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कुमाऊं रेजिमेंट: स्थापना, हिस्ट्री, रोचक तथ्य | Kumaon Regiment History in Hindi

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कुमाऊं रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे बहादुर रेजिमेंटों में से एक है, कुमाऊं रेजिमेंट में परम वीर चक्रों की संख्या तीन है। यह एक इन्फेंट्री यानि पैदल सेना की रेजिमेंट है|

रेजिमेंट मुख्य रूप से उत्तराखंड के कुमाओंनी और हरियाणा के मैदानों से रहने वाले अहिरों/ यादवों  से बना है। कहीं कहीं इस रेजिमेंट को अहीर रेजिमेंट के नाम से भी संबोधित करते हैं|

कुमाऊं रेजिमेंट अपने चरम स्तर के शौर्य और साहस के लिए जाना जाता है, जिसे उन्होंने 1962 में रेजांग ला की लड़ाई सहित सभी अवसरों पर प्रदर्शित किया है। मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में कुमाऊं रेजिमेंट के चार्ली कंपनी के 114 अहीरों के अप्रतिम शौर्य और बलिदान ने देश को उनकी वीरता के सामने सदैव के लिए नतमस्तक कर दिया|

आज भले ही लालू यादव और मुलायम सिंह यादव की राजनीती ने देश के यादव (अहीर) समाज को देश के विरुद्ध खड़े होने वाले दुसरे प्रकार के संस्कार दे दिए हों परन्तु फिर भी जब जब भारत माता को वीरता और बहादुरी की आवश्यकता पड़ी है तो सदैव से यादव समाज अपने अप्रतिम शौर्य और वीरता से देश की संस्कृति और सनातन धर्म की रक्षा में तत्पर रहा है |

रेजिमेंट उत्तराखंड के दो क्षेत्रों के नाम पर बनाये गए दो रेजिमेंटों में से एक है और दूसरा है गढ़वाल राइफल्स।

कुमाऊं रेजिमेंट की स्थापना का इतिहास:

यह 1813 में बनाया गया था और इसलिए पहली भारतीय सेना की रेजिमेंट 19वीं शताब्दी में निर्मित हुई पहली रेजिमेंट थी।

शुरूआत में यह रेजिमेंट ‘कुमाऊं’ के नाम से नहीं जाना जाता था बल्कि 1945 तक 19वीं हैदराबाद रेजिमेंट के नाम से जाना जाता था।

कुमाऊं से लोग उन लोगों में से थे, जिनके योगदान से हैदराबाद निजाम की रसेल ब्रिगेड बनाई गई थी।

कुमाउनीं निजाम की सेनाओं के प्रसिद्ध बेरार इन्फैंट्री में भी सेवा देते थे।

रसेल ब्रिगेड और बेरार इन्फैंट्री है कुमाऊं रेजिमेंट की जननी:

रसेल ब्रिगेड और बेरार इन्फैंट्री को ब्रिटिश सेना के सैनिक के रूप में रखा गया था लेकिन निजाम द्वारा इसका भुगतान किया जाता था।

1853 में, निजाम के तहत इन ब्रिगेड को हैदराबाद परिसंघ के रूप में जाना जाने लगा और 1857 के बाद यह ब्रिटिश भारतीय सेना का हिस्सा बन गया।

1853 और 1917 के बीच, रसेल ब्रिगेड और बेरार इन्फैन्ट्री में और अधिक कुमाउनीं लोगों के साथ उन्नत कर दिया गया था।

23 अक्टूबर 1917 को, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, रानीखेत में पहली अखिल कुमाऊं बटालियन बनाया गया था।

इसे 4/39वीं कुमाऊं राइफल्स के रूप में जाना जाता था और इसे 1918 में 1st बटालियन, 50वीं कुमाऊं राइफल्स के रूप में पुन: नामित किया गया था।

विश्व युद्ध में कुमाऊं रेजिमेंट:

विश्व युद्ध के बाद कुमाऊं बटालियंस पुनः हैदराबाद परिसंघ का हिस्सा बन गए, जिसका नाम 1923 में 19 वें हैदराबाद रेजिमेंट में बदल दिया गया था।

अंत में, 27 अक्टूबर, 1945 को, 19वें हैदराबाद रेजिमेंट का नाम बदलकर 19वीं कुमाऊं रेजिमेंट कर दिया गया। आजादी के बाद उपसर्ग 19वीं को भी हटा दिया गया था।

विश्व युद्ध में कुमाऊं राइफल्स के वीर हांगकांग और ईरान में लड़े। बर्मा और मलय प्रायद्वीप में अन्य बटालियनों में कुमाउनीं वीरता से ​​लड़े।

कुमाऊं रेजिमेंट का वर्तमान:

“परक्रामो विजयते” (Valour Triumphs) कुमाऊं रेजिमेंट का आदर्श वाक्य है।

युद्ध घोष: कालिका माता की जय, बजरंग बाली की जय, और राधा किशन की जय।

कुमाऊं रेजिमेंट का लोगो

नागा रेजिमेंट के तीन बटालियन कुमाऊं रेजिमेंट से संबद्ध हैं।

रेजिमेंट जिसने लड़ी आज़ाद भारत की पहली लड़ाई:

स्वतंत्रता के बाद भारत के लिए पहली लड़ाई कुमाऊं रेजिमेंट ने लड़ी थी।

भारत-पाक युद्ध 1 947-48 की शुरुआत में कुमाऊं रेजिमेंट के दो बटालियनों को रक्षा के लिए कश्मीर भेजा गया था।

