वन बेल्ट वन रोड (OBOR) प्रोजेक्ट, प्रेसिडेंट शी जिनपिंग का पसंदीदा प्लान है। इसके तहत चीन पड़ोसी देशों के अलावा यूरोप को सड़क से जोड़ेगा। ये चीन को दुनिया के कई पोर्ट्स से भी जोड़ देगा।
‘वन बेल्ट वन रोड’ प्रोजेक्ट को न्यू सिल्क रूट भी कहा जा रहा है, ऐसा इसलिए क्योंकि OBOR प्रोजेक्ट को एशिया-अफ्रीका को जोड़ने वाली प्राचीन सिल्क रोड के तर्ज पर ही बनाए जाने की बात कही जा रही है|
इस प्रोजेक्ट का मकसद यूरोप, अफ्रीका और एशिया के कई देशों को सड़क और समुद्र रास्तों से जोड़ना है| ऐसा दावा है कि सड़क रास्तों से दुनिया के कई देशों को एक साथ जोड़ने से इन देशों के बीच कारोबार को बढ़ाने और इंफ्रस्ट्रक्चर को मजबूत करने में मदद मिलेगी|
दुनिया के 65 देशों को इस प्रोजेक्ट से जोड़ने की योजना है| जिनमें धरती की आधे से ज्यादा करीब 4.4 अरब आबादी रहती है|
इस प्रोजेक्ट में कई सड़क मार्गों, रेल मार्गों और समुद्र मार्गों से देशों को जोड़ने का प्रस्ताव है | प्रोजेक्ट के पूरा होने में करीब 30 से 40 साल लग सकते हैं|
‘वन बेल्ट वन रोड’ प्रोजेक्ट चीन ने प्रसिद्ध सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट (SREB) और 21 वीं सदी के समुद्री सिल्क रोड (MSR) का एकीकृत स्वरुप है।
वन बेल्ट वन रोड (OBOR) में 65 देशों, 4.4 अरब लोगों और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 40 प्रतिशत को शामिल किया जाएगा।
वन बेल्ट वन रोड (OBOR) निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए $ 40 अरब के एक न्यू सिल्क रोड फंड की स्थापना की है|
चीन, तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का लाभ उठा के नेपाल तक सिल्क रोड नोड का विस्तार करना चाहता है| यह किंघाई-तिब्बत रेलवे का एक विस्तार के माध्यम से नेपाल और दक्षिण एशिया के साथ जुड़ना चाहता है|
रेल लाइन को ल्हासा से शिगास्ते (तिब्बत का दूसरा सबसे बड़ा शहर) तक पहले ही बढ़ा दिया गया है|
चीनी शिगात्से से दो लाइनों का निर्माण करने की योजना बना रहे हैं| एक केरुंग से आरंभ होगी, नेपाल से चीन का सबसे समीप शहर हैं, वहां से नेपाल के रासुवागढ़ी तक| दूसरी लाइन भारत-भूटान सीमा पर यदोंग तक|
असल में सिल्क रोड या सिल्क रूट वह पुराना मार्ग है जो सदियों पहले व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता था। यह रास्ता सदियों तक व्यापार का मुख्य मार्ग रहा और इसी रास्ते के जरिए तमाम संस्कृतियां भी एक-दूसरे के संपर्क में आयीं। इस रूट के जरिए पूर्व में कोरिया और जापान का संपर्क भूमध्य सागर के दूसरी तरफ के देशों से हुआ।
हालांकि आधुनिक युग में सिल्क रूट का अभिप्राय चीन में हान वंश के राज के समय की सड़क से है, जिसके जरिए रेशम और घोड़ों का व्यापार होता था। चीनी अपने व्यापार को लेकर शुरू से ही काफी संजीदा रहे हैं और इसी को ध्यान में रखते हुए चीन की महान दीवार का भी निर्माण किया गया था, ताकि व्यापार आसानी से हो और बाहरी आक्रमणकारी व्यापार को नुकसान न पहुंचा सकें। 5वीं से 8वीं सदी तक चीनी, अरबी, तुर्की, भारतीय, पारसी, सोमालियाई, रोमन, सीरिया और अरमेनियाई आदि व्यापारियों ने इस सिल्क रूट का काफी इस्तेमाल किया। साल 2014 में यूनेस्को ने इसी पुराने सिल्क रूट के एक हिस्से को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता भी दी।
