भारत और चीन के बीच विवाद 4000 KM की सीमा को लेकर है जो कि तय नहीं है और इसे LAC कहते हैं। वर्तमान में भारत और चीन के सैनिकों का जहां तक कब्जा है वही नियंत्रण रेखा है।
यह रेखा 1914 में मैकमोहन ने तय की थी, लेकिन इसे चीन नहीं मानता और इसलिए अक्सर वो घुसपैठ की कोशिश करता रहता है।
यह जम्मू-कश्मीर से शुरू हो कर अरूणाचल प्रदेश तक जाती है। इसमें 220 किलोमीटर का शेयर सिक्किम का है।
लेकिन इस इलाके में बॉर्डर लाइन पूरी तरह स्पष्ट नहीं है जिससे दोनों देशों की सेनाओं के जवान अक्सर हाथापाई पर उतर आते हैं क्योंकि सीमा का कोई स्पष्ट आधार नहीं है।
चीनी सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू किये।
चीनी सेना दोनों मोर्चे में भारतीय बलों पर उन्नत साबित हुई और पश्चिमी क्षेत्र में चुशूल में रेजांग-ला एवं पूर्व में तवांग पर अवैध कब्ज़ा कर लिया।
चीन ने 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी और साथ ही विवादित दो क्षेत्रों में से अरुणाचल प्रदेश (नेफा) में कब्जाई भूमि से अपनी वापसी की घोषणा की|
अक्साई चिन से भारतीय पोस्ट और गश्ती दल हटा दिए गए, जो युद्ध के बाद प्रत्यक्ष रुप से चीनी नियंत्रण में चला गया।
जम्मू और कश्मीर जिसे चीन भारत का अंग मानने पर आनाकानी करता रहता है।
वर्ष 1949 में तिब्बत पर चीन के हमले के बाद परमपावन दलाई लामा से कहा गया कि वह पूर्ण राजनीतिक सत्ता अपने हाथ में ले लें।
1954 में वह माओ जेडांग, डेंग जियोपिंग जैसे कई चीनी नेताओं से बातचीत करने के लिए बीजिंग भी गए। लेकिन आखिरकार वर्ष 1959 में ल्हासा में चीनी सेनाओं द्वारा तिब्बती राष्ट्रीय आंदोलन को बेरहमी से कुचले जाने के बाद वह निर्वासन में जाने को मजबूर हो गए।
इसके बाद से ही वह उत्तर भारत के शहर धर्मशाला में रह रहे हैं जो केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का मुख्यालय है। तिब्बत पर चीन के हमले के बाद परमपावन दलाई लामा ने संयुक्त राष्ट्र से तिब्बत मुद्दे को सुलझाने की अपील की है।
इसलिए तिब्बत छोड़कर आए आध्यात्मिक गुरू दलाईलामा को भी भारत में जगह देने की वजह से भी चीन के साथ लगातार स्थिति तनावपूर्ण रहा है।
एक तरफ भारत और पाकिस्तान के रिश्ते जितने मुखर हो रहे हैं वहीं चीन ने हमेशा पाकिस्तान का बचाव किया है।
चीन हर उस वक्त पाकिस्तान के साथ खड़ा हो जाता है जब भी भारत आतंकवाद के नाम पर पाकिस्तान का पर्दाफाश करना चाहा है।
चीन ने पाकिस्तान के साथ करार के तहत एक सीपीईसी (चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर) तैयार किया है। जिसकी लाइन पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से गुजरता है।
पीओके के नियंत्रण को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद हमेशा से चला आ रहा है। जिस वजह से पीओके में चीन की घुसपैठ का भारत ने लगातार विरोध किया है।
इसके अलावे चीन के 46 अरब डॉलर की लागत वाले वन बेल्ट वन रोड का भी भारत धुर विरोधी रहा है।
जमीन और संसाधन हमेशा से ही दो देशों के बीच बहस का मुद्दा रहे हैं। भारत और चीन के बीच भी ब्रह्मपुत्र नदी को लेकर विवाद है।
दरअसल चीन ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाकर पानी अपनी ओर मोड़ रहा है जिसका भारत लगातार विरोध करता रहा है।
ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत से बह कर भारत में आती है। इसे तिब्बत में यारलुंग जांगबो नदी के नाम से जाना जाता है। यह नदी तिब्बत से भारत होते हुए बांग्लादेश जाती है।
‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ ये एक ऐसा विषय है जिसके बारे में इतिहास और भूगोल पढ़ने वाला हर एक बच्चा जानता होगा। इस रणनीति के तहत चीन हिंद महासागर के किनारों पर अपनी सैन्य मौजूदगी कायम करना चाहता है।
इसके लिए चीन भारत के समुद्री पहुंच के आसपास बंदरगाहों और नवल बेस का निर्माण करना चाहता है। हिन्द महासागर में चीन ने पहले ही अपनी मौजूदगी दर्ज करवा दी है।
म्यांमार में कोकोस द्वीप,
बांग्लादेश में चटगांव,
हंबनटोटा (श्रीलंका),
मारो एटोल (मालदीव) और
ग्वादर (पाकिस्तान) में ये अपनी मौजूदगी दर्ज करवा चुका है।
भारत UN के एनएसजी ग्रुप में शामिल होने की लगातार कोशिश करता रहा है लेकिन चीन ने हर बार इसका विरोध किया|
भौगोलिक रूप से डोकलाम भारत चीन और भूटान बार्डर के तिराहे पर स्थित है. जिसकी भारत के नाथुला पास से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी है. चुंबी घाटी में स्थित डोकलाम सामरिक दृष्टि से भारत और चीन के लिए काफी महत्वपूर्ण है.
साल 1988 और 1998 में चीन और भूटान के बीच समझौता हुआ था कि दोनों देश डोकलाम क्षेत्र में शांति बनाए रखने की दिशा में काम करेंगे.
सिक्किम सेक्टर के डोंगलांग के इलाके में चीन ने सड़क बनाने की तैयारी शुरू कर दी थी जिसका भारतीय सैनिकों ने विरोध किया। लेकिन चीन का कहना है कि यह सीमा भूटान से लगती है और भारत को इससे कोई लेना देना नहीं है। उसे इसमें बोलने का अधिकार नहीं है।
जबकि भूटान के फॉरेन और डिफेंस अफेयर्स को भारत देखता है और ऐसे में भारत को चीन से इस मसले को सुलझाने का पूरा हक है।
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