अशोक के पेड़ का वैज्ञानिक नाम: सराका इंडिका (Saraca Indica)
संस्कृत नाम: अशोक, हेमपुष्प, ताम्रपल्लव
अंग्रेजी नाम: Saraca Ashoca
अशोक के पेड़ की सूखी छाल में टेनिन 7%, स्टीरोल, केटेकोल 3% और कई ऑर्गेनिक कैल्शियम कंपाउड होते हैं। छाल में एल्यूमुनियम, स्ट्रोनियम, कैल्शियम, आइरन, मैग्नीशियम, फॉस्फेट, पोटैशियम, सोडियम और सिलिका भी पाई जाती है।
इसका पेड़ भारतीय उपमहाद्वीप खासकर दक्षिण भारत, मध्य और पूर्वी हिमालय के करीब पाया जाता है। अशोक वृक्ष को नेपाल, भारत और श्रीलंका में पवित्र माना जाता है।
इसके पत्ते, छाल, फूल, बीज और जड़ें भी दवा के रूप में प्रयोग की जाती हैं।
#अशोक का रस कड़वा, कसैला, शीत प्रकृति युक्त, वर्ण निखारक, तृष्णा, दाह, कृमि , शूल, विष, रक्त विकार, उदर, रोग, सूजन दूर करने वाला, गर्भाशय की शिथिलता, सभी प्रकार के प्रदर, ज्वर, जोड़ों के दर्द की पीड़ा नाशक होता है।
हिन्दू धर्म में कई ऐसे पेड़-पौधों का जिक्र हुआ है जिन्हें अलौकिक शक्तियां प्राप्त हैं। पीपल, बरगद और अशोक, कुछ ऐसे ही वृक्षों के नाम हैं जो हिन्दू धर्म में बहुत महत्व रखते हैं।
इस जड़ को किसी पवित्र स्थान पर रखने से धन से जुड़ी समस्या का समाप्त हो जाएगी।
पति-पत्नी के बीच तनाव या फिर पारिवारिक कलह को शांत करने के लिए अशोक के 7 पत्तों को मंदिर में रख दें। मुरझाने के बाद इन पत्तों को हटाकर दूसरे नए पत्ते ले आएं और पुराने पत्तों को पीपल के पेड़ की जड़ में डाल दें। यह उपाय करने से पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है।
गर्भ स्थापना में लाभ:
अशोक के फूल दही के साथ नियमित रूप से सेवन करते रहने से गर्भ स्थापित होता है।
पथरी रोग में लाभ:
अशोक के 2 ग्राम बीजों को पानी के साथ पीसकर 2 चम्मच की मात्रा में पीने से पथरी के दर्द में आराम मिलता है।
श्वेत प्रदर के उपचार में लाभ:
अशोक की छाल का चूर्ण और मिसरी समान मात्रा में मिलाकर गाय के दूध के साथ एक-एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार कुछ हफ्ते तक सेवन करें।
मुंहासे, फोड़े-फुंसी में लाभ:
अशोक की छाल का काढ़ा उबाल लें। गाढ़ा होने पर इसे ठंडा करके, इसमें बराबर की मात्रा में सरसों का तेल मिला लें। इसे मुंहासों, फोड़े-फुंसियों पर लगाएं। इसके नियमित प्रयोग से वे दूर हो जाएंगे।
खूनी बवासीर में लाभ:
अशोक की छाल और इसके फूलों को बराबर की मात्रा में लेकर रात्रि में एक गिलास पानी में भिगोकर रख दें और सुबह पानी छानकर पी लें।
अशोक की छाल का 40-50 मिलीलीटर काढ़ा पिलाने से खूनी बवासीर में खून का बहना बंद हो जाता है।
श्वास रोग में लाभ:
अशोक के बीजों के चूर्ण की मात्रा एक चावल भर, 6-7 बार पान के बीड़े में रखकर खिलाने से श्वास रोग में लाभ होता है।
त्वचा सौंदर्य में लाभ:
अशोक की छाल के रस में सरसों को पीसकर छाया में सुखा लें, उसके बाद जब इस लेप को लगाना हो तब सरसों को इसकी छाल के रस में ही पीसकर त्वचा पर लगायें। इससे रंग निखरता है।
खूनी अतिसार में लाभ:
100 से 200 ग्राम अशोक की छाल के चूर्ण को दूध में पकाकर प्रतिदिन सुबह सेवन करने से रक्तातिसार की बीमारी समाप्त हो जाती है।
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