‘वन बेल्ट वन रोड’ प्रोजेक्ट अमेरिकी केंद्रित व्यापार व्यवस्था का प्रत्युत्तर है, यह ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप और ट्रान्साटलांटिक व्यापार और निवेश भागीदारी जैसे प्रोजेक्ट के वर्चस्व को चायनीज प्रत्युतर है। OBOR वास्तव में बहुत बड़ा हो सकता है|
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति चीन, सड़क मार्गों पर अपना दबदबा बनाना चाहता है| अमेरिका और चीन के बीच चल रही होड़ में इससे चीन को फायदा होगा| बता दें कि ज्यादातर समंदर मार्गों पर अभी भी अमेरिका का एकतरफा वर्चस्व है इसको देखते हुए चीन ने अपना खास जोर सड़क मार्गों को विकसित करने में लगाएगा जिससे अमेरिका को कारोबार में टक्कर दी जा सके|
भारत ने चीन में होने जा रहे OBOR शिखर सम्मेलन में प्रतिनिधि भेजने से इनकार कर दिया| दरअसल, इस प्रोजेक्ट में चीन-पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) भी प्रस्तावित है| ये कॉरिडोर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगित- बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है, जिस पर भारत अपना हक जताता रहा है| भारत ने इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताया है| कॉरिडोर बनने के बाद कारोबार के अलावा चीन के राजनीतिक हस्तक्षेप से भी इनकार नहीं किया जा सकता|
नेपाल, बांग्लादेश ने चीन के साथ हाल ही में करार किया है. वो इस प्रोजेक्ट में शामिल हो रहे हैं. वहीं श्रीलंका, म्यांमार भी शिखर सम्मेलन के दौरान इस प्रोजेक्ट से जुड़ने की इच्छा जता सकते है. पाकिस्तान पहले से ही चीन का अहम सहयोगी बना बैठा है|
दक्षिण एशियाई देशों के बीच भारत के दबदबे को कम करने के लिए ये प्रोजेक्ट चीन के लिए काफी खास है. इन हालात में भारत के सभी पड़ोसी देशों पर चीन की पकड़ और मजबूत हो जाएगी|
साथ ही इन देशों में चीनी नागरिकों और कॉरिडोर के इलाके में चीनी सैनिकों की मौजूदगी भी देश के संप्रभुता के लिहाज से खतरा हो सकती है|
ईस्ट एशिया पॉलिसी के तहत हम एक ट्राईलेटरल हाईवे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। इसमें पड़ोसी देशों को तरजीह दी जाएगी। पॉलिसी के तहत म्यांमार और बांग्लादेश को जोड़ा जाएगा।
गो वेस्ट पॉलिसी के तहत हम ईरान के चाबहार पोर्ट और सेंट्रल एशिया के कुछ और देशों से जुड़ेंगे।
भारत का बयान इसलिए अहमियत रखता है क्योंकि चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट में साउथ एशियाई देशों खासकर भूटान की अनदेखी की गई है। भूटान के चीन से डिप्लोमैटिक रिलेशन नहीं हैं।
एक रूट बीजिंग को तुर्की तक जोड़ने के लिए प्रपोज्ड है। यह इकोनॉमिक रूट सड़कों के जरिए गुजरेगा और रूस-ईरान-इराक को कवर करेगा।
दूसरा रूट साउथ चाइना सी के जरिए इंडोनेशिया, बंगाल की खाड़ी, श्रीलंका, भारत, पाकिस्तान, ओमान के रास्ते इराक तक जाएगा।
पाक से साथ बन रहे CPEC को इसी का हिस्सा माना जा सकता है। फिलहाल, 46 बिलियन डॉलर के चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) पर काम चल रहा है। बांग्लादेश, चीन, भारत और म्यांमार के साथ एक कॉरिडोर (BCIM) का प्लान है।
CPEC के तहत पाक के ग्वादर पोर्ट को चीन के शिनजियांग को जोड़ा जा रहा है। इसमें रोड, रेलवे, पावर प्लान्ट्स समेत कई इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट किए जाएंगे।
CPEC को लेकर भारत विरोध करता रहा है। हमारा दावा है कि कॉरिडोर पाक के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से गुजरेगा, तो इससे सुरक्षा जैसे मसलों पर असर पड़ेगा।
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