10 राजाओं का युद्ध (battle of 10 kings) वैदिक कालीन सैन्य और समाज व्यवस्था को समझने का महत्वपूर्ण स्रोत है| राजा सुदास, भरत कुल के प्रतापी राजा थे| भरत कुल (जनजाति नहीं) आर्य, ब्रम्हावर्त (यमुना एवं सरस्वती नदियों के बीच का प्रदेश) में बसे हुए थे| भरत कुल के लोगों का पुरु कुल के लोगों से वैमनस्य था| ऋग्वैदिक काल में भरत कुल की शक्ति बहुत ही प्रबल हो चुकी थी| उन्हें उत्तर-पश्चिम भारत में बसे हुए अन्य आर्य कुलों तथा पूर्व में अनार्य जातियों से टक्कर लेनी पड़ती थी| भरत कुल नें दोनों शक्तियों को पराजित करके अपनी प्रभुता स्थापित कर लिया था| इसका उल्लेख “दशराज्ञ युद्ध” के रूप में ऋग्वेद के सातवें मंडल में ७:१८, ७:३३ और ७:८३:४-८ में मिलता है।
10 राजाओं के युद्ध में एक तरफ राजा सुदास तथा दूसरी और उत्तर भारत के 10 आर्य कुल थे| जिनमें पुरु, प्रदय, अनु, तुर्वसु तथा यदु कुल मुख्य थे| इस का मुख्य कारण दो पुरोहितों विश्वामित्र तथा वशिष्ठ का आपसी वैमनस्य था| विश्वामित्र ने दस आर्य कुलों का संघ बनाकर राजा सुदास पर आक्रमण कराया था|
सुदास हिन्द-आर्यों के ‘भारत’ नामक कुल के ‘तृत्सु’ नामक कुल के नरेश थे। वे दिवोदास के पुत्र थे, जो स्वयं सृंजय के पुत्र थे। सृंजय के पिता का नाम देववत था। दशराज्ञ युद्ध के बाद भारत समुदाय का हिन्द-आर्य लोगों में बोलबाला हो गया और आगे चलकर यही पूरे देश का नाम भी पड़ गया।
यह लड़ाई पुरुषणी नदी के किनारे हुई थी| उस समय नदी में बाढ़ आई हुई थी| यह नदी वर्तमान में पाकिस्तान में बहने वाली रावी नदी हैं|
The battle of ten kings was fought on the banks of Purushni (Raavi Rever).
इस लड़ाई में दोनों पक्षों की जनपद के युवा पुरुष ने भाग लिया था| राजा सम्मानित व्यक्ति तथा योद्धा रथों पर सवार थे| एक रथ में एक योद्धा और एक सारथी बैठे थे| योद्धा सारथी की के बाएं खड़ा होकर बाण वर्षा करता था| पैदल सेना में साधारण पुरुष थे| रथ और पैदल सैनिकों का हथियार अधिकांशत: धनुष-बाण था| कुछ सैनिक भाला, फरसा, तलवार आदि से सज्जित थे| योद्धा सर तथा शरीर पर कवच भी धारण किये हुए थे| बानों का अग्रभाग लोहि या सिंह से बना हुआ था| इस युद्ध में विरोधी पक्षों की सैन्य संख्या का विवरण कहीं नहीं दिया गया है| | इतना अनुमान किया जा सकता है कि 10 राजाओं की सैन्य शक्ति राजा सुदास की सेना से अधिक रही होगी|
पुरुषणी अर्थात (आधुनिक रावी) नदी के तट पर दोनों पक्षों की सेना इस प्रकार से खड़ी थी कि उनका एक एक पार्श्व नदी से सुरक्षित था| 10 राजाओं ने सुदास पर आक्रमण करने की योजना थी और सुदास रक्षात्मक स्थिति में था| परंतु सुदास ने 10 राजाओं पर पहले ही आक्रमण कर दिया|
राजा सुदास की सेना ने सर्वप्रथम सामने से बाण वर्षा की| इसके बाद अपनी सेना को अचानक मोड़ कर सुदास शत्रु सेना के पास पार्श्व ले गया और बड़े वेग एवं शक्ति से 10 राजाओं के ऊपर आक्रमण कर दिया| दोनों पक्षों की सेनाओं का मनोबल बढ़ाने तथा उत्साहित करने का कार्य दोनों पुरोहित कर रहे थे| राजा सुदास का आक्रमण इतना आकस्मिक था कि 10 राजाओं की सेनाये उसे रोक नहीं सके| सुदास के रथ विपक्षी सेना के अंदर घुसते चले गए| उनके पीछे पैदल सैनिक तीव्र गति से आगे बढ़ रहे थे| सुदास ने आक्रमण की गति में ढील नहीं दी| सुदास की सेना ने अब पार्श्व, सामने और पीछे से एक साथ आक्रमण करना प्रारंभ किया|
शुत्र को पीछे हटने का कोई मार्ग नहीं मिल रहा था| यद्यपि नदी की ओर से कोई आक्रमण नहीं हो रहा था और इस ओर से पीछे हटने का अभिप्राय नदी में डूब जाना था| 10 राजाओं की सेना भयग्रस्त हो कर इधर उधर भागने लगी| सैनिक अधिक संख्या में मारे गए| पूरु राजा युद्ध में मारा गया| बहुत से सेना नदी में डूब कर नष्ट हो गई| अणु तथा प्रदय राजा भी नदी में डूब गए शेष सेना भाग निकली| सुदास भागती हुई सेना का पीछा नहीं किया क्योंकि राजा सुदास को अपने राज्य पर पूर्व की ओर से होने वाली अनार्यों की एक आक्रमक कार्यवाही का सामना करने के लिए तुरंत लौटना पड़ा|
इस लड़ाई में राजा सुदास की विजय हुई और 10 राजाओं के लगभग साठ हजार सैनिक हताहत हो गए| इस युद्ध में सुदास के भारतों की विजय हुई और उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप के आर्यावर्त और आर्यों पर उनका अधिकार स्थापित हो गया। इसी कारण आगे चलकर पूरे देश का नाम ही आर्यावर्त की जगह ‘भारत’ पड़ गया।
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