श्रीरामजन्मभूमि पर स्थित मंदिर का जीर्णोद्धार कराते हुए 2100 साल पहले सम्राट शकारि विक्रमादित्य (चन्द्रगुप्त द्वितीय) द्वारा काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया गया।
मीर बाकी मुस्लिम आक्रांता बाबर का सेनापति था, जिसने 1528 ईस्वी में भगवान श्रीराम का यह विशाल मंदिर ध्वस्त किया।
इस्लामी आक्रमणकारियों से मंदिर को बचाने के लिए रामभक्तों ने 15 दिन तक लगातार संघर्ष किया, जिसके कारण आक्रांता मंदिर पर चढ़ाई न कर सके और अंत में मंदिर को तोपों से उड़ा दिया। इस संघर्ष में 176000 रामभक्तों ने मंदिर रक्षा हेतु अपने जीवन की आहुति दी।
इस मस्जिद को मस्जिद-इ-जन्मस्थान (हिन्दी: मस्जिद ए जन्मस्थान,उर्दू: مسجدِ جنمستھان, अनुवाद: “जन्मस्थान की मस्जिद”) कहा जाता था, इस तरह इस स्थान को हिन्दू ईश्वर, भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में स्वीकार किया जाता रहा है।
अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया, जहाँ हिंदू भगवान राम का जन्म स्थान हैं। ढांचे का निर्माण ध्वस्त मंदिर के स्थान पर मंदिर के ही टूटे स्तंभों और अन्य सामग्री से आक्रांताओं ने मस्जिद जैसा एक ढांचा जबरन वहां खड़ा किया, लेकिन वे अजान के लिए मीनारें और वजू के लिए स्थान कभी नहीं बना सके।
1528 से 1949 ईस्वी तक के कालखंड में श्रीरामजन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण हेतु 76 संघर्ष/युद्ध हुए। इस पवित्र स्थल हेतु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज, महारानी राज कुंवर तथा अन्य कई विभूतियों ने भी संघर्ष किया।
इतिहासकार कनिंघम अपने लखनऊ गजेटियर के 66वें अंक के पृष्ठ 3 पर लिखते हैं कि एक लाख चौहतर हजार हिंदुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात मीरबाँकी अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान में सफल हुआ और उसके बाद जन्मभूमि के चारों और तोप लगवाकर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया.
औरंगजेब के समय में समर्थ गुरु श्री रामदास जी महाराज जी के शिष्य श्री वैष्णवदास जी ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ 30 बार आक्रमण किये। इन आक्रमणों में अयोध्या के आसपास के गांवों के सूर्यवंशीय क्षत्रियों ने पूर्ण सहयोग दिया जिनमें सराय के ठाकुर सरदार गजराज सिंह और राजेपुर के कुँवर गोपाल सिंह तथा सिसिण्डा के ठाकुर जगदंबा सिंह प्रमुख थे।
1853 ईस्वी: अंग्रेजी हुकूमत में इस मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली बार बड़ी हिंसा हुई।
लखनऊ गजेटियर में कर्नल हंट लिखता है- लगातार हिंदुओं के हमले से ऊबकर नवाब ने हिंदुओं और मुसलमानों को एक साथ नमाज पढ़ने और भजन करने की इजाजत दे दी पर सच्चा मुसलमान होने के नाते उसने काफिरों को जमीन नहीं सौंपी। “लखनऊ गजेटियर पृष्ठ 62” नासिरुद्दीन हैदर के समय में मकरही के राजा के नेतृत्व में जन्मभूमि को पुनः अपने रूप में लाने के लिए हिंदुओं के तीन आक्रमण हुये जिसमें बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गये। परन्तु तीसरे आक्रमण में डटकर नवाबी सेना का सामना हुआ। 8वें दिन हिंदुओं की शक्ति क्षीण होने लगी, जन्मभूमि के मैदान में हिन्दुओं और मुसलमानों की लाशों का ढेर लग गया। इस संग्राम में भीती, हंसवर, मकरही, खजुरहट, दीयरा अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह आदि सम्मलित थे। हारती हुई हिन्दू सेना के साथ वीर चिमटाधारी नागा साधुओं की सेना आ मिली और इस युद्ध में शाही सेना के चिथड़े उड़ गये और उसे रौंदते हुए हिंदुओं ने जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। मगर हर बार की तरह कुछ दिनों के बाद विशाल शाही सेना ने पुनः जन्मभूमि पर अधिकार कर लिया और हजारों हिन्दुओं को मार डाला गया।
नवाब वाजिदअली शाह के समय के समय में पुनः हिंदुओं ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ आक्रमण किया। फैजाबाद गजेटियर में कनिंघम ने लिखा “इस संग्राम में बहुत ही भयंकर खूनखराबा हुआ। दो दिन और रात होने वाले इस भयंकर युद्ध में सैकड़ों हिन्दुओं के मारे जाने के बावजूद हिन्दुओं ने राम जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। क्रुद्ध हिंदुओं की भीड़ ने कब्रें तोड़ फोड़ कर बर्बाद कर डालीं, मस्जिदों को मिसमार करने लगे और पूरी ताकत से मुसलमानों को मार-मार कर अयोध्या से खदेड़ना शुरू किया। मगर हिन्दू भीड़ ने मुसलमान स्त्रियों और बच्चों को कोई हानि नहीं पहुचाई। अयोध्या में प्रलय मचा हुआ था।