परम वीर चक्र से सम्मानित होने वाले पहले वीर सैनिक 4 बटालियन कुमाऊं रेजिमेंट के श्री मेजर सोमनाथ शर्मा थे।

1962 का चीन युद्ध और कुमाऊं रेजिमेट का अप्रतिम शौर्य:

कुमाऊं रेजिमेट ने 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान अपनी वीरता की पराकाष्ठ से दुनिया के सैन्य इतिहास में उत्कृष्ट दर्जा प्राप्त किया।

वालॉग की लड़ाई में, 6 कुमाऊं ने अरुणाचल प्रदेश के वालोंग सेक्टर में चीनी सुरक्षा पर हमला किया और उन पर कब्जा कर लिया। वे अंततः चीन के लगातार होते भीषण आक्रमण में मारे गए जो भारी तोपखाने के साथ आए थे। पुरे युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने रक्षात्मक होने के बजाय चीनी पर हमलावर होने का यह एकमात्र उदहारण है।

मानव युद्ध के इतिहास में सबसे बड़ा ‘last stand warfare’ जिसे कुमाऊं रेजिमेंट ने लड़ा:

कुमाऊं रेजिमेट के 13 कुमाऊँ ने रेजांग ला की लड़ाई  (Rezang la war) लड़ी जो मानव युद्ध के इतिहास में सबसे बड़ा ‘last stand warfare’ था|

इस लड़ाई में भारतीय सेना के सिर्फ 120 सैनिकों की लड़ाई में चीन अपने 1300 सैनिकों को खो दिया था। भारतीय सेना के 114 सैनिक इस लड़ाई में मातृभूमि के रक्षार्थ बलिदान हुए थे।

13 कुमाऊं के मेजर शैतान सिंह को रेजांग ला की लड़ाई में उनके अदम्य साहस के लिए मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

चीनी पक्ष से 17000 फुट पर भारी तोपखाने और मशीन गन फायर के तहत, मेजर शैतान सिंह, अपने सैनिकों को प्रेरणा देने के लिए बंकर बंकर जाकर उत्साह बढ़ाते रहे और इस तरह यह सैन्य इतिहास में सबसे बड़ा ‘last stand warfare’ बना।

मेजर शैतान सिंह का शव तीन महीने बाद बर्फ पिघलने पर सर्च ऑपरेशन में पाया गया और उस वक़्त भी उनके हाथों में पकड़ी हुई बन्दूक से उनकी पकड़ ढीली नहीं हुई थी|

कुमाऊं रेजिमेंट की वीरता जिससे सियाचिन बना भारत का हिस्सा:

यह कुमाऊं रेजिमेंट और लद्दाख स्काउट्स था जो 1984 में ऑपरेशन मेघदूत के दौरान सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा कर लिया था और सियाचिन भारत का हिस्सा बन गया|

कुमाऊं रेजिमेंट जिसने दिए सेना को 3 जनरल:

रेजिमेंट ने 4 अशोक चक्र भी पाया है, जिनमें से तीन 15 कुमाऊं और एक 13 कुमाऊं को मिले।

कुमाऊं रेजिमेंट ने तीन सेना प्रमुखों का निर्माण किया है – किसी भी इन्फैंट्री रेजीमेन्ट द्वारा सबसे ज्यादा हैं | वे जनरल एसएम श्रीनगेश, जनरल के.एस. थिमय्या और जनरल टी एन रैना हैं।

कुमाऊं रेजिमेंट के परमवीर चक्र:

  • मेजर सोमनाथ शर्मा को भारत-पाक युद्ध (1947) के दौरान।
  • मेजर शैतान सिंह को भारत-चीन युद्ध (1962) के दौरान।

कुमाऊं रेजिमेंट के महावीर चक्र:

  • लेफ्टीनेन्ट कर्नल धरमसिंह को भारत-पाक युद्ध (1947) के दौरान।
  • सैनिक मानसिंह (मरणोपरान्त) भारत-पाक युद्ध (1947) के दौरान।
  • नायक नरसिंह (मरणोपरान्त) भारत-पाक युद्ध (1947) के दौरान।
  • सैनिक दिवानसिंह (मरणोपरान्त) भारत-पाक युद्ध (1947) के दौरान।
  • मेजर मलकियतसिंह बरार (मरणोपरान्त) भारत-पाक युद्ध (1947) के दौरान।
  • पूर्व ब्रिगेडियर जनरल तपीश्वर नारायणसिंह रैना को भारत-चीन युद्ध (1962) के दौरान।

कुमाऊं रेजिमेंट के अशोक चक्र:

  • मेजर भूकान्त मिश्रा (मरणोपरान्त) कुमांऊँ रेजिमेंट की पन्द्रहवीं बटालियन को ब्लू स्टार ऑपरेशन अमृतसर, पंजाब (1984) के दौरान।
  • नायक निर्भयसिंह (मरणोपरान्त) कुमांऊँ रेजिमेंट की पन्द्रहवीं बटालियन को ब्लू स्टार ऑपरेशन अमृतसर, पंजाब (1984) के दौरान।
  • सुबेदार सज्जनसिंह (मरणोपरान्त) कुमांऊँ रेजिमेंट की तेरहवीं बटालियन को ऑपरेशन रक्षक जम्मू-कश्मीर (1994) के दौरान।
  • नायक रणवीरसिंह तोमर (मरणोपरान्त) कुमांऊँ रेजिमेंट की पन्द्रहवीं बटालियन को डोडा जिला, जम्मू-कश्मीर के दौरान।
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Shivesh Pratap

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