटने के बाद संघ कार्य के साथ ही आचार्य जी ने बी.ए तथा इतिहास, हिन्दी व राजनीति शास्त्र में एम.ए. किया। साहित्य रत्न और संस्कृत की प्रथमा परीक्षा भी उन्होंने उत्तीर्ण कर ली। 1949 से 58 तक वे उन्नाव, आगरा, जालौन तथा उड़ीसा में प्रचारक रहे।

आचार्य जी की रुचि सार्वजनिक जीवन में देखकर उन्हें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और फिर संगठन मंत्री बनाया गया। नौकरी छोड़कर वे विद्यार्थी परिषद को सुदृढ़ करने लगे। उनका केन्द्र दिल्ली था। उसी समय दिल्ली वि0वि0 में पहली बार विद्यार्थी परिषद ने अध्यक्ष पद जीता। फिर आचार्य जी को जनसंघ का संगठन मंत्री बनाकर राजस्थान भेजा गया। आपातकाल में वे 15 मास भरतपुर, जोधपुर और जयपुर जेल में रहे।

1979 में मीनाक्षीपुरम कांड ने पूरे देश में हलचल मचा दी। वहां गांव के सभी 3,000 हिन्दू एक साथ मुसलमान बने। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इससे चिंतित होकर डॉ॰ कर्णसिंह को कुछ करने को कहा। उन्होंने संघ से मिलकर ‘विराट हिन्दू समाज’ नामक संस्था बनायी। संघ की ओर से श्री अशोक सिंहल और आचार्य जी इस काम में लगे।

श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन में उनकी प्रमुख भूमिका थी।

1964 से 1966 तक आपने इलाहाबाद में स्वतन्त्र लेखन किया |

जुलाई 1966 से 1975 तक कानपुर वि.वि में सहायक और उपकुल सचिव के पद पर सेवारत।

दिसं.1975 से 1983 तक आई.आई.टी.कानपुर में कुल सचिव। बहुत कम लोग ये जानते हैं की विश्व हिन्दू परिषद् के आचार्य गिरिराज किशोर जी IIT Kanpur के 8 वर्षों तक कुल सचिव रह चुके थे |

1983 से 1997 तक वहीं पर रचनात्मक लेखन केन्द्र के अध्यक्ष।

1 जुलाई 1997 अवकाश ग्रहण। रचनात्मक लेखन केन्द्र उनके द्वारा ही स्थापित।

फैलोशिप :

  1. संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की एमेरिट्स फैलोशिप – 1998-1999
  2. भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, राष्ट्रपति निवास शिमला में फैलो – मई 1999 -2001

आचार्य गिरिराज किशोर जी को सम्मान:

राष्ट्रपति द्वारा 23 मार्च 2007 में साहित्य और शिक्षा के लिए ‘पद्मश्री’ से विभूषित हुए |

मानद्: 2002 में छत्रपति शाहूजी महाराज वि.वि कानपुर द्वारा डी.लिट. की मानद् उपाधि।

साहित्य अकादमी, नई दिल्ली की कार्यकारिणी के सदस्य

हिन्दी सलाहकार समिति, रेल्वे बोर्ड के सदस्य |

नई दिल्ली स्थित विहिप मुख्यालय में उन्होंने लगभग 94 वर्ष की आयु में 13 जुलाई 2014 को प्राण त्यागे।

विश्व हिन्दू परिषद के विभिन्न दायित्व निभाते हुए आचार्य जी ने इंग्लैंड, हालैंड, बेल्जियम, फ्रांस, स्पेन, जर्मनी, रूस, नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क, इटली, मारीशस, मोरक्को, गुयाना, नैरोबी, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, सिंगापुर, जापान, थाइलैंड आदि देशों की यात्रा की है। वृद्धावस्था में अनेक रोगों से घिरे होने पर भी उनकी सक्रियता बनी है।

आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले आचार्य गिरिराज किशोर ने देहदान का संकल्प बहुत पहले ही कर लिया था ताकि उनकी मृत्यु के बाद भी उनका शरीर किसी के काम आ सके।

|| “पद्म श्री”आचार्य गिरिराज किशोर जी के श्री रामधाम महाप्रयाण पर भावनात्मक अश्रुपूरित और शोकयुक्त श्रद्धांजलि ||

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Shivesh Pratap

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