1859 ईस्वी: ब्रिटिश सरकार ने तारों की बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिंदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दे दी।
1885: मामला पहली बार अदालत में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की।
23 दिसंबर, 1949: मध्यरात्रि में जन्मभूमि पर रामलला प्रकट हुए। वह स्थान ढांचे के बीच वाले गुम्बद के नीचे था। इसके बाद उस स्थान पर हिंदू पूजा करने लगे। मुसलमानों ने यहाँ कभी नमाज नहीं पढ़ा। उस समय भारत के प्रधानमंत्री थे जवाहरलाल नेहरू, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे पंडित गोविंद वल्लभ पंत और केरल के श्री के.के.नैय्यर फैजाबाद के जिलाधिकारी थे।
1950 जनवरी, 16 : गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी।
1950 दिसंबर, 5 : महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया।
1959 दिसंबर, 17 : निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने को मुकदमा किया।
1961 दिसंबर,18 : उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।
मार्च, 1983: मंदिर बनाने का संकल्प – पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्री दाऊ दयाल खन्ना ने मार्च, 1983 में मुजफ्फरनगर में संपन्न एक हिन्दू सम्मेलन में अयोध्या, मथुरा और काशी के स्थलों को फिर से अपने अधिकार में लेने हेतु हिन्दू समाज का प्रखर आह्वान किया। दो बार देश के अंतरिम प्रधानमंत्री रहे श्री गुलजारी लाल नंदा भी मंच पर उपस्थित थे।”
अप्रैल, 1984: पहली धर्म संसद – अप्रैल, १९८४ में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा विज्ञान भवन (नई दिल्ली) में आयोजित पहली धर्म संसद ने जन्मभूमि के द्वार से ताला खुलवाने हेतु जनजागरण यात्राएं करने का प्रस्ताव पारित किया।
अक्तूबर, 1984: राम जानकी रथ यात्रा – विश्व हिन्दू परिषद् ने अक्तूबर, 1984 में जनजागरण हेतु सीतामढ़ी से दिल्ली तक राम-जानकी रथ यात्रा शुरू की। लेकिन श्रीमती इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के चलते एक साल के लिए यात्राएं रोकनी पड़ी थीं। अक्तूबर, 1984 में रथ यात्राएं पुन: प्रारंभ हुईं।
1986 फरवरी, 1: फैजाबाद के जिला दंडाधिकारी ने 1 फरवरी, 1986 को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के द्वार पर लगा ताला खोलने का आदेश दिया। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे श्री वीर बहादुर सिंह और देश के प्रधानमंत्री थे श्री राजीव गांधी।” ताले दोबारा खोले गए। मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।
1986- कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रेसिडेंट अली मियां नदवी के बीच बातचीत हुई। लेकिन वो किसी नतीजे पर नहीं पहुंची।
जनवरी, 1989: रामशिला पूजन – जनवरी, 1989 में प्रयागराज में कुंभ मेले के पवित्र अवसर पर त्रिवेणी के किनारे विश्व हिन्दू परिषद् ने धर्म संसद का आयोजन किया। इसमें पूज्य देवरहा बाबा की उपस्थिति में तय किया गया कि देश के हर मंदिर- हर गांव में रामशिला पूजन कार्यक्रम आयोजित किया जाए। पहली शिला का पूजन श्री बद्रीनाथ धाम में किया गया। देश और विदेश से ऐसी 275000 रामशिलाएं अक्तूबर, 1989 के अंत तक अयोध्या पहुंच गईं। इस कार्यक्रम में ६ करोड़ लोगों ने भाग लिया।
1989 जुलाई, 1: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवां मुकदमा दायर किया गया।
1989 नवंबर, 9: मंदिर का शिलान्यास बिहार के वंचित वर्ग के एक बंधु श्री कामेश्वर चौपाल द्वारा शिलान्यास किया गया। उस समय श्री नारायण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और प्रधानमंत्री थे श्री राजीव गांधी।
24 जून, 1990: कारसेवा का आह्वान – 24 जून, 1990 को संतों ने देवोत्थान एकादशी (30 अक्तूबर 1990) मंदिर निर्माण हेतु कारसेवा शुरू करने का आह्वान किया।
1990 सितंबर, 25: भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथयात्र निकाली।
दीपावली 1990: राम ज्योति – अयोध्या में अरणि मंथन से एक ज्योति प्रज्ज्वलित की गई। यह “राम ज्योति” देश भर में प्रत्येक हिन्दू घर में पहुंची और सबने मिलकर इस ज्योति से दीपावली मनाई।
30 अक्तूबर 1990: हिन्दुत्व की विजय – 30 अक्तूबर 1990 को हजारों रामभक्तों ने मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खड़ी की गईं अनेक बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया।
