खौलता हुआ रगों में राणा व शिवाजी वाला, लहू का उफान कभी चुकने न पायेगा ।
पन्नाधाय हाडा रानी का ये बलिदानी देश, क़ुरबानी में कलेजा दुखने न पायेगा ।
शेखर, सुभाष, अशफाक की धरा है यहाँ, क्रांति का प्रवाह कभी रुकने न पायेगा ।
सौ करोड़ जनता के दिल में लहरता ये, लाडला तिरंगा कभी झुकने न पायेगा ।
साझा ही सहादत थी ,साझा ही विरासत है साझा बोलती है बलिदान की निसानियाँ।
हिन्दू और मोमिनो ने मिलके लड़ी है जंग ,आजादी में मिलके ही दी है कुरबानियाँ ।
जंग लगी तलवारे जंग में चमक उठी ,झुज उठी जफर सी बूढी नो जवानियाँ ।
बेगमो ने तेग से गढ़े ही इतिहास यहा ,रानियों ने तलवार से लिखी कहनियाँ ।
देश द्रोहियों से प्रतिबंध हटने लगे हैं, देश प्रेमियों को सूली पर चढाया जायगा ।
सिर्फ सत्ता के लिए ही,कुरबानियाँ बची है, राष्ट्र एकता को दांव पे लगाया जायगा ।
आज संविधान की है मर्यादा तार-तार,कल को तिरंगा भी ना फहराया जायगा ।
दिल्ली आज वन्दे मातरम गीत पे झुकी तो,कल यहा राष्ट्र गान भी ना गाया जायगा ।
इनसे भले ही व्यवहार में हो भूल चूक,फिर भी ये मस्त जिंदगानी काम आएगी।
कभी-कभी मानी और कभी नहीं मानी वह, की है जो इन्होने मनमानी काम आएगी।
जब-जब कंस ,शिशुपाल के बढ़ेगे पाप,नट-खट कृष्ण की कहानी काम आएगी।
देश को पड़ेगी जरूरत जब खून की तो,अल्हड सी यही नौजवानी काम आएगी।
पथ-भ्रष्ट होने का कलंक जो लगाया गया,हमने वो आत्म बलिदान से मिटा दिया।
देश की सुरक्षा हेतु देश की जवानियों ने, सीमाओं पर बूद-बूंद रक्त को चढ़ा दिया।
गोलियों के आगे जो वक्ष को अड़ाते रहे ,देश को एक भी ना घाव लगने दिया।
आप समझौता वाली मेज पे ना जीत पाए, चोटियों पे हमने तिरंगा लहरा दिया।
आन-बान-शान पे ना दाग लगने दिया है,स्वाभिमान देश का संवार कर आए हम।
भारती का मानचित्र धुंधला जो हो गया था,शत्रुओ के रक्त से निखार कर आए हम।
बैरियों के सीने फाड़ गाड़ते तिरंगे रहे, चाहे साँस मौत से उधार कर आए हम।
सरहद पार से तो जीत आए बार-बार , हर जंग अपनों से हार कर आए हम।
सिन्धु नदी वाला जल सारा लाल-लाल हुआ ,शत्रुओं के शोणित की धार वो बहाई थी।
मौत की हमारी जिम्मेदार है हमारी दिल्ली, उनसे तो जीत अपनों से मात खाई थी।
पीठ पे हमारी ये निशान क्यों है गोलियों के, जान ले समूचा देश चिट्ठी भिजवाई थी।
चोटियों पे गाड रहे जब थे तिरंगे हम, पीठ पे हमारे गोली दिल्ली ने चलाई थी।
हाथ से तिरंगा नीचे गिरने दिया ना तुने, शत्रुओ की कोई गोली पीठ पे ना खाई है।
देश का जो मस्तक झुके ना ऐसा काम किया, दूध ना लजाया मेरी कोख ना लजाई है।
साभार: कवि श्री अर्जुन सिंह सिसौदिया
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