मुंबई में अकेले जीवन यापन करने वाली बुजुर्ग और एक साल से फोन पर भी बात न कर पाने वाले अमेरिकी बेटे ने सभी को भावना के स्तर पर झकझोर कर रख दिया। बुजुर्ग महिला के पास मुम्बई के पाश इलाके में 6 करोड़ के फ्लैट थे पर जो नहीं था वो है सच्चे रिश्ते और भावना ।
लोगों ने बेटे को खूब गालियां दी । लेकिन यह एक गहन विमर्श का विषय है । इस घटना में वह बुजुर्ग महिला भी पूरी जिम्मेदार है क्यों कि वो अपनी अगली पीढ़ी को जीवन के उद्देश्य के नाम पर केवल अमेरिका, डॉलर और करोड़ों के फ्लैट्स का ही महत्व समझा पाई । उस बुजुर्ग महिला ने भावना के नाम पर न तो अपने लिए कोई समाज बनाया और न ही बच्चों में ही भावना की सृष्टि कर सकी ।
फलस्वरूप उसके बच्चे भी यंत्रवत हो गए और उन्हें अपनी मां में भावना और मातृत्व की जगह एक बोझ या रिस्पांसिबिलिटी ही दिखी। 6 करोड़ के फ्लैट जुटाने में पूरा जीवन खपा देने वाली महिला के ये एसेट्स भी उनके बच्चों के लिए महत्वहीन ही रहे क्यों कि बुजुर्ग महिला ने अपने बच्चों को भौतिकता के अंधे दौड़ में केवल अनवरत दौड़ते रहना ही सिखाया ……..उसके बच्चे जीवन के अंतहीन दौड़ में रुक कर कभी जीवन के मानवीय संबंधों में परिवार भाव को महसूस न कर सके ।
अपने परिवार / बच्चों को अमीर होने के लिए प्रोत्साहित मत करो बल्कि उन्हें यह सिखाओ कि वे खुश कैसे रह सकते हैं और जब बड़े हों, तो चीजों के महत्व को देखें उसकी कीमत को नहीं …. हम सब को यह अहसास होना चाहिए कि परिवार ही सबसे बड़ा धन है ।
दिल को दुनिया के भौतिकवाद से न लगाएं क्योंकि वह नश्वर है, बल्कि भावना से लगाओ क्योंकि यही बाकी रहने वाली है…जब कि आपका बेटा सात समंदर पार हो तो भी ।
फ्रांस के एक वाणिज्य मंत्री का कहना था ब्रांडेड चीजें व्यापारिक दुनिया का सबसे बड़ा झूठ होती हैं जिनका असल उद्देश्य तो अमीरों से पैसा निकालना होता है लेकिन गरीब इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं.
क्या यह आवश्यक है कि मैं Iphone लेकर चलूं फिरू ताकि लोग मुझे बुद्धिमान और समझदार मानें?
क्या यह आवश्यक है कि मैं रोजाना Mac या Kfc में खाऊँ ताकि लोग यह न समझें कि मैं कंजूस हूँ?
क्या यह आवश्यक है कि मैं प्रतिदिन दोस्तों के साथ उठक बैठक Downtown Cafe पर जाकर लगाया करूँ ताकि लोग यह समझें कि मैं एक रईस परिवार से हूँ?
क्या यह आवश्यक है कि मैं Gucci, Lacoste, Adidas या Nike के कपड़े पहनूं ताकि जेंटलमैन कहलाया जाऊँ?
क्या यह आवश्यक है कि मैं अपनी हर बात में दो चार अंग्रेजी शब्द शामिल करूँ ताकि सभ्य कहलाऊं?
क्या यह आवश्यक है कि मैं Adele या Rihanna को सुनूँ ताकि साबित कर सकूँ कि मैं विकसित हो चुका हूँ?
नहीं यार !!!
मेरे कपड़े तो आम दुकानों से खरीदे हुए होते हैं,
दोस्तों के साथ किसी ढाबे पर भी बैठ जाता हूँ,
भूख लगे तो किसी ठेले से ले कर खाने मे भी कोई अपमान नहीं समझता,
अपनी सीधी सादी भाषा मे बोलता हूँ।
चाहूँ तो वह सब कर सकता हूँ जो ऊपर लिखा है लेकिन ….
मैंने ऐसे लोग भी देखे हैं जो मेरी Allen Solly से खरीदी गई एक कमीज की कीमत में पूरे महीने भर का राशन ले सकते हैं।
मैंने ऐसे परिवार भी देखे हैं जो मेरे एक Mac बर्गर की कीमत में सारे घर का खाना बना सकते हैं।
बस मैंने यहाँ यह रहस्य पाया है कि पैसा ही सब कुछ नहीं है जो लोग किसी की बाहरी हालत से उसकी कीमत लगाते हैं वह तुरंत अपना इलाज करवाएं।
कुल मिलाकर एक बार फिर भारत के पुराने परिवार व्यवस्था का महत्व समाज को पता चला। हमे परिवार भाव को समझना ही पड़ेगा ।
मानव मूल की असली कीमत उसकी नैतिकता, व्यवहार, मेलजोल का तरीका, सुलह-रहमी, सहानुभूति और भाईचारा है, ना कि उसकी मौजूदा शक्ल और सूरत…या भौतिक साधन !!!
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