1990 नवंबर: आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। भाजपा ने वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। सिंह ने बाद में इस्तीफा दे दिया।
2 नवम्बर, 1990: कारसेवकों का बलिदान – 2 नवम्बर, 1990 को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें कोलकाता के राम कोठारी और शरद कोठारी (दोनों भाई) सहित अनेक रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं।
4 अप्रैल, 1991: ऐतिहासिक रैली – 4 अप्रैल, 1991 को दिल्ली के वोट क्लब पर अभूतपूर्व रैली हुई। इसी दिन कारसेवकों के हत्यारे, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस्तीफा दिया।
सितम्बर, 1992: रामपादुका पूजन – सितम्बर, 1992 में भारत के गांव-गांव में श्री राम पादुका पूजन का आयोजन किया गया और गीता जयंती (6 दिसंबर, 1992) के दिन रामभक्तों से अयोध्या पहुंचने का आह्वान किया गया।
1992 दिसंबर, 6: लाखों राम भक्त ६ दिसम्बर को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और राम जन्मस्थान पर बाबर के सेनापति द्वार बनाए गए अपमान के प्रतीक मस्जिदनुमा ढांचे को ध्वस्त कर दिया। जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया। अपमान का प्रतीक ध्वस्त हुआ |
1 जनवरी, 1993: दर्शन-पूजन निविर्घ्न – भक्तों द्वारा श्रीरामलला की दैनिक सेवा-पूजा की अनुमति दिए जाने के संबंध में अधिवक्ता श्री हरिशंकर जैन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में याचिका दायर की। 1 जनवरी, 1993 को अनुमति दे दी गई। तब से दर्शन-पूजन का क्रम लगातार जारी है।
7 जनवरी, 1993: कारसेवकों द्वारा तिरपाल की मदद से अस्थायी मंदिर का निर्माण किया गया। यह मंदिर उसी स्थान पर बनाया गया जहां ध्वंस से पहले श्रीरामलला विराजमान थे। श्री पी.वी.नरसिंह राव के नेतृत्व वाली तत्कालीन केन्द्र सरकार के एक अध्यादेश द्वारा श्रीरामलला की सुरक्षा के नाम पर लगभग ६७ एकड़ जमीन अधिग्रहीत की गई। यह अध्यादेश संसद ने ७ जनवरी, १९९३ को एक कानून के जरिए पारित किया था।
2002 जनवरी : प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अयोध्या विभाग शुरू किया। इसका काम विवाद सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था।
2003 मार्च-अगस्त: इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में उत्खनन किया। पुरातत्व सर्वेक्षण ने कहा कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष मिले हैं।
12 मार्च 2003 को तत्कालीन रिसीवर व मंडलायुक्त रामशरण श्रीवास्तव की निगरानी में एएसआई की टीम ने वहां उत्खनन कार्य शुरू किया। मौके पर हिंदू व मुस्लिम पक्ष के वकील भी मौजूद रहे। एएसआई की टीम में हिंदू व मुस्लिम दोनों समुदायों के विशेषज्ञ भी थे। इस टीम का नेतृत्व डॉ. बी.आर. मणि कर रहे थे। लगभग दो महीनों तक एएसआई ने इस जगह की खुदाई की। इसमें 131 मजदूरों को लगाया गया था। 11 जून को एएसआई ने अंतरिम रिपोर्ट जारी की और अगस्त 2003 में उच्च न्यायालय में 574 पेज की अंतिम रिपोर्ट सौंपी।
मंदिर के अवशेष मिले – ध्वस्त ढांचे की दीवारों से 5 फुट लंबी और 2.25 फुट चौड़ी पत्थर की एक शिला मिली। विशेषज्ञों ने बताया कि इस पर बारहवीं सदी में संस्कृत में लिखीं 20 पंक्तियां उत्कीर्ण थीं। पहली पंक्ति की शुरुआत “ॐ नम: शिवाय” से होती है। 15वीं, 17वीं और 19वीं पंक्तियां स्पष्ट तौर पर बताती हैं कि यह मंदिर “दशानन (रावण) के संहारक विष्णु हरि” को समर्पित है। मलबे से करीब ढाई सौ हिन्दू कलाकृतियां भी पाई गईं जो फिलहाल न्यायालय के नियंत्रण में हैं।
30 जून, 2009:
बाबरी मस्जिद ढांचे को गिराए जाने (6 दिसंबर, 1992) के 10 दिन बाद प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव ने जस्टिस लिब्रहान की अगुवाई में एक जांच कमीशन का गठन किया। कमीशन ने 17 साल बाद 2009 में अपनी रिपोर्ट पेश की।
2010 सितंबर, 30: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
उक्त तीनों माननीय न्यायधीशों ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि जो विवादित ढांचा था वह एक बड़े भग्नावशेष पर खड़ा था। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने कहा कि वह १२वीं शताब्दी के राम मंदिर को तोड़कर बनाया गया था, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि वह किसी बड़े हिन्दू धर्मस्थान को तोड़कर बनाया गया और न्यायमूर्ति खान ने कहा कि वह किसी पुराने ढांचे पर बना। पर किसी भी न्यायमूर्ति ने उस ढांचे को मस्जिद नहीं माना। सभी ने उस स्थान को रामजन्मभूमि ही माना।
