काठमांडू से लेकर काठगोदाम तक हिलती हुई धरती ओर भागते हुए लोगों को देख कर एक बार फिर मनुष्य की शून्यता का पता चल गया । चाँद को पददलित करने का आहंकार रखने वाला यह अदना “होमो सेपियंस” कैसे प्रकृति के सामने असहाय होकर भाग रहा है । हमेँ अपने आत्म निरीक्षण करने की जरुरत हे ओर प्रकृति की शक्ति को समझ कर उसके हिसाब से खुद को ढालने की जरुरत हे उसके साथ खेलने की नहीँ ।
भूकंप मेँ भरभराकर गिरते हुए मकानोँ ने भौतिक जीवन की नश्वरता का बड़े कायदे से एहसास करा दिया ।
अब समझ आता है की जीवन रक्षा को सर्वोत्कृष्ट मानते हुए हमारी हिंदू भारतीय संस्कृति ने महलोँ, राज प्रसादों, अट्टालिकाओं के बड़े बड़े निर्माण करने के बाद भी जीवन की शाश्वतता को बनाए रखने के लिए पर्णकुटी क्यों बनाया और प्रकृति को अपनाया |हिन्दू संस्कृति ही विश्व के विनाश से बचा सकती है
भारत का प्रकृति के लिये अटूट प्रेम और आदर आज विश्व को समझने की जरूरत है | केले, पीपल या नीम के वृक्ष की पूजा से लेकर हर मंदिरों के साथ कुएँ और तालाब बनवाने की परम्परा ही आज विश्व को Rain Water Conservation और ग्रीन अर्थ (Green Earth) के रूप मे प्रेरणा दे रही है |
विश्व को आज क्वांटम मेकेनिक्स से ज्यादा “दशपुत्र समो द्रुमः” “सदानीरा नद्यः” और पृथ्वी शांति-अंतरिक्षम् शांति की महिमा समझने की आवश्यकता है ।
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भारतीय द्वीप समूहों का सामरिक महत्व | दैनिक जागरण 27 मई 2023
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