बेंच ने तय किया था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए। राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए। बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।
अप्रैल 2015- ऑल इंडिया हिंदू महासभा के प्रेसिडेंट स्वामी चक्रपाणि और मुस्लिमों की ओर से दायर पिटीशंस की अगुआई करने वाले मोहम्मद हाशिम अंसारी के बीच मुलाकात हुई। हालांकि इस मुलाकात के बाद कोई खास पहल नहीं हुई।
अंसारी ने हनुमान गढ़ी मंदिर के महंत ज्ञान दास से बातचीत की शुरुआत की। इसमें प्लान था कि विवादित 70 एकड़ की जमीन पर मंदिर और मस्जिद बनाई जाए। दोनों के बीच 100 फीट की दीवार रहेगी।
मई 2016- ऑल इंडिया अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने अंसारी के साथ मुलाकात की। बातचीत आगे बढ़ती, इसके पहले ही अंसारी का निधन हो गया।
नवंबर 2016- हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस पलक बसु ने कोर्ट के बाहर सेटलमेंट का सुझाव रखा। इसमें 10 हजार हिंदू और मुसलमानों का साइन किया हुआ प्रपोजल फैजाबाद कमिश्नर के सामने रखा गया।
मार्च 2017- सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मसले का हल आपसी बातचीत के जरिए करने को कहा। ये कहा कि कोर्ट मीडिएटर बनने को तैयार है।
21 जुलाई 2017: में सुप्रीम कोर्ट में भाजपा नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने मामले को उठाया था और अयोध्या केस की जल्द सुनवाई किए जाने की अपील की थी। तब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि हम जल्दी सुनवाई के मुद्दे पर फैसला लेंगे, जिसके बाद इस मामले में 7 अगस्त को एक स्पेशल बेंच का गठन किया गया। बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
8 जनवरी, 2019: उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया गया जिसकी अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने किया और इसमें न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एन वी रमन्ना, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस ए नजीर शामिल थे।
8 मार्च, 2019: उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता के लिए विवाद को एक समिति के पास भेज दिया जिसके अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला बनाए गए।
6 अगस्त, 2019: पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने, अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान- के बीच बराबर बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर छह अगस्त से रोजाना 40 दिन तक सुनवाई की योजना बनीं।
4 अक्टूबर, 2019: अदालत ने कहा कि 17 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी कर 17 नवंबर तक फैसला सुनाया जाएगा। उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष को सुरक्षा प्रदान करने के लिये कहा।
16 अक्टूबर, 2019: उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा।
9 नवम्बर, 2019:
134 साल पुराने अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। इसके तहत अयोध्या की 2.77 एकड़ की पूरी विवादित राम मंदिर निर्माण के लिए दे दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बने और इसकी योजना तैयार की जाए। चीफ जस्टिस ने मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन दिए जाने का फैसला सुनाया, जो कि विवादित जमीन की करीब दोगुना है। चीफ जस्टिस ने कहा कि ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है और हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है।
संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिली असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार को मस्जिद के लिए जमीन देने का आदेश दिया।
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BHAGWAN RAM Ke janm sthan me RAM MANDIR ka nirman hona chahiye .Masjid ayodhya ke bahar jaha muslim bhai chahe banawaya jana chahiye .dono hi dharm ke log sukun santi se apne aradhya ki aaradhna apne dhang se kare taki yah lok aour perlok sudhar sake .dono dharmawlambiyon me santi sukh ka sanchar ho .Manav jivan bade bhagya se milta hai sadupyog dono ko karna chahiye .
nahi ayodhya sirf shree ram god ki thi vaha sirf hindu rammandir hi hona chahiye
Bahut hi badhiya jankari aapne share kiya hain sir Thanks.